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माँ के एक फ़ोन कॉल पर कनाडा से सपरिवार बेतिया पंहुचा बेटा, खुद शुरू किया छठ पूजा की तैयारी

माँ के एक फ़ोन कॉल पर कनाडा से सपरिवार बेतिया पंहुचा बेटा, खुद शुरू किया छठ पूजा की तैयारी

BETTIAH : पश्चिम चंपारण ज़िला के बगहा में एक छठव्रती बुजुर्ग मां के एक फ़ोन कॉल से कनाडा में वर्षों से रह रहा NRI परिवार वतन लौट आया है । दरअसल बिहार के महापर्व को लेकर पटखौली थाना से सटे नारायणापुर वार्ड नम्बर 5 निवासी मनोरमा देवी ने इस बार NRI बेटे को जिम्मेवारी सौंपी है। बीमारी कि वजह से इस बार मां छठ बैठाने जा रही हैं। यह सुनते ही एनआरआई बेटा का मन बेचैन हो उठा। रात दिन एक करके उसने असम्भव से लगने वाले कार्य को सम्भव किया और मां की जगह स्वयं छठ करने सात समंदर पार कर बिहार के बगहा आ पंहुचा। 

इस बार नरैनापुर बगहा के छठ घाट पर इंजीनियर मृणाल प्रताप सिंह स्वयं छठ करने पहुंचे हैं औऱ यहीं वज़ह है कि घर परिवार में बेहद ख़ुशी व हर्षोल्लास के साथ नहाय खाये के बाद आज खरना का प्रसाद छठी मईया की गीतों के साथ बना रहे हैं । कनाडा के टीसीएस में वर्षों से कार्यरत सॉफ्टवेयर इंजीनियर मृणाल व उनकी पत्नी ई. सुरभि बताते हैं कि सबसे कठिनाई बच्ची के लिये ओवरसीज कार्ड ऑफ इंडिया(ओसीआई कार्ड) बनवाने में हुई। फिर एक दुधमुंही बच्ची के साथ 16 घंटे की हवाई यात्रा व लगभग 24 घंटे की रेलयात्रा आसान नही था। लेकिन उनके आंखों के सामने बचपन की वह तस्वीरें नाचने लगी थीं जो छठ की यादों को और जीवंत करने लगा लिहाज़ा वतन वापसी हुई है। 

बचपन मे वे दउरा माथा पर लेकर नारायणी नदी के तट पर जाया करते थे। नीम अंधेरे गन्ना व हाथी के साथ कोसी भरने जानते थे। फिर घाट से ठेकुआ के परसादी का सिलसिला शुरू हो जाता था। बचपन की स्मृतियों के सजीव होने के साथ ही यह भी ज्ञान हुआ कि कहीं मेरे चलते परिवार की यह परंपरा टूट न जाये औऱ आस्था व सूर्य उपासना का अनुष्ठान छूट न जाये । इसलिये रात-दिन एक करके विदेश यात्रा को संभव बनाया। 

छठव्रती इंजीनियर मृणाल बताते हैं कि दादी ने उम्र के एक पड़ाव पर इस व्रत व विरासत को उनके मां को सौंप दिया था। फिर मां ने बड़ी निष्ठा के साथ दशकों इस व्रत का निर्वाह किया। कई बार मैं आ जाता था। लेकिन अक्सर महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट कार्यरत होने की वजह से छुट्टी नहीं मिल पाती थी और आना सम्भव नहीं हो पाता था। लेकिन इस दफे मां ने असमर्थता जतायी तो वे खुद को रोक नहीं सके। लेकिन सबसे बड़ी बाधा दुधमुंही बच्ची का कनाडा का पासपोर्ट व इंडिया का ओसीआई कार्ड बनवाना था। बता दें कि कोरोना काल के बाद भीड़ की वजह से वतन वापसी बड़ी मुश्किल था। लेकिन कड़ी मेहनत व मशक्क़त के बाद NRI दम्पति का दुधमुंही बच्चे के साथ वतन वापसी सम्भव हो पाया और सपरिवार अपने गाँव नारायणपुर बगहा आ सके । लेकिन सबसे बड़ी बात चार दिनों के अनुष्ठान में लोक आस्था और सूर्य उपासना के साथ अर्घ्य देने का है जिसमें मन्नतें निहित होती हैं लिहाज़ा NRI दम्पति को बड़ी खुशी है कि लोकआस्था के महापर्व में अपने परिवार के साथ इस बड़ी जिम्मेवारी औऱ अनुष्ठान का निर्वहन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । इंडो नेपाल सीमा पर स्थित नारायणी गण्डक नदी तट पर छठ घाट व रास्ते तैयार हैं जहां लाखों छठव्रती व श्रद्धालु रविवार को अस्ताचलगामी सूर्य की उपासना व अर्घ्य देने जुटेंगें वहीं सोमवार को अहले सुबह भगवागन भास्कर को अर्घ्य देकर महापर्व छठ का समापन किया जायेगा ।

बेतिया से आशीष की रिपोर्ट

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