Bihar Freedom Fighter: मौत से लोहा लेकर बचाया राष्ट्रपति का जीवन, खगड़िया के बलदेव दास की अमर गाथा, इंदिरा गांधी ने ताम्रपत्र से किया था सम्मानित

Bihar Freedom Fighter: 11 अगस्त 1942 को भागलपुर में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान डॉ. राजेंद्र प्रसाद आंदोलनकारियों का हौसला बढ़ा रहे थे। तभी अंग्रेज अधिकारियों ने लाठीचार्ज करा दिया। भगदड़ मची, और...

मौत से लोहा लेकर बचाया राष्ट्रपति का जीवन- फोटो : reporter

Bihar Freedom Fighter: खगड़िया की धरती ने कई वीर सपूत पैदा किए, लेकिन उनमें से बलदेव दास का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा वह स्वतंत्रता सेनानी, जिसने अंग्रेजी हुकूमत का जीना हराम कर दिया और भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जीवन बचाकर इतिहास में अमर हो गए।

1913 ई. में गोगरी प्रखंड के पसराहा पंचायत अंतर्गत सोंडिहा गांव में एक गरीब पिछड़े परिवार में जन्मे बलदेव दास, कुशवाहा जाति के होते हुए भी बचपन से सात्विक जीवन और गांधीजी के सिद्धांतों के अनुयायी थे। वे हर समय “रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीता राम” का भजन गाते रहते और इसी भक्ति भाव के चलते अपने नाम में दास जोड़ लिया।

1942 – ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन और वह ऐतिहासिक दिन

11 अगस्त 1942 को भागलपुर जिला के नवगछिया अनुमंडल के बिहपुर थाना क्षेत्र में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान डॉ. राजेंद्र प्रसाद आंदोलनकारियों का हौसला बढ़ा रहे थे। तभी अंग्रेज अधिकारियों ने लाठीचार्ज करा दिया। भगदड़ मची, और इसी अफरातफरी में राजेंद्र बाबू गिर पड़े। गोरे सिपाही उन पर बेरहमी से लाठियां बरसाने लगे।

भीड़ में मौजूद बलदेव दास यह दृश्य देखकर खुद को रोक न सके। वे दौड़कर राजेंद्र बाबू के ऊपर गिर गए, अपने शरीर को ढाल बनाकर उनकी रक्षा की। अंग्रेज सिपाहियों ने बलदेव दास को भी बुरी तरह पीटा, लेकिन जब लाठियां कम पड़ीं तो उन्होंने क्रूरता की हद पार करते हुए साइकिल पंप से उनके कान में हवा भर दी। कान का पर्दा फट गया, खून बहने लगा, और बलदेव दास मरणासन्न हो गए—लेकिन राष्ट्रपति बनने वाले उस महान नेता की जान बचा ली।

जीवन रक्षक का सम्मान

प्रत्यक्षदर्शी स्वतंत्रता सेनानी धनिकलाल सिंह के अनुसार, जब भीड़ ने हालात काबू में किए, राजेंद्र बाबू ने स्वयं बलदेव दास को गोद में उठाया और भागलपुर के प्रसिद्ध चिकित्सक शिवनारायण सिंह के पास ले गए। उनका इलाज अपने निजी खर्च से कराया।

देश की आज़ादी के बाद, राष्ट्रपति बनने पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने बलदेव दास को अध्यापक की नौकरी दिलाई और जीवन भर अपने निजी कोष से पेंशन दी। 15 अगस्त 1974 को, स्वतंत्रता के 25 वर्ष पूरे होने पर, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें ताम्रपत्र से सम्मानित किया।

स्मृति में बना गेट, पीढ़ियों तक प्रेरणा

बलदेव दास के तीनों पुत्र अनिरुद्ध सिंह, जयप्रकाश सिंह और श्रीप्रकाश सिंह ने पसराहा रेलवे ढाला के पास पिता की स्मृति में एक भव्य गेट का निर्माण निजी कोष से करवाया, जिसका नाम “स्वतंत्रता सेनानी बलदेव सिंह गेट” रखा गया। हर गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर यहां तिरंगा फहराकर उनके बलिदान को याद किया जाता है।

बलदेव दास का जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्ची देशभक्ति जाति, वर्ग और स्थिति की सीमाओं से परे होती है। उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना एक नेता नहीं, बल्कि भारत की स्वतंत्रता के सपने की रक्षा की। उनकी गाथा आज भी गोगरी की मिट्टी में गूंजती है ।

रिपर्ट- अमित कुमार