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वेलेंटाइन डे स्पेशल : प्रेम के वशीभूत होकर दशरथ मांझी ने दुनिया के सामने पेश की मिसाल

वेलेंटाइन डे स्पेशल : प्रेम के वशीभूत होकर दशरथ मांझी ने दुनिया के सामने पेश की मिसाल

GAYA : आज वेलेंटाइन डे है. इस मौके पर गया के दशरथ मांझी के मुहब्बत की बात न की जाये तो यह बेमानी होगा. दशरथ मांझी, एक ऐसा नाम जो इंसानी जज्‍़बे और जुनून की मिसाल है. उनकी दीवानगी, जो प्रेम की खातिर ज़िद में बदली और तब तक चैन से नहीं बैठी, जब तक कि पहाड़ का सीना नहीं चीर दिया.  

बिहार में गया के गहलौर गांव में दशरथ मांझी के माउंटनमैन बनने का सफर उनकी पत्नी का ज़िक्र किए बिना अधूरा है. गहलौर और अस्पताल के बीच खड़े पहाड़ की वजह से साल 1959 में उनकी बीवी फाल्गुनी देवी को वक्‍़त पर इलाज नहीं मिल सका और वो चल बसीं. यहीं से शुरू हुआ दशरथ मांझी का इंतकाम. माउंटेनमैन की उपाधि पाने वाले दशरथ मांझी ने प्यार की जो इबारत लिखी है उसकी मिसाल दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलती. भले ही शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में नायाब ताजमहल बनवाया. लेकिन गया के गहलौर घाटी में दशरथ मांझी ने अपनी पत्नी की याद में 22 वर्षों तक छेनी हथौड़ी से पहाड़ काटकर जो सुगम रास्ता बनाया, वह मोहब्बत एक अनोखी मिसाल है. 

प्यार की इससे बड़ी मिसाल कहीं और देखने को नही मिलती. भले ही दशरथ मांझी आज इस दुनिया में नहीं है, लेकिन इस सुगम रास्ते पर चलने वाले लोग उन्हें आज याद भी करते हैं. दशरथ मांझी की पत्नी उनके लिए गहलौर पहाड़ी पर खाना लेकर आ रही थी. इसी क्रम में उनका पैर फिसला और वे जख्मी हो गई. काफी दिनों तक इलाज चला. एक दिन अस्पताल जाने में देरी होने पर  उनकी मौत हो गई. पत्नी की याद में दशरथ मांझी ने पहाड़ को काटकर रास्ता बनाने का निर्णय लिया. 22 वर्षों तक छेनी हथौड़ी से उन्होंने पहाड़ को काटा और एक सुगम रास्ता बना दिया. जिससे कई गांव की दूरी मात्र कुछ किलोमीटर में ही सिमट कर रह गई. मोहब्बत और जज़्बे की इतनी बड़ी मिसाल दुनिया में देखने को कहीं नहीं मिलती. उनके बेटा भागीरथ माँझी और ग्रामीणों कहते है कि शुरु मे उन्हें लोग  पागल कहने लगे, लेकिन जब उन्होंने सालों तक पहाड़ काटकर रास्ता का रुप दे दिया तो उनकी तारीफ मुख्यमंत्री भी करने लगे. अपने पास बुलाकर उन्हें अपने गद्दी पर बैठाकर सम्मान दिया. 

साल 1960 से 1982 के बीच दिन-रात दशरथ मांझी के दिलो-दिमाग में एक ही चीज़ ने कब्ज़ा कर रखा था. पहाड़ से अपनी पत्नी की मौत का बदला लेना. 22 साल जारी रहे जुनून ने अपना नतीजा दिखाया और पहाड़ ने मांझी से हार मानकर 360 फुट लंबा, 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता दे दिया. दशरथ मांझी के गहलौर पहाड़ का सीना चीरने से गया के अतरी और वज़ीरगंज ब्लॉक का फासला 80 किलोमीटर से घटकर 13 किलोमीटर रह गया. केतन मेहता ने उन्हें गरीबों का शाहजहां करार दिया. साल 2007 में जब 73 बरस की उम्र में वे जब दुनिया छोड़ गए, तो पीछे रह गई पहाड़ पर लिखी उनकी वो कहानी, जो आने वाली कई पीढ़ियों को सबक सिखाती रहेगी. 

गया से मनोज कुमार की रिपोर्ट 

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