Bihar School News: वाह रे सुशासन! शिक्षा विभाग की उपेक्षा की वजह से बिहार में बंद हो गए 20 स्कूल,बच्चों को बैठने तक की व्यवस्था भी नहीं...
सरकार की मंजूरी के अभाव में कई विद्यालय बंद हो चुके हैं। जो विद्यालय अभी भी संचालित हैं, उनके पास छात्रों के लिए उचित भवन की कमी है। विद्यालय में पढ़ा रहे शिक्षकों को नियमित वेतन मिल रहा है।
प्राचीनतम भाषा संस्कृत को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार के प्रयास कर रही है। जमीनी स्तर पर संस्कृत विद्यालयों की स्थिति बेहद दयनीय है। अधिकांश विद्यालयों में भौतिक सुविधाओं का अभाव, शिक्षकों की कमी और छात्रों को प्रोत्साहन राशि न मिलना जैसी समस्याएं व्याप्त हैं। अधिकांश संस्कृत विद्यालयों में भवन, पुस्तकालय, प्रयोगशाला जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।कई विद्यालयों में शिक्षकों की कमी है और जो शिक्षक हैं, उन्हें नियमित वेतन तक नहीं मिलता।छात्रों को सरकार द्वारा दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि नहीं मिलने के कारण विद्यालयों में नामांकन कम हो रहा है।कई संस्कृत विद्यालय जांच के नाम पर बंद कर दिए गए हैं।
सरकार की मंजूरी के अभाव में कई विद्यालय बंद हो चुके हैं। जो विद्यालय अभी भी संचालित हैं, उनके पास छात्रों के लिए उचित भवन की कमी है। विद्यालय में पढ़ा रहे शिक्षकों को नियमित वेतन मिल रहा है, लेकिन यहां अध्ययन कर रहे छात्रों को सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली प्रोत्साहन राशि नहीं मिलती। इस राशि के अभाव में विद्यालय में छात्रों की संख्या घटती जा रही है। छात्रों को सरकारी प्रोत्साहन न मिलने पर कई बार प्रश्न उठाए गए हैं, लेकिन इसका कोई समाधान नहीं निकला है। विद्यालयों के भवन निर्माण के लिए सरकार ने अब तक कोई वित्तीय सहायता नहीं दी है। जिले में संस्कृत विद्यालयों की संख्या अब बहुत कम रह गई है, जिसमें 14 विद्यालय संचालित हो रहे हैं, जिनमें से छह हसपुरा प्रखंड में हैं।
सरकार ने इस वर्ष 14 विद्यालयों के लिए वेतन मद में 2.67 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी है। हालांकि, भवन के लिए किसी भी विद्यालय को धनराशि उपलब्ध नहीं कराई गई है। रामनरेश सिंह संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना 1912 में मदरसा के सामने की गई थी। इस विद्यालय में नियमित रूप से छात्र पढ़ाई के लिए आते हैं, जिनमें से अधिकांश छात्र-छात्राएं मुस्लिम समुदाय से हैं। मुस्लिम छात्र-छात्राएं भी संस्कृत की पढ़ाई करते हैं। विद्यालय में कक्षा आठ की शबाना और कक्षा सात की आमरीन प्रवीण ने बताया कि उन्हें संस्कृत पढ़ने में कोई कठिनाई नहीं होती। नसीमा प्रवीण ने संस्कृत की एक किताब पढ़कर सुनाई। विद्यालय के प्रधानाध्यापक प्रफुल्ल कुमार ने कहा कि छात्र-छात्राएं नियमित रूप से विद्यालय आते हैं और सरकारी विद्यालय का निर्धारित समय के अनुसार पढ़ाई होती है। इस विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों को मध्याह्न भोजन नहीं मिलता है।
संस्कृत विद्यालय हमेशा से सरकारी उपेक्षा का शिकार होते रहे हैं। कई प्रखंडों में संचालित विद्यालय बंद हो चुके हैं। संस्कृत विद्यालयों के अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे सूरजपत सिंह ने बताया कि औरंगाबाद के विभिन्न प्रखंडों में लगभग 20 विद्यालय एक-एक करके बंद हो गए हैं। सरकार का विद्यालयों के प्रति कोई ध्यान नहीं है, अन्यथा इन्हें बंद नहीं किया जाता। जांच के बहाने विद्यालयों को बंद करने का कार्य किया गया है।