श्री कृष्ण सिंह को कब मिलेगा भारत रत्न! कर्पूरी ठाकुर के बाद श्री बाबू के लिए उठी जोरदार मांग, पूर्व CM मांझी ने उठाई आवाज

पटना। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा होने के बाद बिहार के कई अन्य विभूतियों के लिए भी भारत रत्न की मांग उठने लगी है। इसमें बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह के लिए भारत रत्न दिए जाने की पुरजोर मांग की गई है । उनके लिए भारत रत्न की मांग बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने की है। मांझी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर श्री कृष्ण सिंह उर्फ श्री बाबू के लिए भारत रत्न दिए जाने की प्रधानमंत्री मोदी से मांग की है। उन्होंने भरोसा जताया है कि जैसे कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिया गया है वैसे ही अन्य विभूतियों को भी भारत रत्न जरूर मिलेगा।
मांझी ने अपने सोशल मीडिया पर इस मांग को लेकर लिखा है, 'पिछड़ों के लाल को तो भारत रत्न मिल गया अब दशरथ मांझी जी और डॉ श्री कृष्ण सिंह जी की बारी है। “मांझी द मांउंटेनमैन से मांझी द भारत रत्न” “श्री बाबू बिहार के शिल्पीकार से भारत के रत्न”। मोदी है तो भरोसा है मोदी है तो गारंटी है।' वहीं अन्य पोस्ट में मांझी ने लिखते हैं, '13 अप्रैल 23 को जब मैंने मा . अमित शाह जी से मिलकर कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न देने को कहा तो गृह मंत्री जी ने कहा था कि आप भरोसा रखिए,दलित और पिछडो को उनका हक मिलेगा। पर आज यह साबित हो गया कि”मोदी की गारंटी”मतलब क्या होता है। धन्यवाद शाह जी एवं नरेंद्र मोदी जी आप हैं तो भरोसा है।
दरअसल, 1970 के दशक में सामाजिक बदलाव के नायक माने गए कर्पूरी ठाकुर को जननायक के नाम से जाना जाता है। कर्पूरी द्वारा बिहार में सामाजिक बदलाव के लिए उठाये गए कई महत्वपूर्ण कदम में आठवीं तक की मुफ्त शिक्षा, 5 एकड़ तक जमीन पर मालगुजारी समाप्त, उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्ज़ा, अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त, महिलाओं एवं ओबीसी को आरक्षण और ओबीसी को आरक्षण देने वाला बिहार देश का पहला सूबा बना था। कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा अब केंद्र की मोदी सरकार ने कर दी है इसके साथ ही श्री बाबू के लिए भी वही मांग फिर से जोड़ पकड़ रही है।
श्रीकृष्ण सिंह को आधुनिक बिहार का निर्माता कहा जाता है। बिहार के पहले सीएम को पूरे राज्य में बेहद सम्मान मिलता है। इसकी वजह यह है कि वे एक राजनेता के तौर पर लोकतांत्रिक मूल्यों को बखूबी पालन किया करते थे। श्रीकृष्ण सिंह का जन्म 21 अक्टूबर 1887 को ननिहाल नवादा जिले के खनवा गांव में हुआ था। हालांकि उनका पैतृकभूमि बरबीघा जिले के माउर में है। युवा अवस्था से ही श्रीकृष्ण सिंह स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए थे। वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर राजनीति में आए थे। श्रीबाबू 1916 में वाराणसी में गांधीजी को सुनने और देखने पहुंचे थे। 1917 में जब गांधीजी ने चंपारण सत्याग्रह की शुरुआत की थी तब श्रीकृष्ण सिंह ने किसानों के जत्थे का नेतृत्व किया था।
1946–1961 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। उनके सहयोगी डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह उनके मंत्रिमंडल में उपमुख्यमंत्री और वित्तमंत्री के रूप में आजीवन साथ रहे। श्रीकृष्ण सिंह के महज 10 साल के कार्यकाल में बिहार में उद्योग, कृषि, शिक्षा, सिंचाई, स्वास्थ्य, कला व सामाजिक क्षेत्र में कई कार्य हुये। उनमें आजाद भारत की पहली रिफाइनरी- बरौनी ऑयल रिफाइनरी, आजाद भारत का पहला खाद कारखाना- सिन्दरी और बरौनी रासायनिक खाद कारखाना, एशिया का सबसे बड़ा इंजीनियरिंग कारखाना-भारी उद्योग निगम (एचईसी) हटिया, देश का सबसे बड़ा स्टील प्लांट-सेल बोकारो, बरौनी डेयरी, एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड-गढ़हरा, आजादी के बाद गंगोत्री से गंगासागर के बीच प्रथम रेल सह सड़क पुल-राजेंद्र पुल, कोशी प्रोजेक्ट, पुसा व सबौर का एग्रीकल्चर कॉलेज, बिहार, भागलपुर, रांची विश्वविद्यालय इत्यादि जैसे कई उदाहरण हैं। उनके शासनकाल में संसद के द्वारा नियुक्त फोर्ड फाउंडेशन के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री श्री एपेल्लवी ने अपनी रिपोर्ट में बिहार को देश का सबसे बेहतर शासित राज्य माना था और बिहार को देश की दूसरी सबसे बेहतर अर्थव्यवस्था बताया था।