Birth on Road:आपदा में भी बेरहम बिहार का हेल्थ सिस्टम, अस्पताल ने भर्ती करने से किया इनकार, सड़क पर हुआ प्रसव, बीच रोड पर जन्मी ‘गंगा
Birth on Road:बाढ़ और आसमान से बरसते पानी ने हालात इस क़दर बदतर कर दिए हैं कि ज़िंदगी मानो तिनके के सहारे बह रही हो।
Birth on Road:बाढ़ और आसमान से बरसते पानी ने हालात इस क़दर बदतर कर दिए हैं कि ज़िंदगी मानो तिनके के सहारे बह रही हो। मुंगेर सदर प्रखंड के कई पंचायत पूरी तरह जलमग्न हैं। गांव उजड़ चुके हैं, घरों की दीवारें पानी के कटाव में ढह रही हैं और लोग जिला मुख्यालय के सुरक्षित कोनों में शरण लेने को मजबूर हैं।
सदर प्रखंड के जाफरनगर पंचायत का सीता चरण गांव भी इसी क़हर का शिकार है। यहां से विस्थापित कई परिवार पिछले एक हफ़्ते से समाहरणालय स्थित के.सी. सुरेंद्र बाबू पार्क के पास पॉलीथिन शीट के नीचे रह रहे हैं। इन अस्थायी टेंटों में न बिजली है, न साफ़ पानी, और न ही कोई स्थायी सहारा।
इन्हीं विस्थापितों में से एक है दिलीप सिंह का परिवार उनकी पत्नी अनीता देवी और छोटे-छोटे बच्चे। बुधवार की शाम, बारिश और आंधी के बीच अचानक अनीता देवी को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। घबराहट के माहौल में परिवार ने किसी तरह एक ऑटो की व्यवस्था की और उन्हें अस्पताल ले जाने की कोशिश की। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था अस्पताल पहुंचने से पहले, सड़क पर ऑटो में ही अनीता देवी ने एक नवजात को जन्म दे दिया।ऑटो के हिचकोलों और बारिश की तेज़ बौछारों के बीच जन्मी इस बच्ची का पहला रोना मानो बाढ़ के सन्नाटे को चीर गया। परिवार ने उसे प्यार से नाम दिया ‘गंगा’।
जन्म के बाद मां और बच्ची को नज़दीकी प्रसव केंद्र ले जाया गया। वहां मौजूद नर्स ने बच्चे की नाभि काटी, कुछ दवाइयां दीं, लेकिन अस्पताल में भर्ती करने से साफ़ इनकार कर दिया। इतना ही नहीं, परिजनों के मुताबिक नर्स ने नवजात का नाम अस्पताल के रजिस्टर में दर्ज करने से भी मना कर दिया। इसका मतलब यह है कि सरकारी योजनाओं के तहत मिलने वाली सुविधाओं से यह परिवार वंचित रह जाएगा।
निराश और आहत, दिलीप सिंह अपनी पत्नी और नवजात को वापस उसी पॉलीथिन शीट वाले बाढ़ राहत शिविर में ले आए। वहां चारों तरफ़ पानी और कीचड़ है, मच्छरों की भरमार है, और रात की नमी में नवजात की कोमल सांसें ठंडी हवा से कांप रही हैं।परिवार का कहना है कि “बाढ़ जैसी आपदा में प्रसूता महिलाओं के लिए कोई ठोस इंतज़ाम नहीं किया गया है। सरकार कहती है कि राहत शिविरों में सुविधा है, लेकिन असलियत यह है कि हमें अपने हाल पर छोड़ दिया गया है।”
‘गंगा’ का जन्म इस त्रासदी के बीच एक जीवन की उम्मीद का प्रतीक है, लेकिन अस्पताल की लापरवाही और सरकारी उदासीनता ने उसकी पहली सांसों पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। मुंगेर की यह कहानी सिर्फ़ एक परिवार की नहीं, बल्कि उन हज़ारों विस्थापितों की दास्तान है जो बाढ़ में घर खोने के साथ-साथ इंसानी संवेदनाओं से भी महरूम हो रहे हैं।