Mahakumbh journey: अगर इंसान के भीतर जज्बा और दृढ़ संकल्प हो, तो दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है। सहरसा जिले के पिपरा प्रखंड के रहने वाले रूपेश धावक ने इस बात को सच कर दिखाया है। रूपेश ने 1100 किमी की दूरी को दौड़ते हुए महाकुंभ तक की यात्रा की और प्रयागराज में संगम स्नान किया। उनके इस अद्भुत साहस और संकल्प ने पूरे इलाके में उन्हें चर्चा का विषय बना दिया है।
17 दिनों में पूरी की 1100 किमी की यात्रा
रूपेश ने अपनी यात्रा 23 जनवरी को सहरसा से शुरू की थी और केवल 300 रुपये लेकर महाकुंभ यात्रा की दौड़ शुरू की। वह हर दिन लगभग 10 घंटे दौड़ते रहे और 8 फरवरी को प्रयागराज पहुंचे। संगम स्नान करने के बाद, उन्होंने अपनी यात्रा पूरी की। इस दौरान उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
सफर में आईं चुनौतियां
रूपेश ने बताया कि यात्रा के दौरान उनके साथ सहरसा से दो दोस्त भी थे, लेकिन बख्तियारपुर से उनके दोस्त पीछे हट गए। वह अकेले ही अपनी यात्रा जारी रखते हुए प्रयागराज पहुंचे। उनके सफर में एक बड़ा हादसा तब हुआ जब दानापुर स्टेशन पर उनका पर्स और मोबाइल चोरी हो गया। हालांकि, घर वालों और दोस्तों ने उन्हें नया मोबाइल उपलब्ध कराया और सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों ने आर्थिक सहयोग भी किया।
सोशल मीडिया से मिला सहयोग
रूपेश ने यात्रा का पोस्टर बनवाया था, जिसमें पेमेंट का क्यूआर कोड भी दिया गया था। सोशल मीडिया के जरिए उन्होंने अपनी यात्रा को साझा किया, जिससे उन्हें लोगों का समर्थन मिला। इस साहसिक यात्रा के दौरान रूपेश की तबीयत भी खराब हो गई थी, लेकिन उन्होंने यात्रा को जारी रखा और आखिरकार संगम पहुंचकर सफलता हासिल की।
रूपेश का सपना: देश के लिए लाना है मेराथन में गोल्ड
रूपेश वर्तमान में बीएनएमयू के घैलाढ़ कॉलेज से स्नातक कर रहे हैं और 2024 में अग्निवीर की बहाली में उनका चयन हो चुका है। उनका सपना है कि वह देश के लिए मेराथन में गोल्ड मेडल लाएं। इसके लिए उन्होंने सरकार से मदद की मांग भी की है ताकि वह अपनी तैयारी को और बेहतर कर सकें।
परिवार को सुनना पड़ा ताना
रूपेश के इस निर्णय पर उनके परिवार को शुरुआत में ताने सुनने पड़े। लोग कह रहे थे कि रूपेश यात्रा के बहाने पैसे मांगने गया है। लेकिन जब परिवार को वास्तविकता का पता चला, तो उन्होंने रूपेश का समर्थन किया। उनके पिता राम प्रवेश यादव ने बताया कि रूपेश ने बिना बताए यात्रा शुरू की थी, लेकिन बाद में उन्होंने हर संभव मदद की।