वाराणसी- ज्ञानवापी मस्जिद एक बार फिर सुर्खियों में है. ज्ञानवापी मस्जिद के भूतल पर स्थित 400 वर्ग फुट के व्यास तहखाने में दृश्य और अदृश्य देवी-देवताओं की व्यास परिवार की ओर से पूजा का इतिहास 473 वर्ष पुराना है. व्यास पीठ की महत्ता का उल्लेख शास्त्रों में भी मिलता है. यहां पंचक्रोशी समेत काशी की परंपरा से जुड़ी अन्य परिक्रमाओं के लिए संकल्प लिए जाते थे. काशी विश्वनाथ धाम बनने से पहले ज्ञानवापी हाता स्थित व्यास परिवार का आवास भी कोई सामान्य भवन नहीं था. पुरातत्व विभाग ने ज्ञानवापी का सर्वे का काम पूर्ण कर लिया है. और अब इसका फैसला हो रहा है. ज्ञानवापी का इतिहास काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ा हुआ है.
पुरात्तविकों के अनुसार साल 1194 में मुहम्मद गोरी ने काशी स्थित विश्वनाथ मंदिर को लूटकर तोड़वा दिया था. इसके बाद मंदिर का पुनर्निमाण हुआ तो साल 1447 में जौनपुर के शर्की सुल्तान महमूद शाह ने मंदिर को तोड़वा कर मस्जिद बनवा दी. इससे कुछ इतिहासकार सहमत नहीं हैं. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि साव 1669 में औरंगजेब ने बाबा विश्वनाथ मंदिर के आधे हिस्से पर जामा मस्जिद बनाई थी. मस्जिद को अलग से बनवाकर मंदिर की नींव और मलबे का ही इसमें उपयोग किया गया था.
वर्ष 1735 ई. में इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई ने काशी विश्वनाथ मंदिर का जिर्णोद्दार कराया और इसे ज्ञानवापी परिसर बनवाया गया. ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास साल 1883-84 के राजस्व दस्तावेजों में है . इसे जामा मस्जिद ज्ञानवापी के तौर पर दर्ज है.साल 1809 में सनातन धर्मावलंबियों ने ज्ञानवापी मस्जिद को उन्हें देने की मांग की. 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी वाटसन ने ‘वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल’ को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर सनातन धर्मावलंबियों को हमेशा के लिए सौंपने को लिखा था,साल 1936 में एक केस पर वर्ष 1937 के फैसले में ज्ञानवापी को मस्जिद के तौर पर स्वीकार किया गया.
साल 1984 में विश्व हिन्दू परिषद् ने कुछ राष्ट्रवादी संगठनों के साथ मिलकर ज्ञानवापी मस्जिद के स्थान पर मंदिर बनाने के लिए अभियान चला तो साल 1991 में हिन्दू पक्ष की ओर से हरिहर पांडेय, सोमनाथ व्यास और प्रोफेसर रामरंग शर्मा ने मस्जिद और संपूर्ण परिसर में सर्वेक्षण और उपासना के लिए कोर्ट में एक रीट दायर किया. मस्जिद सर्वेक्षण के लिए के लिए दायर की गईं याचिका के बाद संसद ने उपासना स्थल कानून बनाया. तब आदेश दिया गया कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे में नहीं बदला जा सकता.
फिर साल 1993 में विवाद बढ़ने लगा तो इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसपर स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया. साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश की वैधता छह माह के लिए बताई. साल 2019 में वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले में सुनवाई शुरू हुई. साल 2021 में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी दी. 2022 में कोर्ट के आदेश के अनुसार ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का काम पूरा हुआ.
सानतन धर्म के प्राचीन ग्रंथों, पुराणों के अनुसार काशी में विशालकाय मंदिर में आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर शिवलिंग स्थापित है. इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है. ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने अपने कार्यकाल में पुन: जीर्णोद्धार करवाया था. शिव पुराण और लिंगपुराण में 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में उल्लेख मिलता है जिसमें काशी का ज्योतिर्लिंग प्रमुख माना गया है. काशी को विश्वेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है.
ज्ञानवापी मस्जिद की दीवारों पर स्वास्तिक, त्रिशूल और ॐ के निशान पाए गए हैं. इसमें मगरमच्छा का शिल्प है. जहां नमाज पढ़ी जाती है वहां पर दीवारों में जगह जगह श्री, ॐ आदि लिखे हुए हैं. स्तंभ अष्टकोण में बने हुए हैं जो कि हिन्दू मंदिरों में पाए जाते हैं. मस्जिद की ओर मुंह किए हुए नंदी इस बाता को दर्शाता है कि उस ओर शिवलिंग है. मस्जिद परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी मंदिर का होना इसका बाद का सबूत है.
सनातन धर्म के अनुसार काशी भगवान शिव के त्रिशुल की नोंक पर बसी है. रामचरित मानस के अनुसार भगवान शंकर को काशी से विशेष लगाव है इसका नाम काशीनाथ भी है.