Unnatural Sex: पत्नी के साथ बिना सहमति अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना अपराध नहीं, कोर्ट का अननेचुरल सेक्स पर बड़ा आदेश

अननेचुरल सेक्स को लेकर कई बार पति-पत्नी के बीच होने वाली अनबन पर अब कोर्ट ने एक बड़ा आदेश दिया है. इसमें अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने में उसकी सहमति की जरूरत नहीं बताई गई है.

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Unnatural Sex- फोटो : news4nation

Unnatural Sex: पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना भी अप्राकृतिक कृत्य सहित यौन संबंध बनाना अपराध नहीं माना जा सकता। अदालत का यह फैसला वर्ष 2017 में गिरफ्तार किए गए एक व्यक्ति के मामले में सुनवाई करते हुए आया। गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को एक ट्रायल कोर्ट ने उसकी पत्नी की मृत्यु के बाद आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार), 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध) और 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत आरोपों में दोषी ठहराया था। लेकिन अब ऊपरी अदालत ने सहमति के बिना भी अप्राकृतिक कृत्य सहित यौन संबंध बनाना अपराध नहीं माना है।


अदालत का यह मामला छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने जगदलपुर निवासी को बलात्कार और अन्य आरोपों से बरी करते हुए आया. न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार व्यास ने यह टिप्पणी की. एकल पीठ के न्यायाधीश ने कहा कि अगर पत्नी की उम्र 15 वर्ष से कम नहीं है तो पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ कोई भी यौन संबंध या यौन कृत्य बलात्कार नहीं कहा जा सकता क्योंकि अप्राकृतिक कृत्य के लिए पत्नी की सहमति अपना महत्व खो देती है।


वर्ष 2017 में हुआ था मामला

अभियोजन पक्ष के अनुसार, बस्तर जिले के मुख्यालय जगदलपुर के निवासी व्यक्ति को 11 दिसंबर, 2017 को एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज की गई उसकी पत्नी के बयान के आधार पर गिरफ्तार किया गया था. बाद में महिला की उसी दिन एक सरकारी अस्पताल में मृत्यु हो जाती है। 11 दिसंबर, 2017 को महिला ने दर्द की शिकायत की और अपने परिवार के सदस्यों को बताया कि उसके पति ने उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए। पीड़िता ने मजिस्ट्रेट के समक्ष मृत्यु पूर्व बयान दर्ज किया, जिसमें उसने बयान दिया कि उसके पति द्वारा "जबरन यौन संबंध" के कारण वह बीमार हो गई।


11 फरवरी, 2019 को जगदलपुर के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (फास्ट ट्रैक कोर्ट या एफटीसी) ने व्यक्ति को आईपीसी की धारा 377, 376 और 304 के तहत दोषी ठहराया और उसे 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। बाद में व्यक्ति ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए बिलासपुर में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। सुनवाई के दौरान, वकील ने कहा कि अपीलकर्ता के खिलाफ रिकॉर्ड पर कोई कानूनी रूप से स्वीकार्य सबूत उपलब्ध नहीं है और केवल पीड़िता के बयान के आधार पर, उसके मुवक्किल को कई अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया है।


मौत का कारण अप्राकृतिक यौन संबंध नहीं

उन्होंने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने दो गवाहों के बयानों पर विचार नहीं किया, जिन्होंने जगदलपुर की अदालत को बताया था कि महिला अपनी पहली डिलीवरी के तुरंत बाद बवासीर से पीड़ित थी, जिसके कारण उसे रक्तस्राव होता था और पेट में दर्द होता था। उन्होंने ट्रायल कोर्ट द्वारा मृत्यु पूर्व बयान पर भरोसा करने को "संदिग्ध" बताया। राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने ट्रायल कोर्ट के विवादित फैसले का समर्थन किया और दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ अपील को खारिज करने की प्रार्थना की।


पत्नी के साथ संभोग या यौन क्रिया बलात्कार नहीं

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "आईपीसी की धारा 375, 376 और 377 के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि धारा 375 आईपीसी की संशोधित परिभाषा के मद्देनजर, पति और पत्नी के बीच आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध का कोई स्थान नहीं है और इस तरह बलात्कार नहीं किया जा सकता है।" इसमें कहा गया कि वर्ष 2013 में धारा 375 आईपीसी में संशोधन में अपवाद-2 प्रदान किया गया है, जो कहता है कि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ संभोग या यौन क्रिया बलात्कार नहीं है। इसलिए, यदि धारा 377 के तहत परिभाषित कोई अप्राकृतिक यौन संबंध पति द्वारा अपनी (वयस्क) पत्नी के साथ किया जाता है, तो इसे भी अपराध नहीं माना जा सकता है।

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