Brij Bihari murder case : मोतिहारी, मुजफ्फरपुर, मोकामा का M3 प्लान... MLA देवेंद्र दुबे, बाहुबली छोटन शुक्ला की हत्या का कैसे पूरा हुआ 'बदला' (पार्ट -1)
Brij Bihari murder case : बिहार सरकार के पूर्व मंत्री बृजबिहारी प्रसाद की हत्या के आरोप में मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को उम्रक़ैद हुई. मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी दोनों अब जेल जा चुके हैं. लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती. आखिर वे कौन से कारण रहे कि बिहार के सबसे ताकतवर नेताओं में एक बृज बिहारी की पुलिस सुरक्षा घेरे में ही हत्या हो गई. आपको मालूम है बृजबिहारी की हत्या क्यूँ हुई थी? 13 जून 1998 को पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (आईजीआईएमएस) में हुई बृजबिहारी प्रसाद की हत्या का एक बड़ा कोड एम-3 रहा. यानी मोतिहारी, मुजफ्फरपुर, मोकामा प्लान. एक ऐसा हत्याकांड जिसके पीछे तिरहुत से चंपारण तक बदला था.
इंजीनियरिंग से अपराधी : कहानी की शुरुआत होती है 1989 में मोतिहारी से जहां आत्मसम्मान के बदले 'तीन मर्डर' कर देवेंद्र दुबे ने अपना वर्चस्व कायम किया था. बेटे के इंजीनियर बनने का सपना पूरा करने के लिए सिपाही जलेश्वर दुबे ने अपने तीन बेटों में से सबसे छोटे बेटे देवेंद्र दुबे का का दाखिला मोतिहारी के इंजीनियरिंग कॉलेज में कराया. इसके पहले इंटर में फर्स्ट डिविजन पास हो चुके देवेंद्र दुबे ने अपनी मेधा साबित कर दी थी. लेकिन कॉलेज में दाखिला होते ही कुछ ऐसा हुआ कि देवेंद्र पर आत्मसम्मान बचाने की लड़ाई लड़ने का जूनून सवार हो गया.
पेशाब पिलाने का बदला : कहते हैं देवेंद्र दुबे मोतिहारी के इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ रहा था वहां राजपूत जाति के कुछ मनचलों पर अक्सर ही ब्राह्मण जाति के लड़कियों से बदतमीजी करने का आरोप लगता. ऐसे ही एक मामले में देवेंद्र दुबे की एक रिश्तेदार लड़की को अभय सिंह, लल्लू सिंह और तारकेश्वर सिंह नामक लड़कों द्वारा छेड़ने का आरोप लगा. तीनों ही राजपूत जाति के थे. देवेंद्र को जैसे ही इसका पता चला उसने जोरदार विरोध किया. कहते हैं अभय सिंह, लल्लू सिंह और तारकेश्वर सिंह के साथ उसकी जाति के एक बड़े कुनबे का समर्थन भी था. नतीजा हुआ कि देवेंद्र दुबे की जमकर पिटाई कर दी गई. यहां तक कि आरोप लगे कि उसे तीनों ने एक बार पेशाब पिलाने की कोशिश की.
पेशाब का बदला खून : इस घटना ने देवेंद्र को हिलाकर रख दिया. अपमान का घूंट उस दिन देवेंद्र ने पी लिया. लेकिन बदले का खून सिर पर सवार हो गया. नतीजा हुआ कि पेशाब पिलाने का बदला खून से लेना तय किया गया. देवेंद्र ने सबसे पहले अपने अपमान का बदला पूरा करने के लिए हथियार जुटाए. फिर 21 जुलाई 1989 को अभय सिंह अपने दोनों दोस्तों लल्लू और तारकेश्वर को स्कूटर पर बैठाकर जा रहा था. मोतिहारी के धनौती नदी पर बने एक पुल पर जैसे ही तीनों पहुंचे वहां पहले से ही ओमनी कार में हथियार से लैस होकर देवेंद्र दुबे अपने अपमान का बदला लेने मौजूद था. कहा जाता है कि देवेंद्र को हथियार के साथ देखते हुए अभय ने स्कूटर मोड़ लिया. लेकिन जैसे ही पुराने लकड़ी के पुल पर स्कूटर पहुंचा उसका पहिया अचानक पुल में धंस गया. फिर क्या था देवेंद्र ने अपने साथियों के साथ तीनों को घेर लिया. कहते हैं तब अंधाधुंध गोलियां बरसाई गई जब तक तीनों वहीं ढेर नहीं हो गए.
राजपूत पर भारी पड़ा ब्राह्मण : देवेंद्र दुबे का पहला बदला पूरा हुआ. यहीं से कल तक गुमनाम रहे देवेंद्र दुबे का नाम अब मोतिहारी की सीमा से निकलकर बिहार, उत्तर प्रदेश, नेपाल, असम तक पहुंच गया. कई दशकों से राजपूतों का गढ़ रहा मोतिहारी पहली बार ब्राह्मण वर्चस्व के नाम से जाना गया. लेकिन खून का बदला खून था. तो अभय सिंह के भाई अजय सिंह ने ऐलान कर दिया कि अब वे देवेंद्र दुबे ही नहीं, बल्कि उसके पूरे परिवार को खत्म कर देंगे. वहीं अजय सिंह के ऐलान और पुलिस की लगातार बढ़ती दबिश से परेशान होकर देवेंद्र दुबे ने मोतिहारी छोड़कर असम में शरण ले ली. कहते हैं असम जाकर देवेंद्र तब उल्फा उग्रवादियों के संपर्क में आ गया.
इधर भाई की मौत का बदला लेने के लिए अजय सिंह ने देवेंद्र दुबे के भाई भूपेंद्र दुबे की हत्या का प्लान रचा. अभय सिंह की हत्या के ठीक एक साल बाद यानी वर्ष 1990 में भूपेंद्र दुबे की हत्या के लिए अजय सिंह ने प्लानिंग की. हालांकि भूपेंद्र दुबे को इसका अहसास हो गया था कि उस पर हमला हो सकता है. तो भूपेंद्र दुबे ने अपने साथ हथियारबंद सुरक्षा गार्डों को रखना शुरू कर दिया. इस बीच जैसे ही अजय सिंह ने भूपेंद्र दुबे पर गोलियां बरसाई पहले ही सजग भूपेंद्र दुबे के हथियारबंद लोगों ने करारा जवाब दिया. नतीजा हुआ कि भूपेंद्र दुबे तो बच गया लेकिन अजय सिंह ही मारा गया. यानी पहले भाई अभय और अब एक साल बाद अजय सिंह... दोनों ही भाई देवेंद्र दुबे का शिकार हो गए.
मोतिहारी से माँ कामख्या का सफर : वहीं अभय और अजय की हत्या से अब मोतिहारी पर देवेंद्र दुबे की तूती बोलने लगी. राजपूतों के लिए यह बड़ा झटका था. कहते हैं कि मोतिहारी में देवेंद्र दुबे का कद बढ़ना राजपूत जाति के लिए बड़ा झटका था. इस बीच केंद्र में चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने, यानी राजपूत. तो मोतिहारी की गलियों में देवेंद्र दुबे गैंग की गोलियों से ढेर होते राजपूत लोगों का यह मामला प्रधानमंत्री चंद्रशेखर तक पहुंचा. उन दिनों देवेंद्र दुबे असम में था. पीएम चंद्रशेखर ने इस बीच असम के मुख्यमंत्री प्रफुल कुमार महंता पर उल्फा उग्रवादियों का समर्थन करने का आरोप लगाते हुए वहां की सरकार को निरस्त कर दिया. अब देवेंद्र के लिए असम सुरक्षित ठिकाना नहीं रह गया था तो उसने असम छोड़ने की योजना बनाई. इसके पहले ही देवेंद्र मोतिहारी लौटता असम पुलिस ने देवेंद्र को माता कामख्या मंदिर से गिरफ्तार कर लिया.
अगले पार्ट में पढिए आगे की कहानी - 'कैसे बृज बिहारी बना दुश्मन'
(यह रिपोर्ट तत्कालीन अखबारों की खबरों और घटनाओं पर आधारित है )