UP NEWS: वाह रे सिस्टम! बेटा मां के शव को लिए 1 KM पैदल चलता रहा, विधायक जी के गाड़ी को खुली छूट

हमीरपुर: उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले से सामने आई एक मार्मिक घटना ने सरकारी सिस्टम की संवेदनहीनता को फिर से उजागर कर दिया है। यह घटना बताती है कि आम लोगों के लिए जहां नियमों की दीवारें खड़ी कर दी जाती हैं, वहीं वीआईपी लोगों के लिए वही दरवाजे आसानी से खोल दिए जाते हैं।
शव वाहन को रोका गया, बेटे को करना पड़ा स्ट्रेचर पर शव का सफर
हमीरपुर जिले में यमुना पुल की मरम्मत का कार्य चल रहा है। इसी कारण शनिवार और रविवार को सुबह 6 बजे से इस पुल से किसी भी वाहन की आवाजाही पर रोक लगा दी गई है। लोग इस पुल को पैदल पार कर रहे हैं। इसी दौरान सुमेरपुर क्षेत्र के टेढ़ा गांव की रहने वाली शिवदेवी की इलाज के दौरान कानपुर में मौत हो गई। जब उनके शव को एंबुलेंस से गांव लाया जा रहा था, तो यमुना पुल पर वाहन को रोक दिया गया।
शिवदेवी के बेटों ने अधिकारियों से हाथ जोड़कर गुहार लगाई कि मां का शव वाहन पुल पार कर जाने दिया जाए, लेकिन किसी ने बात नहीं सुनी। आखिरकार बेटों ने एंबुलेंस से शव को नीचे उतारा और एक स्ट्रेचर पर रखकर करीब एक किलोमीटर तक पैदल पुल पार किया। रास्ते में चार बार उन्हें शव को नीचे रखना पड़ा। यह दृश्य जिसने भी देखा, उसने सिस्टम को कोसा।
बेटे की पीड़ा: मां के शव को ले जाने नहीं दिया गया, कोई रहम नहीं आया
शिवदेवी के बेटे बिंदा ने बताया कि उनकी मां का पैर टूट गया था, इलाज के लिए कानपुर ले जाया गया था, लेकिन वहीं उनकी मौत हो गई। वह अपनी मां का शव लेकर लौटे, मगर पुल पर पुलिस ने वाहन रोक दिया। अधिकारियों से बार-बार विनती की, लेकिन किसी ने नहीं सुनी। पुल पार करने के बाद शव को ऑटो में रखकर गांव ले जाया गया।
वहीं वीआईपी के लिए खुला रहा रास्ता
इस घटना से कुछ दिन पहले 21 जून को योग दिवस पर लखनऊ से एक प्रमुख सचिव हमीरपुर पहुंचे थे। उस समय भी पुल पर नो एंट्री थी, लेकिन उनकी गाड़ी को बिना किसी रुकावट के पुल से गुजरने दिया गया। इसके अलावा कई मंत्रियों की गाड़ियां भी उसी दिन पुल से निकलती देखी गईं। जब इस बारे में हमीरपुर सदर से विधायक मनोज प्रजापति से सवाल किया गया कि उनकी गाड़ी भी नो एंट्री में पुल से कैसे गुजरी, तो उन्होंने जवाब दिया कि उस वक्त पुल पूरी तरह से बंद नहीं था। लेकिन सच यही है कि आम लोगों की एंबुलेंस तक रोकी जा रही है, जबकि वीआईपी गाड़ियों को छूट दी जा रही है।
सवाल यही उठता है — क्या सिस्टम अब सिर्फ ताकतवरों के लिए रह गया है?
यह घटना सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए आंख खोलने वाली है। जब एक बेटा अपनी मां के शव को स्ट्रेचर पर रखकर पैदल पुल पार करता है और उसी पुल से अधिकारी और नेताओं की गाड़ियां आराम से गुजरती हैं, तो यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि क्या नियम सिर्फ गरीबों और आम लोगों के लिए ही हैं? हमीरपुर की यह घटना सिस्टम की उस सच्चाई को सामने लाती है, जहां आम इंसान को हर मोड़ पर संघर्ष करना पड़ता है, जबकि ताकतवरों के लिए हर रास्ता खुला होता है। इस व्यवस्था में इंसानियत और संवेदनाओं की जगह अगर सिर्फ पद और प्रभाव को मिलती है, तो फिर ऐसे नियमों की उपयोगिता पर सवाल उठना लाज़िमी है।