बक्सर : बिहार में शराबबंदी के लागू हुए आठ साल से ज़्यादा वक्त हो चुका है, मोटे तौर पर शराबबंदी से बिहार को हर महीने करीब छह हजार करोड़ के नुकसान का दावा किया जाता है. इसका एक बड़ा हिस्सा शराब का अवैध कारोबार करने वालों के पास पहुंचने का आरोप भी लगता है. बिहार में भले ही सरकारी एजेंसियों का क़ानून को सख़्ती से लागू करने का दावा हो. इसके लिए सीमा पर चौकसी, अवैध ठिकानों पर छापेमारी सबकुछ हो रहा है और कानून तोड़ने के आरोप में लोगों पर मुकदमा और उनकी गिरफ़्तारी तक हो रही है. लेकिन इसके बावजूद शराबबंदी कानून को तोड़ने के मामले कम नहीं हो रहे हैं. कई बार अधिकारी भी तस्करों की साजिश के शिकार हो रहे हैं.
वहीं बक्सर उत्पाद अधीक्षक दिलीप पाठक की जमानत याचिका को विशेष न्यायाधीश ने खारिज कर दिया है. पिछले दिनों शराब तस्करी के मामले में उनका नाम सामने आने के बाद उन्होंने अग्रिम जमानत याचिका दाखिल की थी, जिसकी सुनवाई के बाद न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा था. मंगलवार को फैसला सुनाया गया. इसके बाद अब उत्पाद अधीक्षक पटना उच्च न्यायालय का रुख करेंगे. मामवा बक्सर औद्योगिक थाना से संबंधित है. दिलीप पाठक के नेतृत्व में शराब की बड़ी खेप पकड़ी गई थी. इस मामले में शराब तस्करी के एक बड़े मामले का पर्दाफास हुआ था.जिसमें दो होमगार्ड समेतआधा दर्जन लोगों की गिरप्तारी हुई थी.
कोर्ट के फैसले के बाद उत्पाद अधीक्षक की तरफ से विभागीय अधिवक्ता ने उनका पक्ष रखते हुए मामले में उनकी संलिप्तता से इनकार किया और कहा कि इस मामले में उन्हें फंसाए जाने की कोशिश हो रही है. जबकि उत्पाद अधीक्षक ने लगातार शराब तस्करों के विरुद्ध कार्रवाई की है.
बता दें उत्पाद विभाग के वीर कुंवर सिंह गंगा चेक पोस्ट से निकलने के बाद शराब से भरी वाहनों को औद्योगिक थाने की पुलिस ने जब्त किया था. बाद में इस मामले में उत्पाद विभाग के पोस्ट पर कार्यरत होमगार्ड के दो सिपाहियों के संलिप्तता की बात सामने आई और फिर उनके निशानदेही पर जो तस्कर पकड़े गए उनसे पूछताछ और अन्य साक्ष्यों के आधार पर उत्पाद अधीक्षक दिलीप कुमार पाठक का नाम भी प्राथमिकी में दर्ज किया गया. इसी आधार पर पुलिस उत्पाद अधीक्षक को गिरफ्तार किए जाने की बात कह रही है.
उत्पाद अधीक्षक दिलीप पाठक के वकील उमेश कुमार का कहना है कि कोर्ट से कोई वारंट पुलिस को नहीं मिला है. हालांकि प्राथमिकी में नाम होने के कारण उन्होंने अग्रिम जमानत के लिए आवेदन दिया था लेकिन यहां से जमानत याचिका अस्वीकृत हो गई. ऐसे में वह पटना उच्च न्यायालय का रुख करेंगे.
पाठक के वकील उमेश कुमार ने बताया कि उत्पाद अधीक्षक के द्वारा किसी शराब तस्कर से ना तो कभी संपर्क रखा गया है और ना ही कोई बातचीत की गई है. हालांकि, उन्होंने अमसारी निवासी मुन्ना सिंह से बातचीत की थी लेकिन यह बात केवल इसलिए की गई थी क्योंकि मुन्ना सिंह के एक भाई की मृत्यु जहरीली शराब पीने से हो गई थी. ऐसे में मुन्ना सिंह यह जानना चाह रहे थे कि मुआवजा आदि मिलने का क्या प्रावधान है? ऐसे में उत्पाद अधीक्षक पर तस्करों से मिलीभगत के आरोप बेबुनियाद हैं.
बता दें बिहार में शराबबंदी को लेकर पटना हाई कोर्ट ने पहले हीं नीतीश कुमार सरकार को फटकार लगाई थी. पटना हाई कोर्ट के न्यायाधीश पूर्णेन्दु सिंह ने सरकार के ऊपर शराबबंदी को सही तरीके से लागू नहीं करा पाने को लेकर फटकार लगाई और कहा कि इसी की वजह से प्रदेश में अपराध की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. अपने 20 पेज के फैसले में में न्यायधीश पूर्णेन्दु सिंह ने कहा था कि बिहार में शराबबंदी सही तरीके से नहीं लागू करवा पाने के कारण ही प्रदेश में रहने वाले लोगों और पर्यावरण पर प्रतिकूल असर देखने को मिल रहा है. कोर्ट ने यह भी कहा कि शराबबंदी लागू होने से पहले बिहार में चरस और गांजा की अवैध तस्करी और सेवन के मामले कम आया करते थे, मगर 2016 में शराबबंदी लागू होने के बाद से ऐसे मामलों में बढ़ोतरी देखने को मिली है.