News4Nation: सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस गोगोई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने बिहार के बाहुबली पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन को सिवान के चर्चित तेज़ाब कांड में मिली उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है. इस मामले में शहाबुद्दीन को 9 दिसंबर, 2015 को निचली अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जिसे 30 अगस्त, 2017 को पटना हाई कोर्ट ने बरक़रार रखा था. उस खौफनाक घटना के एकमात्र चश्मदीद गवाह मृतक के तीसरे भाई ने जो कहानी सुनाई थी, उसे याद कर आज भी लोग सिहर जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ शहाबुद्दीन अब ताउम्र सलाखों के पीछे रहना तय हो गया है. अपराध की सीढियो के सहारे राजनीति के गलियारे में पहुंचने वाले शहाबुद्दीन को अभी तक दो उम्रकैद और 30 साल जेल की सजाएं सुनाई जा चुकी है.
तेजाब से पहले नहलाया फिर शवों को लगा दिया ठिकाने
बिहार के सिवान जिले के प्रतापपुर गांव की पहचान मो. शहाबुद्दीन से होती है. एक जमाने में इस गांव का खौफ सिवान में सिर चढ़कर बोलता था. इसी गांव में 16 अगस्त 2004 की रात उन दो भाइयों की हत्या कर दी गई थी, जिसकी सजा शहाबुद्दीन को मिली है. चश्मदीद के मुताबिक उस रात पकड़कर लाए गए दोनों सगे भाई हाथ जोड़े छोड़ देने की गुहार लगाते रहे, लेकिन साहब नहीं माने. भारी आवाज में आदेश जारी हुआ और अगले ही पल दोनों को तेजाब से नहलाया जाने लगा. दोनों की तड़प-तड़पकर मौत हो गई. अब हत्याकांड के साक्ष्य को छिपाने की बारी थी. इसे भी बखूबी अंजाम दिया गया. शवों को टुकड़ों में काटकर पहले बोरियों में भरा गया. फिर उसे ठिकाने लगा दिया गया. सिवान के गौशाला रोड स्थित व्यवसायी चन्द्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू को वो दिन भूले नहीं भूलता. 16 अगस्त 2004 की सुबह भूमि विवाद के निपटारे को लेकर पंचायत हो रही थी. इसी बीच बाहर से आए कुछ लोगों ने धमकी दी. विवाद बढ़ा तो मारपीट हो गई. कहा जाता है कि यह मामला शहाबुद्दीन तक पहुंचा. उसी दिन शहर के दो भिन्न गल्ला दुकानों से चंदा बाबू के दो पुत्रों गिरीश व सतीश का अपहरण कर लिया गया. गुंडों ने तीसरे पुत्र राजीव रोशन को भी उठा लिया. फिर शुरू हुआ उन दिनों सिवान जेल में बंद 'साहब' का इंतजार. साहब आये और अपने अंदाज में 'न्याय' कर दिया. घटना के एकमात्र गवाह रहे राजीव रोशन की भी हत्या कर दी गई, हालांकि मरने के पहले उसने कोर्ट में अपना बयान दे दिया था.
तीसरे भाई ने सुनाई पूरी कहानी
अन्य मामलों की तरह यह मामला भी दब जाता, अगर इसे दोनों मृतकों के तीसरे भाई ने देख नहीं लिया होता. हत्या का प्लान तो तीसरे भाई का भी था लेकिन वह भागने में सफल रहा था. इस मामले में सबकुछ खो चुके मृतकों के पिता चंदा बाबू ने भी बहादुरी दिखाई. उन्होंने किसी धमकी की परवाह किए बगैर न्याय की जग जारी रखी. वर्ष 2010-11 में अपहृतों के बड़े भाई राजीव रोशन ने चश्मदीद गवाह के रूप में सिवान मंडल कारा में गठित विशेष अदालत को कहा था कि उसकी आंखों के सामने उसके दोनों भाईयों की हत्या शहाबुद्दीन के आदेश पर प्रतापपुर गांव में कर दी गई थी
सिवान में 'साहेब' का था अपना कोर्ट, खुद थे जज
सिवान में शहाबुद्दीन का अपना कोर्ट था. साहेब का फरमान आखिरी होता था. वे अपना दरबार लगा 'न्याय' करते तो उनके गुर्गे पंचायत लगा कर 'न्याय'.