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सुप्रीम कोर्ट से देशभर के वकीलों को बड़ी राहत, अब राज्य बार काउंसिल नहीं कर सकेगा मनमानी

सुप्रीम कोर्ट से देशभर के वकीलों को बड़ी राहत,  अब राज्य बार काउंसिल नहीं कर सकेगा मनमानी

पटना- सुप्रीम कोर्ट ने नये वकीलों को एक बड़ी राहत देते हुए  सामान्य वर्ग के वकीलों के लिए नामांकन शुल्क 750 रुपये से अधिक नहीं लेने का आदेश दिया।साथ ही कोर्ट ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के वकीलों के लिए नामांकन शुल्क 125 रुपये से अधिक नहीं लेने को कहा है।

कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि राज्य बार काउंसिल विविध शुल्क,स्टाम्प ड्यूटी या अन्य के नाम पर शुल्क  नहीं ले सकता। राज्य बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया अधिवक्ता अधिनियम की धारा 24(1)(एफ) के तहत तय राशि से अधिक की राशि अधिवक्ताओं को रोल में शामिल करने के लिए कोई राशि नहीं ले सकता।

अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 24(1)(एफ) के तहत सामान्य वर्ग के अधिवक्ताओं के लिए राज्य बार काउंसिल को नामांकन शुल्क 600/- रुपये और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को 150/- रुपये निर्धारित किया गया है। वही एससी/एसटी वर्ग के अधिवक्ताओं के लिए यह राशि 100 रुपये और 25 रुपये तय किये गये है।

लेकिन देश के विभिन्न स्टेट बार काउंसिल तय राशि से काफी ज्यादा रुपया लेती हैं। कुछ राज्यों में नामांकन शुल्क 40 हजार रुपये तक है।कोर्ट का कहना था कि संसद ने एडवोकेट एक्ट में नामांकन शुल्क के लिए राशि तय कर रखी है।

इसके बावजूद हजारों रुपये लिये  जाते हैं। बार काउंसिल इसका उल्लंघन नहीं कर सकती। धारा 24(1)(एफ) एक राजकोषीय विनियामक प्रावधान है।इसका पालन सख्ती से की जानी चाहिए और संसद ने अपनी संप्रभु शक्ति के प्रयोग कर राशि निर्धारित की है।

ऐसे में राज्य बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया, कानून के तहत प्रतिनिधि होने के नाते, संसद द्वारा निर्धारित राजकोषीय नीति में बदलाव नहीं कर सकती।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़,जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने गौरव कुमार की ओर से दायर अर्जी पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाया।

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि नामांकन के लिए पूर्व शर्त के रूप में अत्यधिक शुल्क वसूलना, विशेष रूप से वंचित वर्गों से संबंधित लोगों के लिए, उनके पेशे को आगे बढ़ाने में बाधाएँ उत्पन्न करता है। 

नामांकन के समय उम्मीदवारों के पास बहुत कम पैसा होता है।उन्हें बार काउंसिल की ओर से अत्यधिक राशि की माँगों को पूरा करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

हालांकि कोर्ट ने बार काउंसिल को राहत देते हुए कहा कि पूर्व में नामांकन के रूप में वैधानिक राशि से अधिक एकत्र किए गए नामांकन शुल्क को वापस करने की आवश्यकता नहीं है।कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बार काउंसिल वकीलों के लिए किए गए कार्य के लिए अन्य शुल्क लगाने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन नामांकन शुल्क के नाम पर नहीं लगा सकता।

आवेदकों की ओर से कहा गया कि देश के विभिन्न राज्यों के स्टेट बार काउंसिल अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 24(1) का उल्लंघन कर अत्यधिक नामांकन शुल्क वसूल रही हैं।

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