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विशेष राज्य का दर्जा देने पर केंद्र सरकार ने क्यों लगा रखा है पर्दा? क्या हर चुनाव के पहले नीतीश अलापते हैं बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का राग, इनसाइड स्टोरी

विशेष राज्य का दर्जा देने पर केंद्र सरकार ने क्यों लगा रखा है पर्दा?  क्या हर चुनाव के पहले  नीतीश अलापते हैं बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का राग, इनसाइड स्टोरी

पटना-मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर लंबे समय से सियासी दांव चल रहे हैं, लेकिन अभीतक उन्हें किसी प्रकार की सफलता हाथ नही लगी है। ऐसे में बिहार को अब तक विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलने के लिए उन्होंने सीधे-सीधे तौर परकांग्रेस को जिम्मेदार बता दिया है।उन्होंने बताया किकांग्रेस के शासन में विशेष राज्य के दर्जा देने के लिए कमेटी बनी, कमेटी ने रिपोर्ट भी दिया, इसके बाद भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया गया।अपने एक्स हैंडल पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमारने लिखा है कि 'हम लोग बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग वर्ष 2010 से ही कर रहे हैं। इसके लिए 24 नवम्बर, 2012 को पटना के गांधी मैदान में तथा 17 मार्च, 2013 को दिल्ली के रामलीला मैदान में बिहार को विशेष राज्य के दर्जे के लिए अधिकार रैली भी की थी। हमारी मांग पर तत्कालीन केन्द्र सरकार ने इसके लिए रघुराम राजन कमेटी भी बनाई थी।

बिहार को क्यों नहीं मिल रहा है विशेष राज्य का दर्जा?

आजादी के 75 साल बाद भी बिहार की एक बड़ी आबादी गरीबी से जूझ रही है. बिहार सरकार की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के 94 लाख परिवारों की आय 6 हजार से भी कम है.

यह कुल आबादी का 34 प्रतिशत है. बिहार के अधिकांश लोग या तो बेरोजगार हैं या दिहाड़ी मजदूरी कर अपना जीवन-यापन कर रहे हैं. इतना ही नहीं, बिहार की सीमा से नेपाल की अंतरराष्ट्रीय सीमा भी लगती है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा केंद्र क्यों नहीं दे रहा है?

14वें वित्त आयोग की सिफारिश-

अर्थशास्त्री वाई.वी रेड्डी की अध्यक्षता वाली 14वें वित्त आयोग ने विशेष राज्य का दर्जा देने को लेकर केंद्र सरकार को एक सिफारिश सौंपी थी. इस सिफारिश में कहा गया था कि उत्तर-पूर्व और पहाड़ी राज्यों को छोड़कर किसी अन्य राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा न दिया जाए.आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा कि दर्जा देने की बजाय पिछड़े राज्यों को विशेष सहायता पैकेज दिया जाए.केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के मुताबिक प्रधानमंत्री ने अपने वादे अनुरूप बिहार के विकास के लिए 1.35 लाख करोड़ रुपए खर्च किए हैं. यह पैसे महामार्ग, ग्रामीण सड़कें, रेलवे और एयरपोर्ट के मद में खर्च किए गए.2018 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साफ कर दिया था कि अब किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जाएगा. इसके बदले राज्य विशेष पैकेज की मांग कर सकता है.

इस पर राजनीति भी एक वजह-

 2010 में कई राज्यों ने विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग केंद्र से शुरू कर दी. केंद्र ने इसके बाद रघुराम राजन की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई. इस कमेटी की रिपोर्ट बिहार के रास्ते में रोड़ा बन गया.राजन कमेटी ने देश के सभी राज्यों को 3 कैटेगरी में बांट दिया. 1. सबसे कम विकसित 2. अल्पविकसित और 3. अपेक्षाकृत विकसितसबसे कम विकसित वाले राज्यों की श्रेणी में बिहार, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, अरुणाचल, असम, मेघालय, राजस्थान और उत्तर प्रदेश को रखा गया.अगर इस कमेटी की रिपोर्ट को मानकर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दे दिया गया, तो बाकी के राज्यों में विरोध शुरू हो जाएगा. ओडिशा भी लंबे वक्त से विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहा है.झारखंड और छत्तीसगढ़ भी आदिवासी राज्य का हवाला देकर केंद्र से विशेष दर्जा देने की मांग कर रहा है. 2013 के बाद आंध्र में भी स्पेशल स्टेटस की मांग तेज हो गई है.इतने सारे राज्यों की मांग को देखते हुए केंद्र ने इसे ठंडे बस्ते में डालना ही उचित समझा.


क्या है विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा?
 बेशक केंद्र सरकार का कहना है कि वह किसी राज्य को विशेष आर्थिक पैकेज तो दे सकता है, लेकिन विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता। लेकिन पूर्व में किसी राज्य को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा देने के लिये कुछ मापदंड तय किये गए थे, जिनसे उनके पिछड़ेपन का सटीक मूल्यांकन कर उसके अनुरूप दर्जा प्रदान किया जाता था।


 इसके मापदंडों में उक्त क्षेत्र का पहाड़ी इलाका और दुर्गम क्षेत्र, आबादी का घनत्व कम होना एवं जनजातीय आबादी का अधिक होना, पड़ोसी देशों से लगे (अंतरराष्ट्रीय सीमा) सामरिक क्षेत्र में स्थित होना, आर्थिक एवं आधारभूत संरचना में पिछड़ा होना और राज्य की आय की प्रकृति का निधारित नहीं होना शामिल था। पूर्व में राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा निर्धारित प्रावधानों के अनुसार सामरिक महत्त्व की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित ऐसे पहाड़ी राज्यों को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा प्रदान किया जाता था जिनके पास स्वयं के संसाधन स्रोत सीमित होते थे।

इन 11 पहाड़ी राज्यों को मिला है विशेष दर्जा

फिलहाल देश के 11 राज्यों को विशेष दर्जा मिला हुआ है--अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड।जम्मू-कश्मीर, असम और नगालैंड को 1969 में, हिमाचल प्रदेश को 1971 में, मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा को 1972 में, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और मिज़ोरम को 1975 में तथा उत्तराखंड को 2001 में विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा मिला। अब तक देश में जिन राज्यों को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा मिला है, उसके पीछे मुख्य आधार उनकी दुर्गम भौगोलिक स्थिति एवं वहाँ व्याप्त सामाजिक-आर्थिक विषमताएँ हैं।इन राज्यों में अत्यधिक दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र होने और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित होने के कारण उद्योग-धंधे लगाना मुश्किल है।इन राज्यों में बुनियादी ढाँचे का अभाव है और ये सभी आर्थिक रूप से भी पिछड़े हैं। विकास के मामले में भी ये राज्य पिछड़े हुए हैं।

क्या लाभ होता है?

इन मापदंडों को पूरा करने वाले राज्यों को केंद्रीय सहयोग के तहत प्रदान की गई राशि में 90 प्रतिशत अनुदान और 10 प्रतिशत ऋण होता है।अन्य राज्यों को केंद्रीय सहयोग के तहत 70 प्रतिशत राशि ऋण के रूप में और 30 प्रतिशत राशि अनुदान के रूप में दी जाती है।विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा देने के बाद केंद्र सरकार ने इन राज्यों को विशेष पैकेज सुविधा और टैक्स में कई तरह की राहत दी है।इससे निजी क्षेत्र इन इलाकों में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित होते हैं जिससे क्षेत्र के लोगों को रोज़गार मिलता है और उनका विकास सुनिश्चित होता है।संविधान के 12वें भाग के पहले अध्याय में केंद्र-राज्यों के वित्तीय संबंधों का उल्लेख है।पहली बार साल 1969 में पांचवें वित्त आयोग की सिफारिश पर केंद्र सरकार ने असम, नगालैंड और जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया था. 3 राज्यों को विशेष राज्य की श्रेणी में रखने के बाद कई राज्यों ने इसकी मांग शुरू कर दी.केंद्र ने इसके बाद एक फॉर्मूला बनाया और इसी पर खरे उतरने वाले राज्यों को इसका दर्जा दिया गया. वर्तमान में 11 राज्यों को विशेष राज्य की श्रेणी में रखा गया है. इनमें पूर्वोत्तर के सभी राज्य शामिल हैं. पहाड़ी राज्य उत्तराखंड और हिमाचल को भी विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है.

किसी राज्यों को कैसे मिलता है यह स्टेटस?

2018 में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने विशेष राज्य का दर्जा कैसे मिलेगा, इसके बारे में बताया. मंत्रालय के मुताबिक विशेष राज्य का दर्जा देने का मानदंड राष्ट्रीय विकास परिषद के सिफारिश पर बनाया गया है, जिसमें निम्न बातों को ध्यान रखा जाता है.राज्य का भौगोलिक संरचना किस तरह का है. पहाड़ी और दुर्गम इलाके वाले राज्य को विशेष तरजीह दी जाती है.किसी राज्य की सीमा से अगर कोई देश की सीमा लगती है, तो उसे भी विशेष राज्य का दर्जा देने पर विचार किया जा सकता है.जनसंख्या घनत्व अगर किसी राज्य का कम है या किसी राज्य में जनजातीय लोगों की संख्या अधिक है, तो उसे भी यह स्टेटस मिल सकता है.आर्थिक रूप से पिछड़े राज्य को भी विशेष राज्य का दर्जा दिया जा सकता है. हालांकि, यह इसका मूल्यांकन करना केंद्र का काम है.राज्यों के जो फाइनेंस हैं या राज्यों के पास जो रकम है वो कितनी प्रैक्टिकल है. क्या वो रकम व्यवहारिक तौर पर खर्च किया जा सकता है.

विशेष राज्य का दर्जा मांगने की होड़ क्यों मची है?

केंद्र सरकार राज्यों को विकास के लिए 2 तरह से पैसे देती है. पहला तरीका अनुदान और दूसरा कर्ज का कहलाता है. अमूमन केंद्र 30 प्रतिशत पैसे अनुदान और 70 प्रतिशत पैसे राज्यों को कर्ज के रूप में देती है.लेकिन जब किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा मिल जाता है, तब केंद्र उसे 90 प्रतिशत पैसे अनुदान और 10 प्रतिशत पैसे कर्ज के रूप में देती है. इसके अलावा विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त राज्यों को एक्साइज, कस्टम, कॉर्पोरेट, इनकम टैक्स आदि में भी रियायत मिलती है.केंद्रीय बजट में प्लान्ड खर्च का 30% हिस्सा विशेष राज्यों को मिलता है. साथ ही कई बार जब विशेष दर्जा प्राप्त राज्य मिले हुए पैसे को खर्च नहीं कर पाती है, तो वह पैसा उसे अगले वित्त वर्ष के लिए जारी हो जाता है.

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