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वंशवादी राजनीति में कार्यकर्ता ठेंगे पर, नेतापुत्रों का मौजा ही मौजा

वंशवादी राजनीति में कार्यकर्ता ठेंगे पर, नेतापुत्रों का मौजा ही मौजा

NEWS4NATION DESK : इस बार भी बिहार की चुनावी फ़िज़ा में वंशवाद की जहरीली हवा तैर रही है और मेहनतकश कार्यकर्ता घूंट-घूंटकर अपने आकाओं के इशारे पर पसीना बहा रहे हैं ताकि अक्षम और असमर्थ नेता पुत्रों को सांसद रूपी ब्रांड का चोगा पहना दिया जाय। 

बहरहाल इस चुनाव में वंशवादी राजनीति के आंकड़े को माने तो करीब 1 दर्जन से ज्यादा नेताओं ने अपने पुत्रों को चुनावी मैदान में उतार दिया है। अगर नेताओं के सगे-सम्बन्धियों को मिला लें तो इनकी संख्या तकरीबन 30 के बराबर पहुंच जाती है, जबकि लोकसभा के सीटों की संख्या ही 40 है। मतलब साफ है कार्यकर्ता ठेंगे पर और नेतापुत्रों का मौजा ही मौजा।

कांग्रेस ने तो कार्यकर्ताओं के बीच अचानक वाल्मीकिनगर लोकसभा सीट पर पके हुए आम की तरह तीसरी पीढ़ी को भी टपका दिया। बेचारे कार्यकर्ता करें तो क्या करें। इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री केदार पांडे के पौत्र शाश्वत केदार को कांग्रेस ने चुनाव के मैदान में उतारा है। शाश्वत के पिता मनोज पांडे भी सांसद रह चुके हैं। अब थोड़ा आगे बढिए।

छपरा से चंद्रिका राय पुत्र दरोगा राय, पटना साहिब, रविशंकर प्रसाद पुत्र ठाकुर प्रसाद, सासाराम से मीरा कुमार पुत्री जगजीवन राम, पाटलिपुत्र से मीसा भारती, पुत्री लालू यादव, जमुई से चिराग पासवान पुत्र, रामविलास पासवान, मधुबनी से अशोक यादव पुत्र हुकुमदेव नारायण यादव, समस्तीपुर से अशोक राम पुत्र बालेश्वर राम, मुजफ्फरपुर से अजय निषाद, पुत्र जयनारायण निषाद, मोतिहारी आकाश सिंह पुत्र अखिलेश सिंह, खगड़िया से महबूब अली कैसर पुत्र चौधरी सलाउद्दीन,  गया विजय मांझी पुत्र भगवतिया देवी, महाराजगंज से रणधीर सिंह पुत्र प्रभुनाथ सिंह, अररिया से सरफ़राज़ आलम पुत्र तस्लीमुद्दीन, पूर्णिया से पप्पू सिंह पुत्र माधुरी सिंह और बेतिया से संजय जायसवाल पुत्र मदन जायसवाल, ये सब के सब वंशवाद के सशक्त उदाहरण हैं। 

अब थोड़ा और समझिये मधेपुरा अगर पप्पू यादव लड़ रहे हैं तो सुपौल से उनकी पत्नी। अनन्त सिंह विधायक है तो मुंगेर से पत्नी नीलम देवी को कांग्रेस का टिकट दिलवा दिया। रामविलास पासवान का तो कोई जोड़ ही नहीं, भाई से लेकर बेटा तक का मौजा ही मौजा। लालू यादव को देखिये कार्यकर्ताओं ने कहां से कहां पहुंचा दिया, लेकिन जब कुर्सी देने के बात आयी तो कभी पांचवी पास पत्नी पर भरोसा जताया यो कभी नौंवी पास बेटे पर। 

यही हाल कमोबेस सारे नेताओ के घरों में है। यह तो सिर्फ बानगी है, अभी अनेको उदाहरण और भरे पड़े हैं।

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