Supreme court News CJ: जस्टिस सूर्यकांत बने देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश, खेतों की धधकती दोपहर में पसीना बहाने से लेकर सुप्रीम कोर्ट की शिखर तक का सफर, पढ़िए
Supreme court News CJ: भारतीय सियासत और अदालती दुनिया में एक नया पन्ना तब खुला, जब सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने सोमवार को मुल्क के 53वें चीफ़ जस्टिस की शपथ ली।
Supreme court News CJ: भारतीय सियासत और अदालती दुनिया में एक नया पन्ना तब खुला, जब सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने आज यानी सोमवार को मुल्क के 53वें चीफ़ जस्टिस की शपथ ली। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 व 35A खत्म करने वाले ऐतिहासिक फैसले से लेकर पेगासस जासूसी कांड, और बिहार की मतदाता सूची संशोधन जैसे संवेदनशील मामलों में अहम किरदार निभा चुके जस्टिस सूर्यकांत अब रिटायर्ड हो चुके CJI बी.आर. गवई की कुर्सी संभालेंगे। तक़रीबन 15 महीनों तक वे मुल्क की सर्वोच्च अदालत का नेतृत्व करेंगे और 9 फरवरी 2027 को रिटायर होंगे।
दिल्ली से 136 किलोमीटर दूर हरियाणा के हिसार जिले के छोटे गांव पेटवाड़ में तपती गर्मियों में खेतों की मड़ाई करते हुए एक दुबला-पतला लड़का जब थ्रेशर मशीन रोककर आसमान की ओर देखता है और बुलंद आवाज़ में कहता है कि मैं अपनी ज़िंदगी बदल दूंगा,तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यही तालिब-ए-इल्म एक दिन हिंदुस्तान की इंसाफ़गाह का सरताज बनेगा। सरकारी स्कूल की बोरी पर बैठकर पढ़ने वाला यह लड़का आज मुल्क का सबसे बड़ा न्यायिक ओहदेदार है।
सूर्यकांत का यह सफर सिर्फ मेहनत, लगन और जज़्बे की कहानी नहीं, बल्कि यह बताता है कि लोकतंत्र में एक साधारण परिवार का बच्चा भी अदालती इंसाफ़ का चेहरा बन सकता है। 24 नवंबर 2025 से लेकर 2027 तक का उनका कार्यकाल संवैधानिक बहसों, नागरिक अधिकारों और संघ राज्य संबंधों की नई दिशाएं तय करने वाला माना जा रहा है।
जस्टिस सूर्यकांत ने हाल ही में राष्ट्रपति द्वारा भेजी गई राज्यपाल विधानसभा टकराव वाली संदर्भ याचिका में अहम राय दी। राजद्रोह कानून को निलंबित रखने वाली पीठ में शामिल रहते हुए उन्होंने साफ़ हिदायत दी कि जब तक कानून की समीक्षा न हो, तब तक कोई नई FIR दर्ज न की जाए—यह फैसला मुल्क की संवैधानिक आज़ादी के लिए एक बड़ा संकेत माना गया।
बिहार में चुनाव आयोग द्वारा 65 लाख मतदाताओं को ड्राफ्ट रोल से बाहर करने पर भी उन्होंने कड़ा रुख दिखाते हुए आयोग को पूरा ब्योरा उजागर करने का आदेश दिया। पंजाब में PM मोदी की सुरक्षा चूक के मामले में उनकी बेंच ने जस्टिस इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में हाई-लेवल कमेटी बनाई। रक्षा बलों के लिए OROP योजना को उन्होंने संविधानसम्मत ठहराया, वहीं महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन दिलाने वाली सुनवाई में भी वे अग्रणी रहे।
इतना ही नहीं, वह सात जजों की उस ऐतिहासिक पीठ का हिस्सा रहे जिसने 1967 के AMU फैसले को पलटते हुए संस्थान की अल्पसंख्यक हैसियत पर दोबारा बहस की राह खोली। पेगासस स्पाइवेयर मामले में उन्होंने साइबर एक्सपर्ट्स की स्वतंत्र कमेटी बनवाकर सरकार की जवाबदेही को मजबूती दी।
पेटवाड़ की धूलभरी जमीन से निकल कर सुप्रीम कोर्ट की सर्वोच्च कुर्सी तक पहुंचना सिर्फ एक मुकाम नहीं—यह लोकतंत्र के दिल में बसी उम्मीद का एक चमकदार बयान है।