PATNA: बिहार में अफसरों की मनमानी चरम पर है. न सिर्फ मनमानी बल्कि सरकारी सेवक दोनों हाथ से माल भी लूट रहे. अधिकांश विभागों में ऐसे अधिकारी-कर्मी हैं जो माल बनाने में लगे हैं. क्षुधा की आग शांत करने वाले निगम में बिहार प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी थे...सिंह साहब, वे निगम में कुंडली मार कर बैठे थे . यह भी बताया जाता है कि इस दौरान सिंह साहब ने जमकर माल बटोरा. शिकायत से विभागीय मंत्री जी भी परेशान. हिदायत के बाद भी सिंह साहब बाज नहीं आ रहे थे. अंत में मंत्री जी कुंडली मार कर बैठे सिंह साहब के खिलाफ पीत पत्र लिख दिया. पीत पत्र में मंत्री जी ने कुंडलीमार सिंह साहब की संपत्ति जांचने के आदेश दे दिए. इसके बाद तो भूचाल मच गया. सिंह साहब के हाथ-पैर फूलने लगे. हांथ-पांव फूले भी तो क्यों नहीं..संपत्ति जांचने की जो बात थी ? हालांकि सिंह साहब अकूत संपत्ति के खुलासे से बचने के लिए कई हथकंडे अपना रखे थे. लेकिन जांच होने पर सारी चालाकी धरी जाती. वैसे जांच हुई या नहीं, यह तो पता नहीं, लेकिन सिंह साहब की संपत्ति छुपाने की कई चालाकी में सिर्फ एक फार्मूला आज हम आपको बता रहे हैं.
सिंह साहब के आश्रितों के नाम पर एक ही दिन में दो व्यवसायिक संपत्ति
गरीबों के निवाले को खाकर मोटे हो चुके सिंह साहब से मंत्री जी परेशान. मोटे हो चुके सिंह साहब अब मंत्री जी को भी बाईपास कर रहे थे. लेकिन मंत्री जी ने ऐसा हथौड़ा चलाया कि सिंह साहब चारो खाने चित्त हो गए. सिंह साहब से न सिर्फ मंत्री बल्कि विभाग ने अन्य कर्मी-अधिकारी भी खुश नहीं थे. हालांकि संभावित खतरे के मद्देनजर वे पहले से ही सचेत थे. लिहाजा संपत्ति तो बनाई लेकिन खुद के नाम पर नहीं. ऐसा इसलिए कि अगर जांच हो तो खुद पाक-साफ दिखें, पूरी प्लानिंग के तहत ही सिंह साहब काम कर रहे थे. हालांकि गड़बड़ी करने वाला कोई न कोई सबूत छोड़ ही देता है. कुछ ऐसा ही सिंह साहब के साथ भी है. गरीबों के निवाले से खुद मोटे हो चुके सिंह साहब कागज में भले ही पतले दिख रहे हों, लेकिन वास्तिवक स्थिति ऐसी नहीं है. डिपेंडेंट को ही मोटा बना दिया. डिपेंडेंट को स्वावंलबी बता कर राजधानी में संपत्ति अर्जित की गई. वर्ष 2018 के अंत में राजधानी से सटे शहरी इलाके की मुख्य सड़क पर एक ही दिन में करोड़ों की दो व्यवसायिक संपत्ति अर्जित की गई. दोनों व्यवसायिक संपत्ति में दोनों आश्रित का नाम है. यानि दोनों प्रोपर्टी में सिंह साहब के दोनों आश्रितों की हिस्सेदारी. इसके बाद व्यवसायिक प्रोपर्टी पर जमकर कारोबार हो रहा. इस तरह से सिंह साहब खूब फल-फूल रहे.
बिहार प्रशासनिक सेवा के अफसर हैं 'सिंह साहब'
सिंह साहब बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं. लंबे समय तक क्षुधा की आग शांत करने वाले निगम में कुंडली मार कर बैठे थे. कहा जाता है कि निगम में सिंह साहब की तूती बोलती थी. बड़े पद पर थे लिहाजा चढ़ावा भी उसी हिसाब से आता था. भारी बदनामी हो गई थी. उगाही पर सिर्फ अपना अधिकार जताते थे. लिहाजा मामला फंस गया. मामला ऐसा फंसा कि वहां से हटाने के लिए पैरवी लगानी पड़ी.
पत्र के बाद तो खलबली मच गई..भागने के जुगाड़ में लग गए
सिंह साहब बेदाग नहीं बल्कि चेहरे पर दाग ही दाग था, भले ही वो बाहर में दिख नहीं रहा था. लिहाजा भारी टेंशन में पड़ गये. जानकार बताते हैं कि पटना से लेकर दूसरे प्रदेश यहां तक राष्ट्रीय राजधानी में बेटों-रिश्तेदारों के नाम पर संपत्ति अर्जित की है. पीत पत्र में निगरानी से संपत्ति जांचने के आदेश के बाद सिंह साहब भारी परेशानी में पड़ गए थे. इसके बाद वे डैमेज कंट्रोल में जुट गए. एक तरफ मंत्री जी को शांत करने का जुगाड़ देखने लगे तो दूसरी तरफ निगम से भागने की कोशिश. खैर महीनों बाद सिंह साहब का ट्रांसफऱ हो गया. अब वो माननीयों से जुड़े विभाग में काम देख रहे हैं.