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आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा क्यों बढ़ाने की मांग कर रही है कांग्रेस, जाति आधारित जनगणना का समर्थन करने का क्या है राज, पढ़िए इनसाइड स्टोरी...

आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा क्यों बढ़ाने की मांग कर रही है कांग्रेस,  जाति आधारित जनगणना का समर्थन करने का क्या है राज, पढ़िए इनसाइड स्टोरी...

DELHI- पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों और अगले साल के लोकसभा चुनाव से पहले सोमवार को सामाजिक न्याय की चुनावी राह पर मजबूती के साथ चलने का निर्णय लेते हुए कांग्रेस ने जहां देश में जाति जनगणना कराने का पक्ष लिया वहीं अन्य पिछड़े वर्गों , अनुसूचित जाति  और अनुसूचित जनजाति  के लिए आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% को बढ़ाने की भी बात कही है.

 कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस केंद्र की सत्ता में आती है तो राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना कराई जाएगी, ओबीसी महिलाओं की भागीदारी के साथ महिला आरक्षण को जल्द से जल्द लागू किया जाएगा और ओबीसी, एससी और एसटी के लिए आरक्षण की अधिकतम सीमा को कानून के माध्यम से खत्म किया जाएगा.

कांग्रेस मुख्यालय में करीब चार घंटे तक चली कार्य समिति की बैठक में जाति जनगणना और पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की रणनीति पर मुख्य रूप से चर्चा की गई. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू सहित पार्टी के  कई वरिष्ठ नेता शामिल थे.कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी ने कहा कि वह जातिगत जनगणना के विचार का पूरी तरह समर्थन करती हैं और यह उनकी पार्टी की सर्वोच्च प्राथमिकता है.

खड़गे ने कांग्रेस पार्टी नेताओं से राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनावों के लिए प्रभावी रणनीति बनाने पर जोर दिया. कांग्रेस अध्यक्ष ने केंद्र सरकार पर प्रचार और वोटबैंक की राजनीति के लिए महिला आरक्षण विधेयक लाने और ओबीसी की महिलाओं को प्रतिनिधित्व नहीं देने का आरोप लगाया.राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस कार्य समिति ने जाति आधारित जनगणना का समर्थन करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है क्योंकि यह हिंदुस्तान के भविष्य के लिए जरूरी है. उन्होंने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के ज्यादातर घटक दल जाति आधारित जनगणना के पक्ष में हैं. 

बता दें साल 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए जाति-आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय कर दी थी. सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले के बाद कानून ही बन गया कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता. इसके चलते राजस्थान में गुर्जर, हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल जब भी आरक्षण मांगते हैं तो सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आड़े आ जाता है.

हालांकि, साल 2019 में मोदी सरकार ने पिछले दिनों सामान्य वर्ग को आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए संविधान में संशोधन का विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित करवा दिया. इससे आरक्षण की अधिकतम 50 फीसदी सीमा के बढ़कर 60 प्रतिशत हो जाने का रास्ता आसान हो गया है. वहीं, अब मराठा आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की राय जाननी चाही तो तमाम प्रदेशों की सरकार 50 फीसदी आरक्षण के दायरे के बाहर निकलना चाहती हैं. 

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