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उपेंद्र कुशवाहा की ‘बगावत’ के खिलाफ जब नीतीश चलेंगे मास्टर स्ट्रोक, एक झटके में कर देंगे शरद यादव वाला हाल

उपेंद्र कुशवाहा की ‘बगावत’ के खिलाफ जब नीतीश चलेंगे मास्टर स्ट्रोक, एक झटके में कर देंगे शरद यादव वाला हाल

पटना. जदयू में रहने के बाद भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ बगावती सुर अपनाये हुए उपेंद्र कुशवाहा का क्या होगा? जिस तरह से नीतीश कुमार और जदयू के शीर्ष नेतृत्व को उपेंद्र कुशवाहा ने पिछले कुछ दिनों के दौरान आइना दिखाया है उससे स्पष्ट लग रहा है कि जदयू में उनके दिन गिनती के हैं. नीतीश कुमार अभी तक उपेंद्र कुशवाहा की आलोचनात्मक बातों को सुन रहे हैं लेकिन एक्शन नहीं ले रहे हैं. हालांकि नीतीश चाहें तो एक झटके में उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ अपना मास्टर स्ट्रोक चल सकते हैं. उस स्थिति में उपेंद्र कुशवाहा की हालत वैसी ही हो जाएगी जिस तरह से वर्ष 2017 में शरद यादव के खिलाफ नीतीश ने एक्शन लिया था. 

दरअसल, मौजूदा समय में उपेंद्र कुशवाहा जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष हैं. ऐसे में यह नीतीश कुमार और जदयू अध्यक्ष ललन सिंह पर निर्भर करता है कि वे कितने दिनों तक कुशवाहा को इस पद पर रखते हैं. जिस तरह से उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश और ललन को निशाने पर ले रखा है उस स्थिति में अगर नीतीश उनके खिलाफ एक्शन लेते हैं तो सबसे पहले कुशवाहा का यही पद जा सकता है. यानी उन्हें जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष से हटाया जा सकता है. इतना ही नहीं उपेंद्र कुशवाहा की विधान परिषद की सदस्यता भी नीतीश और ललन के रहमोकरम पर निर्भर है. 

उपेंद्र कुशवाहा बिहार विधान परिषद के सदस्य हैं. वे राज्यपाल कोटे से एमएलसी बने हैं. ऐसे में उनकी सदस्यता को हटाने का निर्णय जदयू पर निर्भर है. इसके लिए जदयू की ओर से विधान परिषद के सभापति देवेश चंद्र ठाकुर को पदमुक्त करने का एक पत्र लिखा जाएगा. यह कुछ कुछ जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव वाली स्थिति होगी. शरद यादव ने भी वर्ष 2017 में नीतीश कुमार के खिलाफ आवाज बुलंद की थी. नतीजा हुआ था कि राज्य सभा सदस्य रहे शरद यादव से एक झटके में सांसद का पद छीन लिया गया. 

शरद यादव और अली अनवर के खिलाफ जेडीयू ने राज्यसभा सचिवालय के पास शिकायत दर्ज कराई थी. इसके बाद उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने दोनों नेताओं की सदस्यता समाप्त करने का फैसला लिया. राज्यसभा सचिवालय के अनुसार संविधान की दसवीं अनुसूची के पैरा 2 (1) (a) के अनुसार दोनों नेताओं की सदस्यता रद्द की गई. राज्यसभा में पार्टी के नेता आर सी पी सिंह जी ने तब इसकी पुष्टि की थी. उस समय शरद यादव का टर्म 5 साल बाकी था जबकि अली अनवर का 6 महीने कार्यकाल शेष था. स्थिति हुई कि शरद यादव के खिलाफ हुई उस कार्रवाई के बाद वे राजनीति में हाशिये पर चले गए. उन्हें अंत में राजद की सदस्यता लेनी पड़ी और इसी महीने उनका निधन भी हो गया. 

वर्ष 2017 में जेडीयू के महागठबंधन से अलग होकर बीजेपी के साथ सरकार बनाने के बाद शरद यादव बागी हो गए थे. जेडीयू नेताओं के मना करने के बाद भी पटना में हुई लालू की 'बीजेपी भगाओ, देश बचाओ' रैली में शामिल हुए थे और मंच से नीतीश कुमार पर हमला बोला था. इसी के बाद शरद को राज्यसभा में जेडीयू के नेता पद से हटाने और आरसीपी सिंह को राज्यसभा में जेडीयू का नेता बनाया गया था. बाद में शरद यादव की राज्यसभा की सदस्यता भी छीन ली गई. 

जिस तरह के बगावती बोल इन दिनों उपेद्र कुशवाहा बोल रहे हैं माना जा रहा है कि उनके खिलाफ भी शरद यादव वाला फार्मूला अपनाया जा सकता है. हालांकि यह अलग बात रही कि उस दौर में शरद के खिलाफ हुई कार्रवाई का समर्थन करने वाले आरसीपी सिंह भी बाद में नीतीश के खिलाफ हो गए. उन्हें वर्ष 2022 में जदयू का अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा. साथ ही उन्हें जदयू से निकाल दिया गया . 


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