PATNA : आम तौर पर न्यायिक व्यवस्था में अनुमंडलीय या जिला न्यायालय को ‘निचली’ अदालत कहकर संबोधित कहा जाता है। लेकिन अब शायद इस शब्द का इस्तेमाल बंद कर दिया जाए।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के जज अभय श्रीनिवास ओका ने जिला और अनुमंडलस्तरीय अदालतों को ‘निचली’ अदालत कहना अपमानजनक बताया है। इन्हें सिविल या ट्रायल कोर्ट कहना चाहिए। न्यायमूर्ति ओका रविवार को पटना के बिहार ज्यूडिशियरी अकादमी में 29 व 30 बैच के ज्यूडिशियरी सेवा के करीब 300 अधिकारियों को संबोधित कर रहे थे।
दिखावे से दूर रहें जज
सुप्रीम कोर्ट के जज अभय श्रीनिवास ओका ने कहा है कि न्यायाधीशों को शो-ऑफ (दिखावे) से दूर रहना चाहिए। जिलास्तरीय न्यायाधीशों को ध्यान रखना चाहिए कि आम आदमी के लिए न्याय लेने का यह पहला कोर्ट या प्लेटफॉर्म होता है। ऐसे में इन अदालतों को सशक्त बनाना बेहद आवश्यक है। उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट में मुकदमा हारने के बाद 70 फीसदी लोग ही दोबारा मुकदमा लड़ते हैं और इसमें 50 फीसदी मामले ही हाईकोर्ट तक पहुंचते हैं। इसकी मुख्य वजह गरीबी समेत अन्य कई सामाजिक अड़चने हैं। ऐसे में ट्रायल कोर्ट के स्तर पर लोगों को वास्तविक न्याय दिलाने की सार्थक पहल की जानी चाहिए।
जजों की स्थिति आज काफी बेहतर
जस्टिस ओका ने ज्यूडिशियरी की मौजूदा स्थिति की तुलना 80 के दशक से करते हुए कहा कि उस समय ज्यूडिशियरी अधिकारी के लिए एक स्कूटर खरीदना मुश्किल होता था परंतु शेट्टी कमिशन और सातवां वेतनमान लागू होने से जजों की स्थिति अब बेहतर हो गयी है।
न्यायमूर्ति ओका ने नवोदित जजों से कहा कि जज बनने के बाद जॉब संतुष्टि हो जानी चाहिए और अपने कार्यकाल में कुछ बेहतरीन आदेशों को देने पर फोकस करना चाहिए। जस्टिस ओका ने सबको यह भी बताया कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं, किन बातों से परहेज करने की आवश्यकता है।
सोशल मीडिया के उपयोग में एहतियात की जरूरत
कार्यक्रम में ज्यूडिशियरी अकादमी के अध्यक्ष जस्टिस अश्विनी कुमार सिंह ने कहा कि जजों को संवेदनशील और केयरिंग दृष्टिकोण रखना चाहिए। सोशल मीडिया की भूमिका अवधारणा बनाने में अहम होती है। ऐसे में इसके उपयोग में बेहद एहतियात बरतने की आवश्यकता है।