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MP-MLA पर चल रहे मुकदमों लाएं तेजी, उच्च न्यायालयों को आदेश को सुप्रीम कोर्ट का आदेश, कहा- स्पेशल बेंच बना लें हाई कोर्ट

MP-MLA पर चल रहे मुकदमों लाएं तेजी, उच्च न्यायालयों को आदेश को सुप्रीम कोर्ट का आदेश, कहा- स्पेशल बेंच बना लें हाई कोर्ट

डेस्क- सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों के निपटारे में तेजी लाई जाए। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को देश भर के उच्च न्यायालयों को आदेश दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि वे खुद ऐसे मामले दर्ज करें और उनकी मॉनिटरिंग करें। खासतौर पर उन मामलों को प्राथमिकता दें, जिनमें उम्रकैद या फिर फांसी तक की सजा का प्रावधान हो। अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट इसके लिए स्पेशल बेंच भी बना सकते हैं। हत्या के मामलों में दोषी ठहराए जाने पर उम्रकैद से लेकर हत्या तक की सजा का प्रावधान है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि ऐसे मामलों में टाइमलाइन को लेकर कोई निर्देश नहीं दिए जा सकते।

यहां तक कि भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमों के निपटारे के लिए एक विशिष्ट समयसीमा निर्धारित करने के लिए कोई समान निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है, इसने कहा कि सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को स्वत: संज्ञान लेना होगा। अपने अधिकार क्षेत्र में लंबित मुकदमों की प्रभावी निगरानी और निपटान के लिए कार्यवाही को प्रेरित करें।

विशेष पीठ आवश्यकतानुसार मामले को नियमित अंतराल पर सूचीबद्ध कर सकती है। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मामलों के शीघ्र और प्रभावी निपटान के लिए आवश्यक आदेश और निर्देश जारी कर सकते हैं, ”पीठ ने कहा, जिसमें न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और मनोज मिश्रा भी शामिल हैं, विशेष पीठ का नेतृत्व या तो एचसी के मुख्य न्यायाधीशों द्वारा किया जा सकता है। इसमें आगे कहा गया है कि मौत की सजा या आजीवन कारावास वाले मामलों के बाद, पांच साल से अधिक की जेल की सजा वाले मामलों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय उन मामलों को भी सूचीबद्ध करेंगे जहां मुकदमों पर रोक लगा दी गई है और ऐसे मुकदमों में तेजी लाने के लिए सभी प्रयास किए जाएंगे।

चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट्स को उन मामलों की लिस्ट बनानी चाहिए, जिनका ट्रायल रुक गया है। ऐसे सभी मामलों में तेजी लानी चाहिए ताकि समय पर उनका निपटारा हो सके। अदालत ने एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की अर्जी पर यह आदेश दिया, जिसमें मांग की गई थी कि अदालत मौजूदा एवं पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ चल रहे मामलों में तेजी लाए। अदालत में सुनवाई के दौरान यह बात भी सामने आई कि देश भर में मौजूदा एवं पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ 5,175 केस लंबित हैं।

इनमें से 2,116 यानी करीब 40 फीसदी केस ऐसे हैं, जो 5 साल से ज्यादा वक्त से लंबित हैं। इनमें सबसे ज्यादा 1377 केस तो उत्तर प्रदेश के ही हैं। इसके बाद दूसरे नंबर पर बिहार है, जहां 546 केस लंबित हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र में 482 केस अभी लंबित हैं। इससे पहले 2014 में एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ आरोप तय होने के एक साल के अंदर मामलों का निपटारा हो जाना चाहिए।

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