'नीतीश' के 'तीर' में ताकत नहीं ! भाजपा के भरोसे जेडीयू...BJP ने गच्चा दिया तो चुनावी रण में फंसना तय, UP विस चुनाव वाला हश्र तो नहीं होगा ?

'नीतीश' के 'तीर' में ताकत नहीं ! भाजपा के भरोसे जेडीयू...BJP

PATNA: झारखंड में 2024 के अंत में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. बिहार की सत्ताधारी पार्टी जेडीयू हर बार की तरह इस बार भी पूरे दमखम से चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान कर चुकी है. हालांकि 2014 और 2019 में अकेले लड़ी जेडीयू इस बार अपने दम पर चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही. नीतीश कुमार के तीर में इतनी ताकत नहीं जो पड़ोसी राज्य में अपने दम पर चुनाव लड़ सके. लिहाजा जेडीयू इस बार भाजपा के भरोसे पर बैठी है. यूपी की तरह झारखंड में भी भाजपा ने गच्चा दे दिया तो नीतीश कुमार की नैया मंझधार में फंस सकती है. 

झारखंड चुनाव में फिर से किस्मत आजमाने की तैयारी...

जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 27 जुलाई को झारखंड में चुनाव लड़ने पर मंथन किया था. बैठक में झारखंड जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष खीरू महतो ने मुख्यमंत्री के सामने 11 उम्मीदवारों की लिस्ट रखी थी. मुख्यमंत्री को बताया गया कि ये वो सीटें हैं जहां पार्टी का मजबूत जनाधार है. बैठक के बाद खीरू महतो ने कहा था कि जेडीयू झारखंड में भी बीजेपी के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ना चाहती है. ऐसा नहीं होने पर उन्होंने कम से कम 49 सीटों पर चुनाव लड़ने के संकेत दिए थे. सवाल यही है...अगर बीजेपी ने यूपी की तरह से झारखंड में भी सहयोगी जेडीयू को गच्चा दिया, तब क्या होगा. नीतीश की नैया को डूबने से कोई नहीं बचा सकता. क्यों कि अकले चुनावी मैदान में उतरने का हश्र क्या होता है, जेडीयू इसे भली भांती जानती है.

नीतीश के तीर में ताकत नहीं....

झारखंड के पॉलिटिकल इतिहास को देखें तो यहां जेडीयू कभी भी प्रभावशाली नहीं रही. झारखंड में जेडीयू की जमीन साल दर साल सिमटती ही गई है. बिहार से अलग राज्य बनने के बाद वर्ष 2000 में झारखंड जेडीयू के हिस्से में 8 विधायक आए थे. लेकिन 2005 के विधानसभा चुनाव में पार्टी 8 से घटकर 6 विधायकों पर आ गई. वर्ष 2009 में तो जेडीयू दो सीटों तक सिमट गई. 2014 का विधानसभा चुनाव पार्टी अकेले लड़ी तो खाता भी नहीं खोल पाई. ज्यादातर सीटों पर दल के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गए. 2014 से पहले पार्टी बीजेपी के साथ मैदान में उतरी तो कुछ सीटें हाथ भी आईं, लेकिन अलग राह चुनने पर सूपड़ा साफ हो गया. झारखंड के गठन के बाद से सियासी जमीन तलाश रही जेडीयू 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में 18 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन सिर्फ 6 सीटों पर जीत मिली थी. ये सीटें थी.. बाघमारा, डाल्टनगंज, छतरपुर, देवघर, मांडू और तमाड़. कुल वोटों का मात्र 4 प्रतिशत ही मत मिला. 2009 में पार्टी 14 सीटों पर चुनाव लड़ी और सिर्फ 2 छतरपुर और तमाड़ सीट जीतने में पार्टी सफल हुई। इस चुनाव में पार्टी को पिछले चुनाव की तुलना में वोट प्रतिशत में कमी आई. जदयू 2.8% पर सिमट कर रह गई। 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में 11 सीटों पर लड़ी और खाता तक नहीं खुला. वोट मिले लगभग 1 फीसदी. 2019 में पार्टी सर्वाधिक 45 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई थी. इतना ही नहीं वोट प्रतिशत भी 1 फीसदी से गिरकर 0.7 फीसदी पर पहुंच गया. अधिकतर उम्मीदवार जमानत जब्त करा बैठे. अब 2024 का विधानसभा चुनाव सामने हैं. पार्टी एक बार फिर चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में है. 11 सीटों पर प्रत्याशी खड़ा करने की तैयारी की गई है. भाजपा के साथ सीटों का तालमेल होने का भरोसा जताया जा रहा है.

2019 में तीर से भी हाथ धो दिया था....

जदयू ऐसी पार्टी है जिसका चुनाव चिन्ह झारखंड में अलग है. नीतीश का तीर झारखंड में नहीं है. 2019 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 16 अगस्त 2019 को चुनाव आयोग के एक निर्णय से पार्टी को बड़ा झटका लगा था. दरअसल बिहार में जदयू की शिकायत पर झामुमो को पारंपरिक चुनाव चिन्ह से हाथ धोना पड़ा था. जेएमएम ने झारखंड में इसका बदला झारखंड में लिया. जेएमएम की शिकायत पर जदयू को तीर से हाथ धोना पड़ा. चुनाव आयोग ने झारखंड जेडीयू को ट्रैक्टर चलाता किसान चुनाव चिन्ह अलॉट किया था.