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राहुल गांधी अपने वजूद को छोटा करके पीएम मोदी को हटाएंगे, जवाब में छुपा है आगे होना क्या है

राहुल गांधी अपने वजूद को छोटा करके पीएम मोदी को हटाएंगे, जवाब में छुपा है आगे होना क्या है

PATNA : लोकसभा चुनाव सर पर है. इंडिया हो या फिर एनडीए सीट शेयरिंग दोनों ही गठबंधन में अभी नहीं हुआ है. हांलाकि इंडिया गठबंधन में कवायद तेज है. कुल 28 राजनीतिक दलों के बीच सीट शेयरिंग का सियासी मसला सुलझाना आसान नहीं है. आसान इसलिए नहीं है क्योंकि हर राज्य में कांग्रेस को सिकुड़ाकर क्षत्रप आगे बढ़ना और नरेंद्र मोदी को हराना चाहते हैं. फिर सवाल ये है कि कांग्रेस क्या करेगी. नरेंद्र मोदी को हटाने के नाम पर खुद के वजूद को हर राज्य में कितना छोटा करेगी. क्या राहुल गांधी तैयार हैं. अगर हैं तो फिर भारत जोड़ो न्याय यात्रा का मतलब क्या है. 

दरअसल कहा जा रहा है कि बंगाल में ममता बनर्जी कांग्रेस को 2-3 सीट से ज्यादा देना नहीं चाहती है. बिहार में कांग्रेस को महागठबंधन के बेनर तले सिर्फ 4 सीटें मिलने की संभावना है.  बिहार की 40 सीट में जेडीयू अपने हिस्से हर हाल में 16 सीट रखेगी, तो फिर आरजेडी, कांग्रेस, लेफ्ट पार्टी के लिए मिलाकर 24 सीट ही बचता है. बात करें यूपी की तो अखिलेश सिंह ने तो शर्त रख दी है, पहले कांग्रेस अपने उम्मीदवार की लिस्ट बताएं जिसके पास छमता हो कि वो 5 लाख वोट ला सके. 

सूत्रों के हवाले से खबर है कि आम आदमी पार्टी की तरफ से कांग्रेस को दिल्ली में 7 में 3 और पंजाब में 13 में से 6 सीटों पर लड़ने का ऑफर दिया है. बंगाल, बिहार, यूपी, दिल्ली और पंजाब की कुल 182 सीट में ऐसे तो कांग्रेस सिर्फ 21 सीट पर चुनाव लड़ पाएगी. झारखंड और महाराष्ट्र में अभी स्थिति साफ नहीं है कांग्रेस इन दो राज्यों में कितने सीट पर चुनाव लड़ सकती है. 

झारखंड में 10 सीट और महाराष्ट्र में 48 सीट है. हिन्दी पट्टी के बचे राज्य छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात और हरियाणा में ही कांग्रेस सीधे तौर पर बीजेपी को टक्कर देगी. छत्तीसगढ़ में 11, मध्य प्रदेश में 29 और हरियाणा में 10, गुजरात में 26 सीट है. चारों राज्य की कुल सीट मिला दें तो 76 सीट होता है. कुल मिलाकर कहें तो राहुल गांधी के लिए मुश्किल यही है कि वो कैसे कांग्रेस के वजूद को छोटाकर बीजेपी का सामना करें. अगर वो ऐसा करते हैं कि तो कांग्रेस हिन्दी पट्टी वाले महत्वपूर्ण राज्यों में बेहद कम सीट पर ही चुनाव लड़ पाएगी. 

बिहार में कब और कैसे कांग्रेस का वजूद छोटा हुआ

1951 में बिहार से जहां कांग्रेस के 45, 1957 में 40 और 1962 में 39 सांसद जीतकर दिल्ली पहुंचे. वहीं 1967 के आमचुनाव में बिहार में कांग्रेस के लोकसभा पहुंचने वाले उम्मीदवारों की संख्या 34 रह गई. 1977 के लोकसभा चुनाव में बिहार की 54 सीटों में एक भी सीट कांग्रेस को नहीं मिल पाई. हालात पूरी तरह बदल गए. जिस इंदिरा गांधी को अपराजित माना जा रहा था, वह सत्ता से बेदखल हो गई थी. सरकार आई जनता पार्टी की, जनता पार्टी की सरकार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई. मोरारजी सरकार और फिर चौधरी चरण सिंह की सरकार आई. 

1980 में मध्यावधि चुनाव हुए बिहार की 54 लोकसभा सीटों में कांग्रेस के हिस्से 30 सीट आई. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए आम चुनाव में बिहार से 54 में कांग्रेस की झोली में 48 सीटों पर जीती. यह कांग्रेस का चरम था. लेकिन एक बार फिर इतिहास ने करवट लिया और बोफोर्स का मुद्दा पूरे देश में गरमाया रहा. 1989 में जब चुनाव हुए तो बिहार में कांग्रेस को सिर्फ 4 सीट पर जीत मिली. 1996 के चुनाव बिहार कांग्रेस को मात्र 2 सीट जीत मिली. 

देश में गैर कांग्रेस एचडी देवेगौड़ा की सरकार बनी. दो साल बाद फिर चुनाव हुए. 1998 में कांग्रेस को बिहार में 5 सीट जीत मिली. आईके गुजराल प्रधानमंत्री बने. एक साल बाद ही एक बार फिर देश में मध्यावति चुनाव हुआ. बिहार से गैर कांग्रेसी सांसदों की संख्या बढ़ी. बीजेपी को 23 सीट जीत मिली. केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार बनी. 2004 लोकसभा चुनाव में बिहार में कांग्रेस को 3 सीट जीती. 2009 लोकसभा चुनाव में बिहार से कांग्रेस को सिर्फ 2 सीट मिली. कभी बिहार में कांग्रेस जबरदस्त तरीके से मजबूत हुआ करती थी. लेकिन गठबंधन की राजनीति ने कांग्रेस को बिहार में छोटा बना दिया.

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