कर्नाटक में मिली कांग्रेस की जीत के बाद सीएम नीतीश के लिए आगे क्या? विपक्षी एकता या यूपीए की एकजुटता

पटना. कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम ने अब तक कांग्रेस और भाजपा से समान दूरी रखने वाले विपक्षी नेताओं को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने पर मजबूर करेगी. हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के ठीक बाद कर्नाटक में लगातार मिली दूसरी जीत ने कांग्रेस को एक मजबूत प्लेटफार्म पर खड़ा कर दिया है. संपूर्ण एका विपक्ष, गैर- कांग्रेस विपक्ष या यूपीए की एकजुटता, इन तीनों खेमों में बंटे खेमों को लोकसभा चुनाव से पूर्व एक मंच पर लाना नीतीश कुमार के बूते की बात है? क्या शरद पवार, नवीन पटनायक, ममता बनर्जी आदि को नीतीश कुमार राष्ट्रीय स्तर पर एक मंच पर लाने में सफल हो पायेंगे?
कांग्रेस बनाएगी अपना दबदबा : कर्नाटक चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस को संजीवनी मिल गई है. कांग्रेस की सफलता से बीजेपी को जितना बड़ा झटका लगा है, कम से कम उतना ही झटका विपक्ष के नवीन पटनायक, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, शरद पवार सरीखे नेताओं को भी लगा है. राहुल गांधी को मानहानि मामले में सजा और उस आधार पर उनके चुनाव लड़ने पर तात्कालिक रोक के आदेश में ज्यादातर विपक्षी. दलों के नेताओं को प्रधानमंत्री पद को लेकर एक सुनहरा अवसर दिख रहा था. नीतीश कुमार समेत विपक्ष के कई नेता जो पीएम पद का सपना देख रहे थे अब बैकफुट पर आ जाएंगे. विपक्ष में बिना किसी मशविरा के शरद पवार को विपक्ष को लीड करने का मुंबई जाकर न्यौता दे आए नीतीश की अहमियत भी अब घटेगी. यकीनन कांग्रेस अब अपने आदमी को ही आगामी लोकसभा चुनाव में पीएम फेस बनाएगी.
कांग्रेस: चुनाव पूर्व एकता पर जोर नहीं : कर्नाटक चुनाव परिणाम से उत्साहित कांग्रेस ने पहले भी प्रधानमंत्री पद को लेकर अपनी रणनीति सार्वजनिक नहीं की थी जिससे प्रधानमंत्री पद का सपना देख रहे विपक्षी नेताओं में एक अवसर की उम्मीद जगी थी. कहा जाता है कि नीतीश कुमार को विपक्ष का मन टटोलने के लिए कांग्रेस ने काम जरूर सौंप दिया था. नीतीश इतने उत्साहित थे कि वे खुद पीएम फेस बनने से इनकार तो करते रहे, लेकिन पवार के पास विपक्ष को लीड करने का न्यौता दे आए. हालाँकि शरद पवार ने इसपर कोंई स्पष्ट टिपण्णी नहीं दी. अब कांग्रेस देश की दूसरी बड़ी पार्टी है, जिसकी कर्नाटक समेत चार राज्यों में सरकार है. ऐसे में विपक्षी एकता के झमेले में पड़ कर वह सीटों पर कोई समझौता करने को शायद ही तैयार होगी और उसकी पहली पसंद नए सीरे से यूपीए को संगठित करना होगा.
शरद- नीतीश नहीं, प्रियंका- खड्गे होंगे फेस : कांग्रेस में पीएम पद के सबसे बड़े दावेदार तो राहुल गांधी ही हैं, लेकिन जब तक उन्हें अदालत से रियायत नहीं मिलती, वे चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. हालांकि अदालती फैसले को स्वीकार कर राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा का बाकी बचा दौरा पूरा कर लें तो यह कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हो सकती है. उन्होंने अपनी यात्रा दक्षिण भारत से ही शुरू की थी, जिसका असर कर्नाटक चुनाव परिणाम के रूप में दिखा. इन परिस्थितियों के बीच कांग्रेस के लिए पीएम फेस की घोषणा करने का सही समय है.
बेरोजगार हो जायेंगे नीतीश : राहुल गांधी और खड्गे से मिलने के बाद उत्साहित मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मनोबल पर पानी फिर सकता है क्यूंकि कांग्रेस अब बैकफुट पर खड़ी राष्ट्रीय पार्टी नहीं रही. अब कांग्रेस अपनी शर्तों पर विपक्षी दलों को साधने की कोशिश करेगी. कांग्रेस भी जानती है कि लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों के बिना उसके सत्ता तक पहुंचने की संभावना नहीं है इसलिए वह साथ तो लेगी, लेकिन अपनी शर्तों से शायद ही अब समझौता करने को तैयार होगी. शरद पवार तक विपक्षी नेतृत्व का संदेश पहुंचाने वाले नीतीश कुमार की जरूरत चुनाव से पहले शायद ही कांग्रेस को अब महसूस होगी और इस परिणाम के बाद वो लगभग बेरोजगारी के कगार तक पहुँच जायेंगे.
अब नीतीश की झोली में क्या : जाहिर है कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम का सबसे ज्यादा असर नीतीश कुमार पर पड़ेगा. नीतीश ने 2025 में बिहार की कमान तेजस्वी प्रसाद यादव को सौंपने की घोषणा कर चुके हैं. उधर आरजेडी तो उन्हें पीएम प्रत्याशी बनाने पर आमादा थी, लेकिन नीतीश कुमार शायद इसके संभावित खतरे से वाकिफ थे. उन्हें पता था कि सात दलों के बीच सीटों के बंटवारे में उन्हें 10-12 सीटों से अधिक नहीं मिलने वाला. यही वजह थी कि एक तरफ उनको पीएम प्रोजेक्ट करने वाले पोस्टर कभी आरजेडी तो कभी उनकी पार्टी जेडीयू की ओर से लगते रहे तो दूसरी ओर वे पीएम पद की रेस से खुद को बाहर बताते रहे हैं. कांग्रेस की मोनोपोली तोड़ने के लिए प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विपक्षी दलों की बैठक पटना में बुलाने की सलाह नीतीश कुमार को दे डाली थी. इससे उत्साहित नीतीश कुमार ने इसकी तैयारी भी करने लगे और संभावित तारीखों पर मंथन भी शुरू हो गया.