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रथ यात्रा विशेष : जगन्नाथ मंदिर में क्यों होती है खंडित मूर्तियों की पूजा, बिना हाथ की काष्ठ प्रतिमाओं का रहस्य है बेहद खास

रथ यात्रा विशेष : जगन्नाथ मंदिर में क्यों होती है खंडित मूर्तियों की पूजा, बिना हाथ की काष्ठ प्रतिमाओं का रहस्य है बेहद खास

DESK. पुराणों में जगन्नाथ पुरी को धरती का बैकुंठ कहा गया है। ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार, पुरी में भगवान विष्णु ने पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतार लिया था। वह यहां सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए। सबर जनजाति के देवता होने की वजह से यहां भगवान जगन्नाथ का रूप कबीलाई देवताओं की तरह है।  यहां जो जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाएं हैं वह काष्ठकारी से निर्मित है।  हिंदू धर्म की विविधता ऐसी है कि एक जगह जिस रूप को अस्वीकृत किया जाता है दूसरी जगह उसे ही स्वीकार किया जाता है। जैसे पुरी में भगवान की प्रतिमाओं का हाथ नहीं होता है यानी कहा जाए तो ये एक प्रकार से खण्डित हैं। बावजूद इसके यही जगन्नाथ हैं।  

जगन्नाथ की प्रतिमाएं खंडित क्यों : जगन्नाथ मंदिर में भगवान की जिन प्रतिमाओं की पूजा की जाती है वो पूर्ण न होकर अपूर्ण यानी अधूरी होती है। हजारों सालों से यहां भगवान जगन्नाथ की अधूरी प्रतिमा की पूजा की जा रही है। सुनने में ये बात अजीब जरूर लगे, लेकिन ये सच है। इस परंपरा से जुड़ी एक कथा भी प्रचलित है. कहा जाता है कि किसी समय मालव देश के राजा इंद्रद्युम्न थे। वे भगवान जगन्नाथ के परम भक्त थे। एक दिन जब राजा नीलांचल पर्वत पर गए तो वहां उन्हें देव प्रतिमा के दर्शन नहीं हुए।

तभी आकाशवाणी हुई कि शीघ्र ही भगवान जगन्नाथ मूर्ति के रूप में धरती पर प्रकट होंगे। आकाशवाणी सुनकर राजा को प्रसन्नता हुई। कुछ दिनों बाद जब राजा पुरी के समुद्र तट पर घूम रहे थे, तभी उन्हें लकड़ी के दो विशाल टुकड़े तैरते हुए दिखे।  राजा ने उन लकड़ियों को बाहर निकलवाया और सोचा कि इसी से वह भगवान की मूर्तियां बनावाएगा। 

भगवान की आज्ञा से देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा राजा के पास बढ़ई के रूप में आए और उन्होंने लकड़ियों से भगवान की मूर्ति बनाने के लिए राजा से आग्रह किया। राजा ने इसके लिए तुरंत हां कर दी। लेकिन विश्वकर्मा ने शर्त रखी कि वह मूर्ति का निर्माण एकांत में करेंगे, यदि कोई वहां आया तो वह काम अधूरा छोड़कर चले जाएंगे। राजा ने शर्त मान ली। तब विश्वकर्मा ने गुण्डिचा नामक स्थान पर मूर्ति बनाने का काम शुरू किया। 

इसलिए अधूरी हैं ये देव प्रतिमाएं : भगवान की मूर्ति बनाते-बनाते जब विश्वकर्मा को काफी समय बीत गया तो एक दिन उत्सुकतावश राजा इंद्रद्युम्न उनसे मिलने पहुंच गए। राजा को आया देखकर शर्त के अनुसार, विश्वकर्मा वहां से चले गए और भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी रह गईं। ये देखकर राजा को काफी दुख हुआ, लेकिन तभी आकाशवाणी हुई कि भगवान इसी रूप में स्थापित होना चाहते हैं। तब राजा इंद्रद्युम ने विशाल मंदिर बनवा कर तीनों मूर्तियों को वहां स्थापित कर दिया।

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