Kali Prasad Pandey death: पूर्व सांसद काली प्रसाद पांडे का निधन, कांग्रेस लहर में जीता था निर्दलीय चुनाव

बाहुबली छवि और रॉबिनहुड जैसी लोकप्रियता के लिए पहचाने जाने वाले पूर्व सांसद काली प्रसाद पांडेय का शुक्रवार देर शाम दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया।

पूर्व सांसद काली प्रसाद पांडे का निधन- फोटो : reporter

Kali Prasad Pandey death: बिहार की राजनीति का एक चमकता, मगर विवादों से घिरा सितारा अब इतिहास के अंधेरे पन्नों में समा गया। बाहुबली नेता और पूर्व सांसद काली प्रसाद पांडेय का निधन दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में शुक्रवार देर शाम हो गया। यह वही नाम है, जिसने गोपालगंज की गलियों से उठकर उत्तर भारत की राजनीति में अपनी गहरी छाप छोड़ी। जिनकी पहचान बाहुबली से लेकर सांसद तक बनी, जिनकी धमक इतनी थी कि उनके जीवन से प्रेरित किरदार रुपहले पर्दे पर उतरे। लेकिन विडंबना यह रही कि सारी उपलब्धियों, सारी ताक़त और शोहरत के बावजूद एक सपना अधूरा रह गया, गोपालगंज के लिए अपनी आख़िरी ख्वाहिश को हकीकत बनाना।

 बाहुबली छवि और रॉबिनहुड जैसी लोकप्रियता के लिए पहचाने जाने वाले पूर्व सांसद काली प्रसाद पांडेय 79 वर्ष के थे और पिछले डेढ़ महीने से गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। उनका इलाज लगातार चल रहा था, लेकिन आखिरकार ज़िंदगी की जंग हार गए।

28 अक्टूबर 1946 को गोपालगंज जिले के रमजीता भोज छापर गांव में जन्मे काली प्रसाद पांडेय ने राजनीति में उस दौर में कदम रखा, जब बिहार की सियासत में बाहुबल और करिश्माई नेतृत्व साथ-साथ चलता था। उनका राजनीतिक सफर 1980 में विधायक बनने से शुरू हुआ। 1980 से 1984 तक वे गोपालगंज विधानसभा का प्रतिनिधित्व करते रहे। इसके बाद 1984 में, जब पूरे देश में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस की लहर थी, तब काली प्रसाद ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में गोपालगंज से लोकसभा चुनाव जीतकर सबको चौंका दिया। 1984 से 1989 तक वे सांसद रहे और दिल्ली की संसद में गूंजते रहे।

काली प्रसाद का दबदबा सिर्फ़ चुनावी राजनीति तक सीमित नहीं था। 80 के दशक में उत्तर बिहार की राजनीति में उनकी तूती बोलती थी। कहा जाता है कि कई बाहुबली नेता उनके पास जाकर आशीर्वाद लेते थे। इस प्रभाव के चलते उन्हें “बाहुबलियों का गुरु” तक कहा गया। उनकी छवि एक ओर रॉबिनहुड जैसी थी, तो दूसरी ओर हत्या और अपराध जैसे गंभीर मामलों में नाम आने के कारण विवादों से भी घिरी रही। हालांकि, कभी कोई आरोप साबित नहीं हो पाया।

काली पांडे का राजनीतिक सफर उतना ही उतार-चढ़ाव भरा रहा जितना उनका जीवन। उन्होंने शुरुआत निर्दलीय से की, फिर कांग्रेस से जुड़े, कभी लालू यादव की आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ा, तो कभी रामविलास पासवान के बुलावे पर लोक जनशक्ति पार्टी में पहुंचे। लोजपा में कई अहम पदों पर रहे और फिर लौटकर कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हुए। उनकी ज़िंदगी ने एक पूरे दौर को गढ़ा जहां बाहुबल, राजनीति और प्रभाव का संगम था। शुक्रवार की रात उनका सफर थम गया। वे अपने पीछे पत्नी, तीन बेटे और दो बेटियों का भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं।

काली प्रसाद पांडेय का सफर 80 के दशक से शुरू होता है। जेल की सलाखों और अदालत के कटघरों से लेकर संसद की ऊँची चौखट तक, उनकी ज़िंदगी हर मोड़ पर जद्दोजहद और विवादों से भरी रही। राजनीति की जमीन पर उनकी पकड़ ऐसी थी कि विरोधी भी उनकी हैसियत को नज़रअंदाज़ नहीं कर पाते थे। वे न सिर्फ़ बाहुबल के लिए बल्कि अपनी करिश्माई मौजूदगी और अदम्य जिजीविषा के लिए भी जाने जाते थे। बिहार की सियासत के अंधेरे दौर में काली प्रसाद पांडेय का नाम रोशनी और साए दोनों की तरह छाया रहा।लेकिन इस बाहुबली नेता के भीतर भी एक संवेदनशील दिल धड़कता था। अपने अंतिम दिनों में उन्होंने गोपालगंज के लोगों के नाम जो पैगाम लिखा, उसमें मौत की आहट साफ़ झलकती थी क्या पता मौत का कब पैगाम आ जाये, मेरे जिंदगी का आखिरी शाम आ जाये। मैं ढूंढता हूं ऐसा मौका, ऐ गोपालगंज के वासियों। कब काली की ज़िंदगी आपके काम आ जाये।यह शब्द आज उनकी मृत्यु के बाद और भी भारी हो उठे हैं। गोपालगंज की गलियां ग़म में डूबी हैं, बिहार की सियासत में एक खामोश खालीपन उतर आया है। वह शख़्स जो कभी ताक़त का प्रतीक था, आज मौत की खामोशी में लिपटा पड़ा है।काली प्रसाद पांडेय का निधन सिर्फ़ एक नेता की मौत नहीं, बल्कि एक पूरे दौर का अंत है। यह वही दौर था जिसने बिहार की राजनीति को बाहुबली संस्कृति का चेहरा दिया, और साथ ही संघर्ष की कहानियां भी गढ़ीं। उनकी ज़िंदगी की यह अनकही दास्तां आने वाले वक्त में यादों और किस्सों में जीवित रहेगी।गोपालगंज और बिहार की राजनीति आज एक ऐसे शख्स को खोने के ग़म में है, जिसकी ताक़त से कई डरते थे और जिसकी शख़्सियत से कई लोग आज भी प्रभावित हैं।

रिपोर्ट- नमोनारायण मिश्रा