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रूस के साथ केन्द्रीय इस्पात मंत्री ने एएमयू पर किया हस्ताक्षर, कोयले का भविष्य विषय पर अंतरराष्ट्रीय पैनल में हुए शामिल

रूस के साथ केन्द्रीय इस्पात मंत्री ने एएमयू पर किया हस्ताक्षर, कोयले का भविष्य विषय पर अंतरराष्ट्रीय पैनल में हुए शामिल

NEW DELHI : केंद्रीय इस्पात मंत्री रामचंद्र प्रसाद सिंह 13 से 15 अक्टूबर तक मास्को के दौरे पर थे। इस दौरान ‘रूसी ऊर्जा सप्ताह’ के अवसर पर रूसी संघ के ऊर्जा मंत्री निकोले शुलगिनोव से मुलाकात की। मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं ने कोकिंग कोल और स्टील सेक्टर में सहयोग के अवसरों पर चर्चा की। दोनों नेताओं के बीच कोकिंग कोल क्षेत्र में सहयोग के संबंध में एक ऐतिहासिक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए।  इस अवसर पर बोलते हुए सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विज़न के अनुरूप कोकिंग कोल् के आयात के और विकल्प खोजने और कैबिनेट के निर्णय के आधार पर इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं। इससे भारत के स्टील उद्योग के उत्पादन में बढ़ावा मिलेगा और दोनों देशों के रिश्ते और मजबूत होंगे। 

इस समझौता ज्ञापन में कोकिंग कोल में संयुक्त परियोजनाओं/वाणिज्यिक गतिविधियों के कार्यान्वयन की परिकल्पना की गई है, जिसमें भारत को उच्च गुणवत्ता वाले कोकिंग कोल की लंबी अवधि की आपूर्ति, कोकिंग कोल डिपोजिट्स का विकास और लॉजिस्टिक्स विकास, कोकिंग कोल उत्पादन प्रबंधन में अनुभव साझा करना, खनन की तकनीकें, बेनीफिकेशन और प्रसंस्करण के साथ-साथ प्रशिक्षण भी शामिल हैं। मंत्री ने "जलवायु के प्रति संवेदनशील दुनिया में कोयले का भविष्य: अंत  या एक नई शुरुआत" विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय पैनल में संबोधन दिया।

सिंह ने कहा की भारत में 70% से अधिक बिजली कोयले पर आधारित है और ऐसी ही स्थिति चीन, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका आदि जैसे अन्य कोयला-समृद्ध देशों में भी है। दुनिया भर में, लगभग 33.8% ऊर्जा की जरूरत कोयले से पूरी होती है। इसलिए हमें एक नई शुरुआत करनी चाहिए जिसमें कोयले का ठीक इस्तेमाल सुनिश्चित किया जा सके। चूंकि कुछ देशों जैसे भारत में 320 बिलियन टन से अधिक कोयला संसाधन हैं, इसलिए कोयला गैसीकरण जैसे कोयले का उपयोग करने के वैकल्पिक तरीके खोजने का प्रयास किया जा रहा है ताकि CO2 के प्रभाव को कम किया जा सके। भारत अभी तक लगभग 100 गीगावाट अक्षय ऊर्जा संयंत्र स्थापित कर चुका है और 2030 तक 450 गीगावॉट तक पहुंचने के लिए प्रतिबद्ध है। जहां तक अक्षय ऊर्जा उपयोग बढ़ाने की बात  है, हम उसमे लक्ष्य से अधिक तेज चल रहे हैं। यह स्पष्ट है कि कोयला अगले कुछ दशकों में भी दुनिया भर में इस्पात उद्योग में एक प्रमुख भूमिका निभाता रहेगा।

रूस, हर परिस्थिति में भारत का एक विश्वसनीय साथी रहा है और दोनों देश आर्थिक गतिविधियों एवं औद्योगिक विकास में परस्पर सहयोगी हैं। भारत की पहली ब्लास्ट फर्नेस को फरवरी, 1959 में रूस के सहयोग से  प्रारंभ करने पर हमें गर्व है और कई अन्य परियोजनाओं में साझेदारी ने इस रिश्ते को और गहरा ही किया है। हम इन संबंधों को प्रगाढ़ करने के लिए उत्सुक हैं। हम इस्पात निर्माण के सभी पहलुओं में रूस के साथ मिलकर काम करने की आशा करते हैं। इस्पात मंत्री ने मास्को यात्रा के दौरान कई प्रमुख रूसी इस्पात संस्थानों और कंपनियों के साथ भी मुलाकात की।

नई दिल्ली से धीरज कुमार की रिपोर्ट

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