PATNA/NEW DELHI : मोदी कैबिनेट का विस्तार हो चुका है और बिहार से आरसीपी सिंह और पशुपति पारस को उनके मंत्रालय भी सौंप दिया गया है। लेकिन, इसने बिहार की राजनीति में लेकर चर्चा शुरू हो गई है कि आखिर बिहार एनडीए से सुशील मोदी और जदयू के दिग्गज नेता ललन सिंह को मौका क्यों नहीं मिला। केंद्रीय मंत्री बनने की रेस में इन दोनों नेताओं को सबसे आगे बताया गया था। यहां तक कि सुशील मोदी को जब डिप्टी सीएम के पद से हटाया गया था तो यह चर्चा थी उन्हें केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और अंतिम समय में सुमो रेस से बाहर हो गए। उसी तरह जदयू से ललन सिंह को मौका नहीं मिलना भी बिहार की राजनीति की समझ रखनेवालों के लिए बेहद चौंकानेवाला था।
अब इन दोनों नेताओं को मंत्री नहीं बनाए जाने को लेकर बातें शुरू हो गई हैं। विशेषकर ललन सिंह को आखिरी समय पर लिस्ट से बाहर करने को लेकर कहा जा रहा है कि बिहार की राजनीति में उनका कद इतना बड़ा हो गया है कि उससे कम वह कुछ भी नहीं ले सकते थे। ललन सिंह का कद बिहार में नीतीश कुमार के बराबर माना जाता रहा है। पार्टी में वह नीतीश से एक पायदान ही नीचे थे। जाहिर है कि ललन सिंह के लिए केंद्र में बड़े मंत्रालय की उम्मीद थी, जो कि मौजूदा स्थिति में संभव होता नजर नहीं आ रहा था। ललन सिंह कैबिनेट में जगह चाहते थे। जब यह निश्चित हो गया कि मोदी कैबिनेट में कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं मिलेगी, तो ललन सिंह लिस्ट से बाहर हो गए।
पार्टी की आंतरिक लड़ाई में पिछड़े सुमो
यही स्थिति भाजपा से मंत्री बनने की उम्मीद पाले बैठे सुशील मोदी के साथ भी हुआ। ललन सिंह की तरह बिहार भाजपा में सुशील मोदी का कद बहुत बड़ा है। ऐसी चर्चा थी कि मोदी कैबिनेट में उन्हें मौका मिल सकता है, लेकिन यहां सबसे बड़ी बाधा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल बन गए। सुशील मोदी के साथ ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल भी केन्द्र में मंत्री बनने के लिए लगातार कोशिशें कर रहे थे। सुशील मोदी की दावेदारी को संजय जायसवाल ने एक तरह से चुनौती दे रखी थी।सुशील मोदी की तुलना में संजय जायसवाल भाजपा के केन्द्रीय संगठन की लॉबी में ज्यादा मजबूत थे। संजय जायसवाल को ये मजबूत लॉबी भले ही केन्द्रीय मंत्रिमंडल तक नहीं पहुंचा पाई, लेकिन इस लॉबी ने सुशील मोदी को मंत्री बनने से जरूर रोक दिया। इन सबके बीच फायदा चुनाव में बिहार प्रभारी बनाए गए भुपेंद्र यादव को मिला। उनके नेतृत्व में भाजपा प्रदेश में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई। जिसके बाद अब भूपेंद्र यादव केंद्र में श्रम संसाधन मंत्री बनाया गया है। माना जा रहा है कि कैबिनेट विस्तार के बाद बिहार भाजपा में मतभेद उभर कर सामने आ सकता है।