Success Story: कभी 300 रुपये लेकर बॉम्बे पहुंचा ये लड़का, आज है भारतीय विज्ञापन जगत का सबसे बड़ा नाम

प्रहलाद कक्कड़ ने 300 रुपए से शुरुआत की और आज वे विज्ञापन जगत के बादशाह बन गए हैं। संघर्ष से सफलता तक की उनकी कहानी बेहद प्रेरणादायक है। जानिए उनका पूरा सफ़र...

प्रहलाद कक्कड़ success story

Success Story: "सपने वो नहीं होते जो सोते वक्त आते हैं, सपने वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते।" प्रहलाद कक्कड़ की कहानी कुछ ऐसी ही है। भारतीय विज्ञापन जगत के सबसे बड़े 'एडमैन' का सफर आसान नहीं था। साल 1971 में जब प्रहलाद कक्कड़ महज 20 साल के थे, तब उनके पास सिर्फ 300 रुपये और आंखों में बड़े सपने थे। बॉम्बे सेंट्रल स्टेशन पर उतरने के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी का सबसे मुश्किल दौर देखा। शुरुआत में वो रेलवे स्टेशन की सीटों पर और दोस्तों के घर सोफे पर रातें गुजारा करते थे। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।


संघर्षों की शुरुआत

प्रहलाद कक्कड़ का जन्म 24 मार्च 1951 को इलाहाबाद में हुआ था। उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल अमीर चंद कक्कड़ पाकिस्तान के डेरा इस्माइल खान के रहने वाले थे, जबकि उनकी मां शशिकला कक्कड़ बर्मी और मराठी परिवार से ताल्लुक रखती थीं। बचपन में ही उनके माता-पिता अलग हो गए, लेकिन उनके पिता ने प्रहलाद को घुड़सवारी और आत्मविश्वास का पाठ पढ़ाया। स्कूल के दिनों में उन्हें पढ़ाई से ज़्यादा खेलकूद में दिलचस्पी थी. हालांकि, एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया. लेकिन यह निष्कासन उनके जीवन का सबसे बड़ा सबक बन गया. 


श्याम बेनेगल से जीवन का सबसे बड़ा सबक 

प्रहलाद कक्कड़ के जीवन में एक बड़ा मोड़ तब आया जब उन्हें बॉलीवुड के मशहूर फ़िल्म निर्देशक श्याम बेनेगल के साथ काम करने का मौक़ा मिला. श्याम बेनेगल ने प्रहलाद की मेहनत और जोश को पहचाना और उन्हें विज्ञापन की दुनिया में कदम रखने का मौक़ा दिया. श्याम बेनेगल ने एक बार अपनी आत्मकथा में लिखा था, "काम के प्रति प्रहलाद का जुनून बेमिसाल था. वो हर काम पूरे दिल से करते थे. यही वजह थी कि वो विज्ञापन की दुनिया में एक अलग मुकाम हासिल कर पाए." 


जेनेसिस एडवरटाइजिंग कंपनी की शुरुआत

साल 1978 में प्रहलाद कक्कड़ ने अपनी खुद की विज्ञापन कंपनी 'जेनेसिस' की स्थापना की. यह कंपनी भारतीय विज्ञापन जगत के लिए मील का पत्थर साबित हुई. जेनेसिस ने प्रॉमिस टूथपेस्ट, मैगी नूडल्स और पेप्सी जैसे ब्रांड के लिए आइकॉनिक विज्ञापन बनाए, जो आज भी लोगों की यादों में ताजा हैं। प्रहलाद कक्कड़ ने उस समय की उभरती हुई अभिनेत्री ऐश्वर्या राय को पेप्सी के विज्ञापन में आने का मौका दिया। यह विज्ञापन इतना लोकप्रिय हुआ कि ऐश्वर्या राय को 'संजना' के नाम से जाना जाने लगा। इस विज्ञापन ने ऐश्वर्या को बॉलीवुड में बड़ा ब्रेक दिया और प्रहलाद कक्कड़ का नाम विज्ञापन इंडस्ट्री में चमकाया।


'ये दिल मांगे मोर' ने बदली भारतीय विज्ञापन इंडस्ट्री की दिशा

प्रहलाद कक्कड़ ने 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान 'ये दिल मांगे मोर' अभियान की शुरुआत की थी। यह अभियान इतना लोकप्रिय हुआ कि यह वाक्य आज भी भारतीयों की जुबान पर है। इस अभियान ने भारतीय विज्ञापन जगत में एक नया आयाम जोड़ा और प्रहलाद कक्कड़ को 'विज्ञापन गुरु' बना दिया।


भारतीय विज्ञापन जगत के बादशाह

प्रहलाद कक्कड़ ने भारतीय विज्ञापन इंडस्ट्री को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनकी विज्ञापन रणनीतियों और रचनात्मक सोच ने भारतीय ब्रांडों को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। उन्होंने साबित कर दिया कि बड़े सपने और कड़ी मेहनत से कोई भी व्यक्ति किसी भी ऊंचाई को छू सकता है। प्रहलाद कक्कड़ का सफर उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है जो संघर्षों से डरते नहीं बल्कि उन्हें अपनी ताकत बनाते हैं। 300 रुपये और संघर्षों की गठरी लेकर बॉम्बे पहुंचे प्रहलाद कक्कड़ आज भारतीय विज्ञापन जगत के बादशाह हैं। उनकी कहानी साबित करती है कि अगर आपमें अपने सपनों को जीने का जज्बा है तो कोई भी मुश्किल रास्ता आपको अपनी मंजिल तक पहुंचने से नहीं रोक सकता। आज भी उन्हें भारतीय विज्ञापन जगत में एक दिग्गज के तौर पर पहचाना जाता है और उनका योगदान अमिट है।

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