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वाह रे राजनीति : लालू -ललन में था छत्तीस का रिश्ता,अब मान लिया अपना नेता,आशीर्वाद पाकर हुए गदगद

वाह रे राजनीति : लालू -ललन में था छत्तीस का रिश्ता,अब मान लिया अपना नेता,आशीर्वाद पाकर हुए गदगद

पटना. बिहार में सत्ता बदलने का जो नाटकीय घटनाक्रम हुआ उसके चेहरे भले नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव हों लेकिन इस बदलाव के रणनीतिकार जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ़ ललन सिंह रहे. संयोग से यह वही ललन सिंह है जिनका करीब 30 साल पहले लालू यादव से ऐसा टकराव हुआ था जिसके बाद उन्होंने लालू को सत्ता से उखाड़ फेंकने की कसम खा ली थी. लेकिन वक्त का पहिया घूमा और अब ललन सिंह उसी लालू यादव को अपने ‘नेता’ के रूप में स्वीकार रहे हैं जिनके साथ उनका छत्तीस का आंकड़ा रहा. 

1992 में भिड़े थे लालू-ललन : दरअसल ललन और लालू यादव के बीच टकराव की पहली बड़ी घटना वर्ष 1992 में हुई. विभिन्न मीडिया रिपोर्टों और किताबों की मानें तो वर्ष 1992 में तब के मुख्यमंत्री लालू यादव दिल्ली के बिहार भवन में थे. उस दौर में नीतीश कुमार भी लालू के साथी थे, लेकिन उनके रिश्ते लालू से तल्ख होने लगे थे. कहा जाता है कि बिहार के विकास और जन समस्याओं से जुड़े कई मुद्दों को लेकर नीतीश कुमार, शिवानंद तिवारी, बिशन पटेल और ललन सिंह लालू से मिले. वहीं पास में ही दूसरे कमरे में सरयू राय भी थे. 

ललन का हुआ था अपमान : उस मुलाकात के दौरान कुछ ऐसा हुआ कि लालू और ललन सिंह के बीच काफी कहा-सुनी हो गई. किताबों की मानें तो दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ खूब बेअदबी दिखाई. ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया जो शिष्टता की श्रेणी में नहीं थे. लालू ने अपने सुरक्षाकर्मियो को आवाज दी कि इन लोगों को यहां से निकालो. वह एक ऐसा अपमान था जिसके बाद ललन सिंह ने भी लालू के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. कुछ वर्ष बाद जब चारा घोटाले का मामला उजागर हुआ तब उस कलई को खोलने वाले अग्रणी नेताओं में ललन सिंह का नाम भी शामिल बताया जाता है. 

लालू के सबसे प्रबल विरोधी ललन : यहां तक कि वर्ष 2000 में नीतीश कुमार के पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के समय जिन लोगों ने प्रमुख रणनीतिकार की भूमिका निभाई थी उसमें ललन का नाम भी शामिल रहा. 1992 से 2022 तक कई ऐसे मौके आए जब ललन सिंह ने लालू यादव के खिलाफ नीतीश को मजबूत करने के लिए हर दांव चला. आम जन में लालू के सबसे प्रबल विरोधी के रूप में ललन सिंह की बड़ी पहचान रही. 

जड़ से उखाड़ा अब संवारेंगे : लेकिन वक्त का पहिया कुछ ऐसा घूमा कि अब ललन सिंह उसी लालू यादव को अपना नेता बताने लगे जिनसे 30 साल पहले उनका तकरार हुआ था. गुरुवार को ललन सिंह ने लालू यादव को अपने गठबंधन का अभिभावक बताते हुए उनके प्रति जिस तरह की नरमी दिखाई यह राजनीति के नए अध्याय की शुरुआत रही. उन्होंने कहा कि लालू से आशीर्वाद लिए हैं कि 2024 में मोदी सरकार को उखाड़ फेंकेंगे. इसके लिए रणनीति बनायी जा रही है. उन्होंने कहा कि हम लोगों की कोशिश है कि 2024 के चुनाव में बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में भाजपा को मुंह के बल गिराएंगे. जिस लालू-राबड़ी सरकार की जड़ों में मट्ठा डालने के लिए ललन सिंह जाने जाते रहे अब उन्हीं की रणनीति से लालू के लाल तेजस्वी यादव की राजनीति अचानक से फल-फूल गई. 

गौरतलब है कि जदयू में आरसीपी और ललन सिंह के बीच चल रही तकरार जगजाहिर थी. ललन सिंह ने जदयू की कमान संभालते ही आरसीपी पर कमान कसी और उनके कार्यकाल का काला चिटठा खोला. इतना ही नहीं भाजपा ने किस तरह से जदयू को कमजोर करने की साजिश की उसका भी ललन ने खुलासा किया. लेकिन नीतीश को लालू यादव के साथ गठजोड़ करने के रणनीतिकार भी ललन सिंह ही रहे. 


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