बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

लोकआस्था के महापर्व छठ पूजा का दूसरा दिन आज, खरना का प्रसाद ग्रहण कर शुरू होगा 36 घंटे का निर्जला व्रत

 लोकआस्था के महापर्व छठ पूजा का दूसरा दिन आज, खरना का प्रसाद ग्रहण कर शुरू होगा 36 घंटे का निर्जला व्रत

पटना: बिहार में लोक आस्था के महापर्व की विधिवत शुरुआत 17 नवंबर से हो गई है. दूसरे दिन खरना है. छठ पूजा का दूसरा दिन है, इसे खरना, शुद्धिकरण भी कहा जाता है. 19 नवंबर को अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य अर्पित किया जाएगा. 20 नवंबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन होगा. 18 नवंबर 2023 को दूसरे दिन खरना  है. इसे लोहंडा भी कहा जाता है .  छठ पूजा पर खरना का विशेष महत्व होता है. छठ पूजा के दिन घर में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है. मान्जियता है कि जिस घर में जगह गंदगी होती है, वहां पर छठी मैया का वास नहीं होता है, इसलिए छठ पूजा के दौरान घर को गंदा न होने दें. इस व्रत में साफ-सफाई का खास ख्याल रखा जाता है. इस दिन व्रती पूरे दिन का उपवास रखती हैं. इसके बाद शाम को गुड़ की खीर का प्रसाद खाकर व्रत खोलती हैं और इसके बाद 26 घंटे का निर्जला व्रत आरंभ हो जाता है. 

कार्तिक मास की पंचमी तिथि के दिन व्रती पूरे दिन व्रत रखकर शाम को प्रसाद ग्रहण करती हैं. इस दिन नया चूल्हे में प्रसाद बनाया जाता है. व्रती दिनभर व्रत रखने के बाद शाम को चावल, गुड़ और गन्ने के रस से रसियाव यानी गुड़ की खीर बनाते हैं और सूर्यदेव को केले के पत्ते या फिर मिट्टी के बर्तन में प्रसाद रखकर अर्पित करते हैं. इसके बाद व्रती खुद ग्रहण करती हैं. इसके बाद घर के अन्य सदस्यों को प्रसाद दिया जाता है. इसके अलावा प्रसाद में चावल के पिट्ठा और घी लगी रोटी भी दी जाती है.माना जाता है कि छठ पर्व की असली शुरुआत इसी दिन से होती है. प्रसाद ग्रहण करने के बाद 36 घंटे के लिए व्रती निर्जला व्रत रखती हैं.

छठ पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, उसके बाद आता है खरना का दिन, माना जाता है इस दिन ही छठी मैया का आगमन घर में होता है. इस विशेष दिन प्रसाद में गुड़ और चावल का खीर बनता है. व्रती इस खीर को खाकर व्रत की शुरुआत करते हैं. करीब 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है और जब तक उगते सूर्य को अर्घ्य नहीं दिया जाता ये कठिन व्रत जारी रहता है. 

छठ पूजा का अपना विशेष महत्व होता है. ये बिहारियों के लिए सबसे बड़ा त्योहार है. छठ पूजा में छठी मय्या की उपासना करने का विधान है.छठ पूजा का त्योहार सूर्य भगवान की पूजा के लिए समर्पित है. इस व्रत में उगते और डूबते सूर्य की पूजा की जाती है. इस माहपर्व पर बिना खाए पिए 36 घंटे का निर्जाला व्रत रखा जाता है.

छठ महापर्व में सूर्य देव की विशेष पूजा की जाती है. भगवान् सूर्य देव एक मात्र ऐसे देव हैं जिन्हें हम प्रत्यक्ष देख सकते हैं. सूरज के प्रकाश से ही पृथ्वी पर प्रकृति का चक्र चलता है. खेती के द्वारा अनाज और वर्षा के द्वारा जल की प्राप्ति हमें सूर्य देव की कृपा से ही होती है.सूर्य षष्ठी की पूजा भगवान आदित्य के प्रति अपनी श्रद्धा और कृतज्ञता को दर्शाने के लिए ही की जाती है.शास्त्रों से अलग यह जन सामान्य द्वारा अपने रीति-रिवाजों के रंगों की उपासना पद्धति है। इसके केंद्र में ग्रामीण जीवन है।. इस व्रत के लिए न विशेष धन की आवश्यकता है न पुरोहित के अभ्यर्थना की. जरूरत पड़ती है तो पास-पड़ोस के सहयोग की जो अपनी सेवा के लिए सहर्ष और कृतज्ञतापूर्वक प्रस्तुत रहता है. इस उत्सव के लिए जनता स्वयं अपने सामूहिक अभियान संगठित करती है. नगरों की सफाई, व्रतियों के गुजरने वाले रास्तों का प्रबन्धन, तालाब या नदी किनारे अर्घ्य दान की उपयुक्त व्यवस्था के लिए समाज सरकार के सहायता की राह नहीं देखता. इस उत्सव में खरना के उत्सव से लेकर अर्ध्यदान तक समाज की अनिवार्य उपस्थिति बनी रहती है.







Editor's Picks