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जाति आधारित आंकड़ों के आधार पर निर्णय लेने से रोक नहीं, लेकिन पूरी रिपोर्ट सार्वजनिक करे सरकार, जानें उच्चतम न्यायालय ने बिहार सरकार को क्या दिया निर्देश

जाति आधारित आंकड़ों के आधार पर निर्णय लेने से रोक नहीं, लेकिन पूरी रिपोर्ट सार्वजनिक करे सरकार, जानें उच्चतम न्यायालय ने बिहार सरकार को क्या दिया निर्देश

NEW DELHI :  बिहार के जातिगत सर्वे के आंकड़ों पर निर्णय लेने के अधिकार को सुप्रीम कोर्ट में दी गई चुनौती पर आज सुनवाई हुई, जिसमें शीर्ष न्यायालय ने बिहार सरकार को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने अपने फैसले में बिहार सरकार को जाति आधारित सर्वेक्षण आंकड़ों के आधार पर आगे निर्णय लेने से रोकने से इनकार कर दिया। साथ ही कोर्ट ने बिहार सरकार को निर्देश दिया है कि वह वह जाति सर्वेक्षण का पूरा विवरण सार्वजनिक करे, ताकि असंतुष्ट लोग निष्कर्षों को चुनौती दे सकें।

कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले का दिया हवाला

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने उन याचिकाकर्ताओं को कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया, जिन्होंने जाति सर्वेक्षण और इस तरह की कवायद करने के बिहार सरकार के फैसले को बरकरार रखने वाले पटना उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी है. पीठ ने कहा, 'अंतरिम राहत का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि उनके (सरकार के) पक्ष में उच्च न्यायालय का आदेश है।

पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर विस्तार से सुनवाई की जरूरत है. पीठ ने रामचंद्रन से कहा कि जहां तक आरक्षण बढ़ाने की बात है, तो आपको इसे उच्च न्यायालय में चुनौती देनी होगी. रामचंद्रन ने अदालत से कहा कि इसे पहले ही उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा चुकी है. उन्होंने कहा कि मुद्दा महत्वपूर्ण है, और चूंकि राज्य सरकार डेटा पर काम कर रही है. इसलिए मामले को अगले सप्ताह सूचीबद्ध किया जाना चाहिए, ताकि याचिकाकर्ता अंतरिम राहत के लिए दलील दे सकें. पीठ ने कहा कि कैसी अंतरिम राहत? उनके (बिहार सरकार के) पक्ष में उच्च न्यायालय का फैसला है. 

सरकार की तरफ से दी गई यह दलील

बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि अलग-अलग विवरण सहित डेटा को सार्वजनिक कर दिया गया है और कोई भी इसे निर्दिष्ट वेबसाइट पर देख सकता है। न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि मैं जिस चीज को लेकर अधिक चिंतित हूं, वह डेटा के अलग-अलग विवरण की उपलब्धता है। सरकार किस हद तक डेटा को रोक सकती है। आप देखिए डेटा का पूरा विवरण सार्वजनिक होना चाहिए, ताकि कोई भी इससे निकले निष्कर्ष को चुनौती दे सके। जब तक यह सार्वजनिक नहीं होगा, वे इसे चुनौती नहीं दे सकते। 


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