Bihar Health News: महिला की मौत के बाद स्ट्रेचर के लिए अस्पताल ने पोता-बहू को रखा गिरवी, बिहार में टूट गई इंसानियत की साँस, स्वास्थ्य मंत्री जी!.ज़रा देखिए हेल्थ विभाग का हाल
Bihar Health News: बिहार के सरकारी अस्पताल में ऐसा भी होता है कि स्ट्रेचर देने के लिए पत्नी और बेटे को ही गिरवी रख लिया जाए?
Bihar Health News: बिहार के सरकारी अस्पताल में ऐसा भी होता है कि स्ट्रेचर देने के लिए पत्नी और बेटे को ही गिरवी रख लिया जाए? यह कैसा दस्तूर, कैसी मजबूरी और कैसी बेरहमी है? नवादा से आई यह रूह कंपा देने वाली घटना न सिर्फ़ व्यवस्था की पोल खोलती है, बल्कि एक माँ की लाश को घसीटते अपने बेटे की तस्वीरें हमारे ज़मीर को झकझोर देती हैं। अकबरपुर पीएचसी के बाहर वह सन्नाटा, वह बेबसी और वह दर्द जैसे पूरी रात कराहकर कह रहा हो कि सिस्टम ज़िंदा है, पर इंसानियत मर चुकी है।
75 वर्षीय केशरी देवी एक माँ, एक इंसान दुनिया छोड़ गईं, मगर उनके मरने के बाद जो हुआ, वह किसी भी सभ्य समाज के माथे पर कलंक है। परिजन एंबुलेंस माँगते रहे, हाथ जोड़ते रहे, विनती करते रहे, मगर अस्पताल प्रशासन ने मानो दया की नहीं, नियमों की चाबियाँ अपने दिल पर ताला डाल रखा था। ना एंबुलेंस मिली, ना कोई इंसानी मदद… मिला तो बस स्ट्रेचर, वह भी गिरवी की शर्त पर।
और फिर वह दर्दनाक पल… जब रात के अंधेरे में, टिमटिमाती रोशनी के नीचे, एक बेटा अपनी माँ के निर्जीव शरीर को स्ट्रेचर पर घसीटता हुआ घर की ओर ले जा रहा था। हर धक्का, हर खटखटाहट जैसे कह रही थी कि हम गरीब हैं, इसलिए हमारी तकलीफ़ का कोई मोल नहीं?
वीडियो वायरल हुआ, तो अफसरों की नींद खुली। सिविल सर्जन अपनी सफाई में बोले कि 102 वाली एंबुलेंस शव नहीं ले जाती, और शववाहन सदर अस्पताल में उपलब्ध है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या परिजन फ़रिश्ते बुलाते? क्या अस्पताल की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ ताले खोलने तक है, दर्द बाँटने तक नहीं?
महिला का घर पास था… शायद यही वजह बताकर अधिकारी अब अपने दामन को साफ दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। मगर सच यह है कि व्यवस्था की लाचारी ने ही बेटे को अपनी माँ का अंतिम सम्मान भी खुद निभाने पर मजबूर कर दिया।
यह घटना कोई पहली नहीं, और शायद आख़िरी भी नहीं है। जब तक सिस्टम अपनी फ़ाइलों से निकलकर ज़मीन पर नहीं उतरेगा, जब तक संवेदनशीलता को नियमों से ऊपर जगह नहीं दी जाएगी, तब तक हर स्ट्रेचर, हर मोर्चरी, हर एंबुलेंस किसी की बेबसी पर बोझ बनती रहेगी। मंत्री महोदय, जरा देखिए… आपके महक़मे का हाल, लोगों की जान सरकारी स्वास्थ्य विभाग नहीं क़िस्मत के सहारे चल रही है।
रिपोर्ट- अमन कुमार