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सिर्फ परंपरा कायम रखने तक सीमित हो गया है दिवाली पर शुभ माने जानेवाला कंडेल बनाने का काम, कारीगरों ने कहा - नहीं मिलता उचित दाम

सिर्फ परंपरा कायम रखने तक सीमित हो गया है दिवाली पर शुभ माने जानेवाला कंडेल बनाने का काम, कारीगरों ने कहा - नहीं मिलता उचित दाम

KATIHAR : दीपावली के अवसर पर घरों के छत पर रंग-बिरंगे फानूस कंडैल सजाने की परंपरा रही है और मान्यताओं के अनुसार यह बेहद शुभ भी होता है। इसलिए आज भी शहरी कस्बों में दीपावली के मौके पर फानूस कंडैल छत पर देखने को मिल जाता है, फानूस कंडैल कि इस डिमांड को समझते हुए पिछले 40 साल से भी अधिक समय से कटिहार के मनिहारी अनुमंडल के वार्ड नंबर 10 हाई स्कूल टोला में दर्जनों घर में दीपावली के 2 महीने पहले से ही घर-घर में फानूस कंडैल बनाकर लोग जगमग रोशनी के इस त्यौहार में अपने परिवार के लिए भी कुछ आर्थिक आमदनी कर लेते हैं। इस साल दिवाली को लेकर यहां फानूस बनाने का काम शुरू कर दिया गया है। 

महंगाई के कारण अब युवा  हो रहे दूर

 दिवाली पर घरों को रोशन करनेवाले फानूस बनाने में इस्तेमाल होनेवाले कागज और इसे बनाने के लिए बांस-बत्ती महंगे होने के साथ-साथ मेहनत के अनुरूप कमाई नहीं होने से कई लोग दो महीने की इस कारोबार को छोड़ चुके हैं लेकिन आज भी परंपरा के नाम पर कुछ घरों के लोग फानूस कैंडल बनाकर इसे बाजार में बेचकर दीपावली के अवसर पर कुछ रोजगार कर ही लेते हैं। यहां रहनेवाले प्रेम कुमार का कहना है कि  यह सिर्फ अब बाप-दादा के समय से चली आ रही परंपरा को बनाए रखने तक सीमित रह गया है। क्योंकि इसका लागत के अनुरुप इसका उचित मूल्य नहीं मिल पाता है।

सिर्फ दो माह तक काम

सबसे बड़ी समस्या इस काम से जुड़े लोगों के सामने यह है कि यह सिर्फ दो माह तक के लिए होता है। इसके अलावा बाकि पूरे साल दूसरे काम पर निर्भर होना पड़ता है। कंडेल बनाने का काम करनेवाली सुनीता देवी का कहना है कि मंहगाई के कारण अब कमाई ज्यादा नहीं होती है। जबकि मेहनत इससे अधिक होता है। सबसे ज्यादा मेहनता बांस को आकार देने में आता है।

श्याम की रिपोर्ट



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