AURANGABAD : देश दुनिया में पेट्रोलियम पदार्थो के उपलब्ध सिमित स्त्रोतों के बीच 22वे दशक में जब पूरी दुनिया में पेट्रोलियम पदार्थो के बूंद बूंद का सही उपयोग की बाते होने लगी तब भारत के एक उद्यमी संगम साव ने बिहार के औरंगाबाद जिले से 33 किलोमीटर दूर दाउदनगर प्रखंड के सिपहा गाँव में एक ऐसी मिल की स्थापना की जो बगैर किसी पेट्रोलियम ऊर्जा के सहारे चलने लगी.... यह मिल नहर के पानी के तेज प्रवाह से चलती है और इस मिल में गेंहू पिसाई, तेल पेराई एवं धान कुटाई का कार्य बखूबी से हो रहा है .. इस मिल को संचालित करने में एक बूंद इंधन और बिजली का प्रयोग नहीं होता है ...
वर्ष 1876 में ब्रिटिश काल में बनी सोन नहर प्रणाली की पटना मुख्य नहर के सिपहा लॉक से निकलनेवाली एक छोटी परन्तु तेज जलधारा जो अपने वेग से तीसरे तहखाने में स्थित मशीन के पंखो प़र गिरती है। जिसके फलस्वरूप टरबाईन को स्टार्ट कर देती है और इस टरबाईन के स्टार्ट होते ही मिल के अन्य पुर्जे कार्य करने लगते है और मिल अपनी पूरी गति में आकर कार्य करना प्रारंभ कर देता है।
147 साल पुराना है मिल, एक दिन एक लीटर मोबिल का होता है प्रयोग
जिला मुख्यालय से 33 किलोमीटर दूर अनुमंडल मुख्यालय दाउदनगर के सिपहा गांव स्थित 147 वर्ष पुराने इस मिल में दर्जनों पिसाइ की मशीनें एकसाथ कार्यरत हैं । मेन्टेन्स की बात की जाये तो सिर्फ 1 लीटर मोबिल में यह मिल सारे दिन यानी 12 घंटा काम करता है। ना बिजली का झंझट और ना मंहगे डीजल की चिंता। प्रारंभ में जब यह मील चरमोत्कर्ष प़र था तो दूर दराज़ से लोग यहाँ तेलहन की पेराई कराने आते थे उस वक्त तेलहन पदार्थो की पेराई के लिए कुल 32 कोल्हू से काम लिया जाता था परन्तु आज इस मिल में मात्र 14 कोल्हू ही काम कर रहे है कारण की इस मिल को चालु रखने में प्रबंधन असमर्थ हो रहा है।