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विप की सारण स्नातक सीटः राजनीतिक दलों ने कैंडिडेट चयन में सबसे बड़े जिले पू.चं. को किया है भारी निराश,RJD अगर 'दांव' लगाए तो....

विप की सारण स्नातक सीटः राजनीतिक दलों ने कैंडिडेट चयन में सबसे बड़े जिले पू.चं. को किया है भारी निराश,RJD अगर 'दांव' लगाए तो....

PATNA: बिहार में अगले साल विधान परिषद की स्नातक सीट पर चुनाव होने वाले हैं। वर्ष 2023 में गया और सारण स्नातक सीट खाली होगी। दोनों सदस्यों का कार्यकाल 8 मई 2023 को खत्म हो रहा है। पिछली दफे मार्च 2017 को इन सीटों पर चुनाव हुए थे। सारण सीट से वीरेन्द्र नारायण यादव और गया से अवधेश नाराय़ण सिंह चुनाव जीते थे। अगले साल खाली हो रही दोनों सीटों के लिए मार्च महीने में चुनाव होने की संभावना है। चुनाव भले ही अगले साल है, लेकिन भीतर ही भीतर चुनावी तैयारी शुरू हो चुकी है।  

पांच जिलों को मिलाकर बनी है सारण स्नातक सीट

विधान परिषद की सारण स्नातक सीट सारण, सीवान, गोपालगंज, मोतिहारी व बेतिया जिले को मिलाकर बनी है। यानी इन पांच जिलों के स्नातक पास वोटर ही वोट करते हैं.  इन जिलों में पूर्वी चंपारण सबसे बड़ा जिला है। सबसे अधिक स्नातक वोटर इसी जिले से आते हैं। पिछली दफे सारण सीट पर कुल मतदाताओं की कुल संख्या 90,157 थी। इसमें 70,205 पुरुष व 19,932 महिला मतदाता थे। अन्य मतदाताओं की संख्या 20 रही. इस बार स्नातक वोटरों की संख्या और बढ़ने वाली है।

अकेले पूर्वीचंपारण में 27 प्रखंड

सारण स्नातक सीट जिन पांच जिलों को मिलाकर बनाई गई है उसमें अकेले पूर्वीचंपारण जिले में 27 प्रखंड हैं। जबकि इस सीट से जुड़े अन्य किसी जिले में इतने ब्लॉक नहीं। लिहाजा पूर्वी चंपारण जिले पर सारण स्नातक सीट के कैंडिडेट्स की सबसे अधिक नजर रहती है। सारण जिले में 20 ब्लॉक, सिवान जिले में 19 ब्लॉक, गोपालगंज में 14 प्रखंड वहीं पश्चिम चंपारण में 18 प्रखंड हैं। यानी सारण स्नातक सीट में पर सबसे अधिक पूर्वीचंपारण जिले के ब्लॉक शामिल हैं। स्नातक वोटरों की संख्या भी पूर्वीचंपारण में सबसे अधिक है।

सबसे अधिक वोट के बाद भी पूर्वी चंंपारण की उपेक्षा 

जानकार बताते हैं कि सारण स्नातक सीट पर सबसे बड़ी सहभागिता पूर्वीचंपारण की होती है। इसके बाद भी आज तक उस जिले के किसी उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया गया है। हर बार दूसरे जिले के उम्मीदवार ही मैदान में होते हैं। 2017 के चुनाव में जेडीयू महागठबंधन के साथ था। छपरा के रहने वाले वीरेन्द्र नारायण यादव जेडीयू प्रत्याशी थे। चुनाव में इनकी जीत भी हुई थी। वहीं एनडीए की तरफ से महाचंद्र प्रसाद सिंह। महाचंद्र सिंह सारण स्नातक सीट से तीन दशक से चुनकर विप जाते रहे थे। लेकिन 2017 के चुनाव में उनकी करारी हार हो गई। वे इस इलाके के नहीं थे बल्कि पटना जिले के रहने वाले हैं। महाचंद्र सिंह का पूर्वी चंपारण जिले में अच्छी पकड़ थी। लिहाजा चुनाव जीतने में इस जिले के स्नातक वोटरों की बड़ी भूमिका होती थी। पिछली दफे पूर्वीचंपारण के स्नातक वोटरों ने गच्चा दिया तो महाचंद्र सिंह औंधे मुंह गिर गये। 2011 में भी राजद ने छपरा के वीरेन्द्र नारायण यादव को टिकट दिया था। जबकि 2005 में गोपालगंज के उपेन्द्र राय को उम्मीदवार बनाया गया था। स्पष्ट है कि जिस जिले में सबसे अधिक स्नातक वोटर वहां के उम्मीदवारों की बजाय दूसरे जिले के कैंडिडेट को अब तक मौका मिलते रहा है।

सारण से बाहर निकलने पर विपक्षी कैंडिडेट को फायदा

अगले साल सारण स्नातक सीट पर फिर से चुनाव होंगे। पूरी संभावना है कि जेडीयू के सीटिंग कैंडिडेट वीरेन्द्र नारायण यादव एक फिर से चुनावी मैदान में होंगे। लेकिन विपक्ष की तरफ से कौन कैंडिडेट होगा यह साफ नहीं। राजद पूर्वीचंपारण जिले में अपनी पकड़ बनाना चाहती है। लिहाजा राजद को कैंडिडेट चयन में क्षेत्र चयन पर खास ध्यान रखना होगा। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि सारण स्नातक सीट अपनी झोली में डालने के लिए राजद को सारण से बाहर निकलना होगा। पार्टी की मजबूती के लिए राजद को पूर्वीचंपारण पर ध्यान देना होगा। सारण जिले में राजद के 6 विधायक हैं जबकि पूर्वी चंपारण जहां 12 विधानसभा है वहां महज 2 एमएलए। ऐसे में अगर स्नातक सीट को लेकर राजद सारण,गोपालगंज से निकलकर पूर्वीचंपारण पर ध्यान देती है तो इसका फायदा आने वाले दिनों में मिलेगा। राजद के सारण से बाहर निकलने पर उस चुनाव में गुटबाजी पर भी रोक लग सकती है।

अब तो मोतिहारी में केंद्रीय विवि,स्नातकों की संख्या में भारी वृद्धि

पूर्वीचंपारण में स्नातक पास लोगों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। अब मोतिहारी में केंद्रीय विवि है। इस लिहाज से भी पूर्वी चंपारण का महत्व काफी बढ़ गया है। अगर पूर्वीचंपारण के कैंडिडेट मैदान में होंगे तो जिले के वोटरों का स्वाभिमान जागना निश्चित है। क्यों कि अब तक यहां के स्नातक वोटरों ने अपने जिले के कैंडिडेट को मैदान में नहीं देखा है। ऐसे में अगर विपक्षी पार्टी दांव लगाती है तो इसके सकारात्मक परिणाम मिलेंगे। साथ ही सीटिंग कैंडिडेट को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

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