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समानता और न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करनेवाला था आरक्षण बढ़ाने का फैसला, याचिकाकर्ता ने किया हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत

समानता और न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करनेवाला था आरक्षण बढ़ाने का फैसला, याचिकाकर्ता ने किया हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत

PATNA : नौकरियों में आरक्षण सीमा बढ़ाने को लेकर राज्य सरकार के फैसले पर हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए रोक लगा दी। मुख्य न्यायाधीश विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति हरीश कुमार की खंडपीठ ने कहा कि ये संशोधन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन हैं। इसके अतिरिक्त, माननीय खंडपीठ ने माना कि ये संशोधन विरोधाभासी हैं और इंदिरा साहनी के मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की नौ-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा रखी गई 50% की सीमा का उल्लंघन हैं।

इस दौरान हाईकोर्ट में आरक्षण सीमा बढ़ाने के फैसले के विरोध में याचिका दायर करनेवाले जहानाबाद निवासी भागवत कुमार ने बताया कि ये संशोधन बिहार सरकार द्वारा हाल ही में किए गए जनगणना सर्वेक्षण पर आधारित थे, जिसके आधार पर पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) के लिए आरक्षण का लाभ 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया गया था।

समानता और न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन

उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि ये संशोधन आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर उपरोक्त हाशिए पर रहने वाले वर्गों को आरक्षण लाभ देने के लिए लाए गए थे, हालांकि आरक्षण का लाभ केवल तभी दिया जा सकता है जब हाशिए पर रहने वाले वर्गों को विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों या विभिन्न पदों और सेवाओं पर पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है। इसलिए, माननीय पटना उच्च न्यायालय ने संशोधनों को खारिज कर दिया और माना कि वे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 16 के तहत निहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हैं, इसलिए समानता और न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

बता दें कि जहानाबाद के नोआंव के रहनेवाले भागवत कुमार की याचिका पर विशाल कुमार और अमित आनंद (सैनकस एडवोकेट्स और सॉलिसटर्स एलएलपी) पेश हुए। जिस पर हाईकोर्ट ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया।


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