बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

अस्तित्व पर खतरा : दस साल में गांव के 93 फीसदी घर हो गए नदी में समाहित, अब सिर्फ गिनती के मकान बचे, यह भी कब खत्म हो जाएंगे पता नहीं

अस्तित्व पर खतरा : दस साल में गांव के 93 फीसदी घर हो गए नदी में समाहित, अब सिर्फ गिनती के मकान बचे, यह भी कब खत्म हो जाएंगे पता नहीं

BAGHA : 10 साल पहले तक इस गांव में 300 घर थे, यहां पीसीसी सड़क, तीन कुएं और घनी आबादी थी। लेकिन आज स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी है। इस गांव में अब सिर्फ गिनती के घर नजर आते हैं। हजारों की आबादी सिर्फ सैकड़ों तक सिमट कर रह गई है। यह भी कब खत्म हो जाएगा, कहना मुश्किल है। कुल मिलाकर अब यह गांव अपने अस्तित्व के खत्म होने के इंतजार में हैं।

यह स्थिति जिले के पहाड़ों व जंगलों के बीच रामनगर प्रखंड की दो पंचायतों के 26 गांवों की है, जहां करीब 38 हजार आबादी बाढ़ की मार झेल रही है। शिवालिक के पहाड़ों और घने बीहड़ जंगलों के बीच बनकटवा करमहिया एवं नौरंगिया पंचायत में सदियों से बसे थारु बाहुल्य 26 गांवाें के लोग इस साल 15-16 जून को आई भीषण बाढ़ का मंजर देख चुके हैं। गर्दी, गोबरहिया, बैरिया, झझरी, ढ़ायल, भुअरहवा, शीतलबाड़ी, सेमरही, चंपापुर गांवों के लोग घरों का कटाव देख खुद अपना आशियाना उजाड़ने लगे हैं। बाढ़ के पूर्व कोरोना काल में बनकटवा करमहिया पंचायत में 35 एवं नौरंगिया पंचायत में 26 लोग काल कल्वित हो चुके हैं।


गर्दी गांव का अस्तित्व खतरे में

गर्दी के रामबिहारी महतो, रितराज महतो, नंदकिशोर महतो, शिवनारायण महतो आदि ने बताया कि 2011 के पहले गर्दी 300 घरों का गांव था। यहां पीसीसी सड़क, तीन कुएं और घनी आबादी थी। 2017 तक हरहा नदी ने एक- एक कर 100 घर काट लिए। 2017 में आई बाढ़ ने फिर 100 घरों को काट लिया। इसके बाद भी एक -एक कर घर कटते चले गए। 2020 की बाढ़ में कुछ घर, पीसीसी सड़क, एक कुएं को काटकर बहा ले गई। इस साल 15-16 जून को आई बाढ में 12 लोगों का घर कट गया तो 40 लोगों ने खुद घर उजाड़ लिया।

आज सिर्फ गांव 20 घर बचे हुए हैं

गर्दी गांव के लोग बताते हैं कि अब गांव में 20 घर ही बचे हैं। बचे घर भी हरहा नदी में न समाए, इसलिए गृहस्वामी खुद ही अपना घर तोड़ने को मजबूर हैं। ग्रामीण बताते हैं कि लगातार दो-दो आपदाओं से जूझते रहने के बाद भी कोई प्रशासनिक अधिकारी आजतक यह पूछने तक नहीं आया कि आपलोग कैसे हैं। हालांकि सांसद सुनील कुशवाहा ने फोन से हाल चाल जरूर पूछा था, लेकिन देखने नहीं आए। क्याेंकि यहां आने का साधन ही नहीं है।

जंगलों से घिरा है पूरा रास्ता, पहुंचना मुश्किल

इन गांवों की सबसे बड़ी समस्या यहां तक किसी प्रकार की सहायता पहुंचा पाना है। दोन के उत्तर में 50 किमी घने जंगलों व पहाड़ों को पार करने के बाद उस पार नेपाल, दक्षिण में 25 किमी घने जंगलों व 26 पहाड़ी नदियों को पार करने के बाद बगहा दो प्रखंड का हरनाटांड़ बाजार, पूर्व में जंगलों व नदियों को पार करने के 54 किमी बाद रामनगर व उस प्रखंड का बगही सखुआनी गांव, पश्चिम में 30 किलोमीटर जंगल पार करने के बाद वाल्मीकिनगर पहुंचा जा सकता है। इस प्रकार किसी दिशा से दोन पहुंचना काफी कठिन व दुष्कर मार्ग है।

Suggested News