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RJD ने उपेंद्र कुशवाहा को लिखा पत्र, राजभवन मार्च को छोड़कर पीएम मोदी से मिलने की दी सलाह...

RJD ने उपेंद्र कुशवाहा को लिखा पत्र, राजभवन मार्च को छोड़कर पीएम मोदी से मिलने की दी सलाह...

PATNA/DELHI: बिहार सरकार ने जातीय गणना के आंकड़ों को जारी कर दिया है। जिसके बाद से ही राज्य की सियासत गरमाई हुई है। विपक्ष के द्वारा लगातार गणना के आंकड़ों का विरोध किया जा रहा है। इसी कड़ी में रालोजद के द्वारा जातीय गणना के आंकड़ों के विरोध में 14 अक्टूबर को राजभवन मार्च निकाला जाएगा। वहीं रालोजद के विरोध मार्च पर राजद ने हमला बोला है। दरअसल, RJD के प्रवक्ता सुबोध मेहता ने उपेन्द्र कुशवाहा को पत्र लिखकर राजभवन मार्च की जगह PM मोदी से मिलने की सलाह दी है। राजद ने पत्र लिखकर कहा कि, आप जाति जनगणना को लेकर राज्यपाल के यहां मार्च करने वाले हैं। इसे सिर्फ और सिर्फ एक सस्ती राजनीतिक हथकंडे के अलावा और क्या कहा जा सकता है, क्योंकि जिन मुद्दों पर आपने केंद्र सरकार को छोड़कर इस्तीफा दिया था, वे आज भी जस के तस मौजूद हैं और यह कहने पर मजबूर कर रहे हैं कि आप राजनीतिक रूप से दिवालिया होकर केवल कुशवाहा समाज और पिछड़े वर्ग को हमेशा की तरह फिर दिग्भ्रमित कर रहे हैं।

राजद ने उपेंद्र कुशवाहा पर हमला करते हुए कहा कि, इससे रालोजद को तो कोई उपलब्धि मिलती नहीं उल्टे युवा वर्ग का आंदोलन अपनी जड़ से दूर हो जाता है। यह सब आप सिर्फ अपनी गवाई हुई संसद सदस्यता को प्राप्त करने के व्यक्तिगत लाभ के लिए कर रहे है। अब आप पर कोई भरोसा नहीं करता ! कुशवाहा समाज के भरोसे और सम्मान को ही आप ने बेचा है! बेतिया और मोतिहारी में जो RLSP के सदस्य भी नहीं थे उन्हें झटके में टिकट देकर आपने कितने की मलाई मारी? दिल्ली में जिस घर में आप रह रहे हैं, उसमें कितना और किसका मलाई मिला? अनेकों युवा कार्यकर्ताओं की आपने जो राजनीतिक हत्या किया और यह कहना गलत नहीं होगा कि आप ने RLSP को ही बेच दिया उसके लिए आप को कितना मलाई मिला? पच गया या बाकी है? अब आप पर कोई भरोसा नहीं करता इसलिए आप बौखला गए है ! जैसा कि ज्ञात है कि 1931 का बेस डेटा हमारे सामने है जिसमें यादव 11 % है, कोइरी जाति का प्रतिशत 4.1% है और कुर्मी जाति 3.6 % है जबकि बिहार कास्ट सर्वे 2022 में यादव 14.27,कोइरी 4.21+दांगी 0.26% = 4.47% है , जबकि कुर्मी 2.8% है।1931 से लेकर आज तक बिहार का क्षेत्रफल घटा है और जातीय घनत्व में भी बदलाव आया है। 

राजद ने कहा कि, जैसाकि आपको पता है कि 1936 में बिहार से कटकर ओडिसा अलग राज्य बन गया और 2000 में बिहार से कटकर झारखंड अलग राज्य बन गया। जिसका प्रभाव अभी की जाति जनगणना में दिख रहा है पर इन वैज्ञानिक बातों से परे बिहार की मासूम जनता को आप दिग्भ्रमित कर रहे हैं। अगर इसके बावजूद भी आपको लगता है कि आपको गरीबों और वंचितों के लिए कुछ करना है तो आप प्रधानमंत्री से समय लेकर 2011 के जाति जनगणना को सार्वजनिक करवाइये। जैसाकि आपको पता है कि पिछली बार 2011 में जनगणना की भी गयी तो जनता से उसके आँकड़े छिपाए गए । जाति जनगणना की मांग को लेकर लालू प्रसाद यादव लगातार अपनी आवाज उठाते रहे और 1998 में देवगौड़ा सरकार ने निर्णय लिया कि 2001 की जनगणना में जाति की गिनती होगी। लेकिन अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ने इसे खारिज कर दिया। यूपीए एक की सरकार में लालू यादव ने पुरजोर वकालत की कि जाति जनगणना होनी चाहिए तब जाकर सरकार इसके लिए तैयार हुई और 2011 के सेन्सस के साथ साथ सोशियो इकनोमिक और कास्ट सेन्सस कराया गया।               

यूपीए के समय जाति जनगणना शुरू हुई थी व एनडीए के शासनकाल में खत्म हुई। भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों से डेटा लिया गया। 3 जुलाई 2015 को तबके केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि भारत के 640 डिस्ट्रिक्ट में सेन्सस पेपरलेस इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से किया गया है और डेटा कलेक्शन में एरर होने के कारण इसे सार्वजनिक करने में देरी हो रही है। रजिस्ट्रार जनरल और सेन्सस कमिश्नर ने वेरिफिकेशन और करेक्शन मॉड्यूल के तहत डेटा एरर को ठीक किया जाएगा। रजिस्ट्रार जनरल एंड सेन्सस कमिश्नर ने 2016 में पार्लियामेंट्री पैनल (स्टैंडिंग कमिटी ऑन रूरल डेवलोपमेन्ट) को कहा कि 99% जाति जनगणना के डेटा एरर फ्री है जोकि रिलीज किया जा सकता है। रजिस्ट्रार जनरल ने कहा कि 118 करोड़ जनसंख्या का सर्वे किया गया है जिसमें 1.34 करोड़ व्यक्तियों के डेटा में एरर था। यह भी बात आश्चर्य ही पैदा करती है कि इन आंकड़ों की गड़बड़ी को ठीक करने के लिए तबके नीति आयोग के उपाध्यक्ष प्रोफेसर अरविंद पनगढ़िया के नेतृत्व में एक कमिटी बनाने की घोषणा हुई। बाद में सरकार ने संसद में जानकारी दी कि इस कमिटी के कभी गठन ही नहीं हुआ और कोई बैठक नहीं बुलाई गई। अरविंद पनगढ़िया अब नीति आयोग छोड़कर कोलंबिया यूनिवर्सिटी वापस चले गए हैं। 

राजद ने कि, इतना ही नहीं भारत सरकार ने अक्टूबर 2017 को घोषणा की थी कि ओबीसी में पिछड़ गई जातियों को आरक्षण में हिस्सेदारी देने के लिए ओबीसी का बंटवारा किया जाएगा। इसके लिए एक आयोग जस्टिस जी.रोहिणी की अध्यक्षता में गठित किया गया और रिपोर्ट देने के लिए उसे 12 हफ्ते का समय दिया गया लेकिन आयोग की रिपोर्ट सितंबर 2023 में आई है। खबर के अनुसार ओबीसी जातियों को चार सब केटेगरी में डाला जाएगा जिसमें 27 % आरक्षण में से ही बंटवारा किया जाएगा। पहली केटेगरी को 2% आरक्षण,दूसरी को 6% आरक्षण, तीसरी को 9% आरक्षण और चौथी केटेगरी को 10% आरक्षण दिया जाएगा। वहीं सरकार ने सदन में कहा है कि केंद्र सरकार जाति जनगणना कराने नहीं जा रही है। ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि जब जाति जनगणना ही नहीं हो रही तब जातियों का कैटेगराईज़ेशन करने के लिए किस आधार पर आयोग बनाया गया था।सरकार दिग्भ्रमित कर रही है और सारा ध्यान आपस में झगड़ा कराने पर आतुर है ताकि उनको वोटों का फायदा हो सके। जाति जनगणना आधुनिक समाज के निर्माण में मील का पत्थर साबित होगी और वंचितों को मुख्यधारा में तीव्र गति से लाया जा सकेगा ! कृप्या अपनी मध्यकालीन सोच की जकड़न से समाज को मुक्त कीजिये और वैज्ञानिक आंकड़ों का अवलोकन कीजिए।  

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