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बिस्मिल्लाह खां जयंती पर विशेष : बचपन में उस्ताद का सानिध्य क्या मिला, मुरली उन्हीं के होकर रह गए

बिस्मिल्लाह खां जयंती पर विशेष : बचपन में उस्ताद का सानिध्य क्या मिला, मुरली उन्हीं के होकर रह गए

DUMRAON : डुमरांव और यहां की मिट्टी हर क्षेत्र में शुरु से उर्वरा रही है। इसकी उर्वरता इतनी की डुमरांव के कमरुद्दीन शहनाई वादन में नया प्रयोग कर भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां बन गए। उस्ताद ने अपनी वादन शैली के बूते पूरी दुनिया को शहनाई का दीवाना बना दिया। इतना ही नहीं साधारण सी पिपही को शास्त्रीय संगीत में ढालकर शहनाई को संगीत की मल्लिका बना दिया।

उस्ताद किसी परिचय के मोहताज नहीं। लेकिन खां साहब के साथ एक नाम और जुड़ा मुरली का। ये वो मुरली जो बिस्मिल्लाह की होठों से कभी नहीं लगी। मगर बिस्मिल्लाह के दिल से हमेशा जुड़े रहे। उस्ताद को गए 16 वर्ष गुजर गए लेकिन बिस्मिल्लाह खां साहब की स्मृतियों को आज भी संजोने के लिए लगातार काम कर रहे हैं मुरली मनोहर श्रीवास्तव। आजीवन उस्ताद के हर दिल अजीज बने रहे। उनके साथ गुजरे वक्त को याद कर आज भी उनकी आंखें बरबस छलक जाती हैं। बहुत कम उम्र से ही बाबा के प्रति एक अदभुत लगाव रखने वाले मुरली के पिता जी (डॉ. शशि भूषण श्रीवास्तव) भोजपुरी फिल्म “बाजे शहनाई हमार अंगना” के लिए उन्हें लेकर आए थे वो तो पंद्रह दिनों तक बचपन में उस्ताद के साथ गुजारने का मौका क्या मिला, उस्ताद के होकर रह गए।

पढ़ाई करने के दरम्यान मुरली को जब कभी वक्त मिले तो बाबा से मिलने वाराणसी जा पहुंचते थे। उनके साथ पूरा दिन उनकी गायकी और रियाज से रुबरु होने का उन्हें मौका मिलता था। समय के साथ मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने बाबा के उपर ही किताब लिखना शुरु कर दिया। जब कभी भी इसका जिक्र वो लोगों से करते तो लोग उनकी बातों का मजाक बना देते थे। पर, इससे मुरली मनोहर श्रीवास्तव को कुछ असर नहीं पड़ा और वो लगातार उस्ताद पर काम करते रहे। उस्ताद पर “शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां” पुस्तक तो तैयार हो गई मगर छपने में उसे लगभग 10 साल लग गए। जब प्रकाशित हुई तो उस्ताद इस दुनिया में नहीं रहे। दरअसल मुरली के पास पैसे नहीं थे पुस्तक छपवाने के लिए और प्रकाशक छापने को नए लेखक को तैयार नहीं थे। बावजूद इसके मुरली ने कोई हार नहीं मानी और लगातार लगे रहे। पुस्तक जब छपी तो देश से लेकर विदेशों तक में अपनी पहचान स्थापित कर लिया।

यह कदम यहीं आकर नहीं थमें और उस्ताद पर पिछले 24 सालों से काम करने के दौरान उस्ताद पर एक डॉक्यूमेंट्री “सफर-ए-बिस्मिल्लाह” बनायी। जिसे बिहार सरकार ने रिलिज किया। उस्ताद पर दूरदर्शन के लिए भी डॉक्यूमेंट्री बनाया। उस्ताद की दत्तक पुत्री पद्मश्री डॉ. सोमा घोष का भी मुरली को काफी स्नेह बना रहता है। तभी तो सोमा घोष ने उत्तर प्रदेश के वाराणसी में “संगीत ग्राम” में भी मुरली को अपने साथ जोड़ लिया है। इसके अलावे मुरली मनोहर श्रीवास्तव डुमरांव में “बिस्मिल्लाह खां विश्वविद्यालय” खोलने के लिए 2013 से काम कर रहे हैं। इसके लिए बिहार सरकार के भू-राजस्व विभाग से भूमि आवंटन के लिए प्रस्ताव जिला को भेजवा चुके हैं। यूपी सरकार से लंबी वार्ता के बाद उस्ताद की मजार का पक्कीकरण करवाया। रेल विभाग ने मुरली के लंबे समय से कि जा रही मांग को मानते हुए डुमरांव स्टेशन पर उस्ताद की तस्वीरें बनवायीं और अनाउंसिंग माइक से शहनाई की धुन भी बजायी जाने लगी हैं। कभी हंसी के पात्र बनने वाले मुरली ने लगातार उस्ताद की स्मृतियों को संजोने के साथ-साथ हर दिन एक नई इबारत लिखते रहे हैं। ये वो मुरली (बांसुरी) हैं जो कभी बिस्मिल्लाह की होठों से भले ही नहीं छू पाए हों मगर अपनी लगन के बूते बाबा के गीत-संगीत और मिल्लत को गांव-गांव तक पहुंचा रहे हैं। इस नेक काम में इनके साथ कई लोग जुड़ते चले गए और कारवां बनता चला गया। आज स्थिति ये है कि इन्हें लोग उस्ताद बिस्मिल्लाह खां साहब के साथ इनका नाम भी बड़े अदब के साथ लेते हैं।

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