समीक्षा: 'श्रीदुर्गाचरितमानस'...श्रीदुर्गासप्तशती का रामचरितमानस की भाषा शैली में काव्य रूपांतरित एक अनुपम कृति

PATNA: श्री स्वामी आगमननंद जी द्वारा विरचित महाकाव्य श्री दुर्गा चरित मानस का अवगाहन किया। इसको पढ़ते ही मन नाच उठा, रोम-रोम पुलकित हो उठा। श्री पांडे जी ने जनमानस के कल्याण हेतु प्रसाद गुण से रससिक्त पंक्तियों की रचना कर गोस्वामी तुलसीदास जी की भांति चौपाई एवं दोहों के माध्यम से हिंदी भाषी लोगों के लिए जो संस्कृत के क्लिष्ट शब्दों का उच्चारण करने में असमर्थ हैं जिन्हें मात्रा अनुस्वारा आदि के उच्चारण दोष के कारण फल प्राप्ति से वंचित होना पड़ता है, उन सभी धर्म प्रेमी मातृभक्तों के मनोगत भावों के अनुकूल श्री दुर्गा सप्तशती का हिंदी पदनुवाद  कर अत्यंत पुनीत कार्य किया है।

इस काव्य ग्रंथ को सर्वजन सुलभ सर्वजन हिताय बनाने में श्री पांडे जी को सराहनीय सफलता प्राप्त हुई है ।इस रचना से उपासकों को नवीन स्फूर्ति एवं प्रेरणा प्राप्त होगी जिससे प्रमोपास्य मंगलमयी जगदंबा की सफल उपासना में कृतकृत्य होंगे।

 हम निसंकोच कह सकते हैं कि भगवान राम ने जैसे शक्ति पूजा की थी ठीक वैसे ही लौकिक रामचंद्र ने भगवती के चरित्र को समझा ही नहीं अपितु उसकी भावनाएं रस सरिता में इस तरह गोता लगाया कि इसकी चासनी इसके तन-मन को भिगो डुबोकर अपने स्वरूप में परिणत कर ली अर्थात रसिक हो गए।उस रस के रसिक जिसे पान करने के लिए जन्म जन्मांतर के पुण्य रूपी कर्म के जल से सिंचित वृक्ष की अवस्था होने पर उसके फल को पाया जा सकता है।

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 श्री पांडे जी का सत्य प्रयास स्तुत्य है। श्री स्वामी जी संस्कृत के धार्मिक लोकोपयोगी ग्रंथों को हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करने का जो शिव संकल्प लिया है परमेश्वर से प्रार्थना है कि उनका संकल्प सिद्ध हो इस पुनीत कार्य के लिए हृदय से अभिनंदन करता हूं और मंगल कामना करता हूं कि श्री अगमानन्द जी महत सत प्रयास सर्वदा निर्बाध गति से चलता रहे। आशा है कि श्री स्वामी जी संस्कृत के धार्मिक ग्रंथों को इसी प्रकार अनुवाद प्रस्तुत करके जन कल्याण करते रहेंगे।

समीक्षक डॉ प्राण मोहन कुमार, पूर्व प्राचार्य नित्यानंद वेद महाविद्यालय, वाराणसी