Shardiya Navratri : शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर से 12 अक्टूबर 2024 तक हैं.नवरात्रि के दौरान 9 दिनों तक धूमधाम से मां दुर्गा के 9 स्वरूपों का पूजन होता है. नवरात्रि में मां को किस दिन कौन सा भोग लगाएं यह भी बेहद जरूरी होता है. नवरात्रि के पहले दिन मां के चरणों में गाय का शुद्ध घी अर्पित करना चाहिए. दूसरे दिन मां को शक्कर का भोग लगाएं. तीसरे दिन दूध या खीर का भोग लगाना चाहिए.चौथे दिन मालपुए का भोग लगाना शुभकर माना जाता है. पांचवें दिन मां को केले का नैवेद्य चढ़ाया जाता है. छठे दिन मां को शहद का भोग लगाया जाना चाहिए. सातवें दिन मां को गुड़ का नैवेद्य चढ़ाएं. आठवें दिन मां को नारियल का भोग लगाएं.नवमी पर तिल का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान दें.
घट स्थापना का शुभ मुहूर्त : देवी दुर्गा के भक्त प्रथम दिन घट स्थापना के साथ पूजन विधान की शूरुआत करेंगे. ऐसे में घट स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त भी भिन्न है. पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि पर घट स्थापना के कई शुभ मुहूर्त हैं. घट स्थापना का सबसे पहला शुभ मुहूर्त 3 अक्टूबर, गुरुवार को सुबह 06:14 से 07:23 मिनिट तक है. वहीं घट स्थापना के लिए दूसका शुभ अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:47 से दोपहर 12:34 मिनिट तक रहेगा.
वहीं साधक अगर चाहें तो चौघड़िया मुहूर्त में भी कलश स्थापना कर सकते हैं. इन मुहूर्तों के अलाव चौघड़िया मुहूर्त में घट स्थापना के लिए सुबह 10:42 से दोपहर 12:11 तक, दोपहर 12:11 से 01:39 तक, शाम 04:35 से 06:05 तक और शाम 06:05 से 07:37 तक का शुभ समय है.
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने के साथ-साथ कलश स्थापना की जाती है. इसमें मिट्टी का आसन बनाकर कलश स्थापित किया जाता है. साथ ही कलश के चारों ओर जौ बोए जाते हैं जिसकी नौ दिनों तक पूजा करने का विधान है. कलश स्थापन के लिए शुद्ध मिट्टी, बौने के लिए जौ, मिट्टी, पीतल या फिर तांबे का कलश, आम या अशोक के पांच पत्ते एक-दूसरे से जुड़े हुए, कलश के ऊपर रखने के लिए कटोरी, कटोरी को भरने के लिए अनाज, एक नारियल, एक लाल कपड़ा य़ा चुनरी, कलावा, सिंदूर , चूना-हल्दी से बना हुआ तिलक, अक्षत, जल, गंगाजल, 1 सिक्का, 1 सुपारी चाहिए होता है.
दुर्गा सप्तशती में कलश पूजन, कलश स्थापन के सभी विधान होते हैं. साधक चाहें तो उसे देखकर अपनी पूजा शुरू कर सकते हैं. उसमें बताए निर्देशों के तहत कलश की स्थापना की जा सकती है. साथ ही कलश स्थपाना के बाद दुर्गा सप्तशती पाठ भी किया जाता है. कुल 13 अध्याय वाले दुर्गा सप्तशती के पूर्ण पाठ के अलग अलग विधान होते हैं. साधक अपनी श्रद्धा और सुविधा के अनुरूप पाठ करें.