संभाजी महाराज के दुखद अंत की अनकही कहानी, औरंगजेब ने निकालीं आंखें पर नहीं कबूला इस्लाम, जानें मराठा साम्राज्य की विजय की अद्भत कहानी
जानिए संभाजी महाराज के दुखद अंत की अनकही कहानी, औरंगजेब द्वारा दी गई यातनाओं से लेकर मराठा साम्राज्य की विजय तक, जो उनकी शहादत के बाद हुई।

sambhaji maharaj Story: छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र, संभाजी महाराज, भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय योद्धा के रूप में जाने जाते हैं। उनका अंत दुखद और त्रासद रहा, औरंगजेब के आदेश पर उनकी हत्या के पीछे की घटनाएं आज भी लोगों के दिलों को द्रवित करती हैं। आइए जानें इस वीर मराठा की वह अनकही कहानी, जिसने हिंदवी स्वराज्य के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
औरंगजेब और इस्लाम धर्म का स्वीकार करने का दबाव
औरंगजेब ने संभाजी महाराज से इस्लाम धर्म कबूल करने का आदेश दिया था। किंतु मराठा योद्धा ने इस आदेश को मानने से साफ इंकार कर दिया। इसके बाद उन्हें बुरी तरह से पीटा गया, और जब उनसे दोबारा पूछा गया तो उन्होंने फिर से इंकार किया। उनकी जुबान तक काट ली गई, किंतु उन्होंने अपनी स्थिति स्पष्ट रखते हुए लिखा कि वह किसी भी परिस्थिति में इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं करेंगे। इस प्रकार उनकी असीम यातनाओं का अंत उनके निर्दयी कत्ल के साथ हुआ।
संभाजी महाराज पर औरंगजेब का गुस्सा और यातनाएं
डेनिश किनकेड की पुस्तक 'शिवाजी: द ग्रैंड रिबेल' के अनुसार, संभाजी और उनके मित्र कवि कलश को जोकरों जैसी पोशाक पहना कर पूरे शहर में घुमाया गया, जहां उन पर पत्थर फेंके गए और भाले चुभाए गए। इसके बाद भी, जब उन्होंने इस्लाम कबूल नहीं किया, तो उनकी आंखें निकाल दी गईं और शरीर के एक-एक अंग को काटा गया। अंत में, 11 मार्च 1689 को संभाजी महाराज का सिर काट दिया गया।
औरंगजेब का पश्चाताप और मुगलों का पतन
कहा जाता है कि संभाजी की मृत्यु के बाद औरंगजेब ने कहा था कि "अगर मेरे चार बेटों में से एक भी संभाजी जैसा होता, तो पूरा हिंदुस्तान मुगल साम्राज्य के अधीन होता"। संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद मराठाओं ने एकजुट होकर मुगलों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया, जिसके परिणामस्वरूप औरंगजेब की सत्ता कमजोर हो गई और अंततः मुगलों का पतन हुआ।
संभाजी महाराज की गिरफ्तारी: एक धोखे की साजिश
1689 में संभाजी महाराज को धोखे से बंदी बनाया गया। फ्रांसीसी गवर्नर जनरल मार्टिन की डायरी के अनुसार, उनके करीबी लोगों ने ही उन्हें धोखा दिया और संगमेश्वर में उन पर हमला किया गया, जिसके बाद मुगलों ने उन्हें जिंदा पकड़ लिया। इस घटना से मराठा साम्राज्य को बड़ा झटका लगा, लेकिन अंततः मराठों ने इस नुकसान की भरपाई की।
गुरिल्ला युद्ध कला के महारथी
डेनिस किनकेड के अनुसार, संभाजी महाराज की सेना गुरिल्ला युद्ध शैली में निपुण थी। वे छोटी-छोटी टुकड़ियों में मुगलों पर हमला करते और फिर पहाड़ों में छिप जाते। इस युद्ध शैली से मुगलों को कड़ी चुनौती मिली और मराठा साम्राज्य ने कई महत्वपूर्ण युद्धों में जीत हासिल की।
मराठा नौसेना की ताकत
संभाजी महाराज ने अपने पिता शिवाजी महाराज की नौसेना शक्ति को और मजबूत किया। कैप्टन ग्रांट डफ की पुस्तक 'द हिस्ट्री ऑफ मराठा' में उल्लेख है कि संभाजी महाराज ने जंजीरा के सिद्दियों को पराजित कर अपनी नौसेना की ताकत का प्रदर्शन किया था।
संभाजी महाराज का जीवन
संभाजी महाराज का जीवन और बलिदान भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। उनकी वीरता और दृढ़ संकल्प ने मराठा साम्राज्य को मजबूत किया और मुगल सत्ता के पतन में योगदान दिया। संभाजी महाराज की कहानी आज भी प्रेरणादायक है, जो हमें अपने मूल्यों और स्वाभिमान की रक्षा के लिए लड़ने की शिक्षा देती है।