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मंजू सिन्हा की जयंती पर पढ़िए नीतीश कुमार के विवाह की रोचक कहानी, शादी तय होते ही हो गए थे नाराज, माननी पड़ी थी दो शर्त

मंजू सिन्हा की जयंती पर पढ़िए नीतीश कुमार के विवाह की रोचक कहानी, शादी तय होते ही हो गए थे नाराज, माननी पड़ी थी दो शर्त

पटना. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को अपनी धर्मपत्नी एवं समाजसेवी स्व० मंजू सिन्हा की जयंती के अवसर पर कंकड़बाग स्थित स्व० मंजू सिन्हा स्मृति पार्क में उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि दी। नीतीश कुमार और मंजू सिन्हा का विवाह 22 फरवरी 1973 को हुआ था. लेकिन इनके विवाह की कहानी भी किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं है. दोनों के रिश्ते की शुरुआत भी सामाजिक सुधार का संदेश देते हुए हुई थी. जिस दहेज मुक्त विवाह की बातें सीएम नीतीश इन दिनों करते हैं इसे सबसे पहले नीतीश कुमार ने अपने विवाह में ही लागू किया था. उनके पिता ने 22 हजार रुपए दहेज की रकम तय की थी लेकिन इसका खुलकर विरोध नीतीश कुमार ने किया. इतना ही नहीं नीतीश कुमार और मंजू सिन्हा का विवाह भी काफी रोचक कहानी वाला है. 

नीतीश हुए नाराज : नीतीश कुमार के जीवन पर उनके मित्र उदय कांत द्वारा लिखी गई किताब ‘नीतीश कुमार अंतरंग दोस्तों की नजर से’ में नीतीश और मंजू के विवाह का रोचक जिक्र है. नीतीश कुमार के बड़े भाई सतीश कुमार की पत्नी मंजू सिन्हा की बुआ लगती हैं. दोनों का मायका सेवदह गांव है. उदयकांत लिखते हैं कि मंजू के फूफा जय प्रकाश वर्ष 1971 के नवंबर या दिसम्बर के महीने में पटना के हॉस्टल में नीतीश से मिलने आए. बाद में नीतीश के पिता कविराज और जय प्रकाश ने आपसी सहमति से दोनों का विवाह तय कर दिया. लेकिन जब नीतीश को यह बात पता चली कि उनके विवाह में 22 हजार रुपए तिलक लेने की बात हुई है तो इससे नीतीश खासे नाराज हुए.  

नीतीश की दो शर्त : उदयकांत बताते हैं कि ‘यह बात नीतीश के घर में शायद सबको पता थी फिर यह तिलक की बात उठी कैसे? मुझे उसकी नाराज़गी बडी जायज लगी और उसका यह कौल भी कि न तो वह तिलक या दहेज़ लेगा, ना ही पारम्परिक ढंग की बरातियों वाली शादी करेगा। नीतीश ने जैसे विद्रोह का बिगुल बजाते हुए दो बड़ी शर्तें अपनी तरफ़ से रखी। पहली शर्त तो यह थी कि जैसे मंजु के बारे में उसकी (नीतीश) सहमति ली गई है, वैसे ही मंजु जी से भी पूछा जाना चाहिए क्या भावी जीवनसाथी के रूप में नीतीश उन्हें पसन्द हैं? दूसरी बात यह कि ही वह मंजु को स्वीकार्य हो तो सखा भाव से उनका हाथ पकड़कर, बिना किसी ताम-झाम के, बस इष्ट-मित्रों को साक्षी बनाकर, वह जीवन-पथ पर चल देगा। उदयकांत बताते हैं कि हम सबके लिए यह सब नितान्त नया और अनछुआ-सा था, गुलाब की सुखुड़ियों पर अलस्सबाह पड़ी ओस की तरह, गंगोत्री की गंगा की तरह! मुझे (उदयकांत) यह पेचीदा मामला सुलझाने की ज़िम्मेदारी दी गई। अगली सुबह साढ़े पाँच गये, हाड़ को कँपकँपानेवाली ठंड में, थ्री व्हीलर से मैं और नीतीश, बाबूजी के पास पटना से चालीस किलोमीटर दूर बख्तियारपुर जा धमके।

कुप्रथाओं से मुक्त विवाह : नीतीश की शर्तों पर उनके पिता को कोई आपत्ति नहीं हुई. यहां तक की पारम्परिक ढंग शादियों से अलग सिर्फ माला पहनाकर एक दूसरे से विवाह करने के नीतीश के प्रस्ताव पर एक बार मंजू का परिवार असहज हुआ. लेकिन बाद में उन्हें भी यह अहसास हुआ कि नीतीश जैसा कुलीन और सुशील बालक दिन में भी चिराग लेकर ढूंढने से नहीं मिलेगा. इसलिए दोनों का विवाह नीतीश की शर्तों एक अनुरूप ही तय हुआ. बाद में विवाह के जो कार्ड छपे उस पर मंजू के पिता ने पहली पंक्ति में लिखवाया- ‘तिलक दहेज एवं शोषण युक्त कुप्रथाओं से मुक्त’ और अंत में एक आग्रह भी हुआ था- पुष्प माला एवं आशीर्वचनों के अतिरिक्त किसी प्रकार के उपहार का आदान-प्रदान नहीं होगा. 

विवाह बना इतिहास : अंततः 22 फरवरी 1973 को अपराह्न 3 बजे पटना के लाला लाजपत राय हॉल में ठसाठस भरे लोगों के बीच नीतीश ने एक नया इतिहास बनाया. नीतीश और मंजू ने मालाओं का आदान-प्रदान किया और नीतीश ने मंजू की मांग में सिंदूर भरा. फिर तो बस तालियां ही तालियां ! 

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