Bihar politics:भोजपुरी स्टार पवन सिंह की आज होगी घरवापसी, शाहाबाद की सियासत में बीजेपी का नया दांव, जातीय समीकरण साधने की कोशिश
Bihar politics:भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार और चर्चित चेहरा पवन सिंह आज एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी का दामन थामने जा रहे हैं। करीब 16 महीने के अंतराल के बाद उनकी राजनीतिक घरवापसी तय मानी जा रही है। ...
Bihar politics:भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार और चर्चित चेहरा पवन सिंह आज एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी का दामन थामने जा रहे हैं। करीब 16 महीने के अंतराल के बाद उनकी राजनीतिक घरवापसी तय मानी जा रही है। हाल ही में दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद से ही उनके दोबारा पार्टी में शामिल होने की अटकलें तेज थीं, जो अब सच साबित होने जा रही हैं।
राजनीतिक गलियारों में यह कदम बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले भाजपा का रणनीतिक जातीय समीकरण साधने वाला मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है। खबर है कि पार्टी पवन सिंह को आरा या काराकाट सीट से चुनाव मैदान में उतार सकती है। भोजपुर के रहने वाले पवन सिंह का शाहाबाद क्षेत्र में गहरा प्रभाव है, जहां उनकी जातीय और फिल्मी लोकप्रियता भाजपा के लिए वोटों का सीधा फायदा दिला सकती है।
पवन सिंह पहली बार 2017 में भाजपा में शामिल हुए थे। वे पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य भी बने, लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने पार्टी लाइन से अलग रास्ता चुन लिया। उन्होंने काराकाट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और 2.74 लाख वोट हासिल कर भाजपा समर्थित एनडीए प्रत्याशी उपेंद्र कुशवाहा से 21 हजार वोट ज्यादा पाकर दूसरे स्थान पर रहे। इसके बाद भाजपा ने 22 मई 2024 को उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया था।
अब पवन सिंह का कहना है कि “मैं कभी भाजपा से दूर नहीं गया था, बस परिस्थितियां अलग थीं।” उनकी यह वापसी भाजपा के लिए राजपूत और कुशवाहा वोट बैंक को जोड़ने का बड़ा जरिया मानी जा रही है। शाहाबाद क्षेत्र जिसमें भोजपुर, बक्सर, रोहतास और कैमूर जिले शामिल हैं की 22 विधानसभा सीटें राजनीतिक दृष्टि से बेहद अहम हैं। इस क्षेत्र की सियासत यादव 20 फीसदी, राजपूत फीसदी और कुशवाहा 12 फीसदी समुदायों के प्रभाव में घूमती रही है।
राजनीतिक पंडितो के अनुसार पूर्व केंद्रीय मंत्री आर.के. सिंह के तेवर भाजपा नेतृत्व के प्रति तल्ख हैं। ऐसे में शाहाबाद क्षेत्र में पार्टी को एक मजबूत राजपूत चेहरा चाहिए था जो पवन सिंह के रूप में मिल गया।भोजपुरी फिल्मों के सुपरहिट गीतों से लेकर चुनावी मंचों तक, पवन सिंह का असर सिर्फ पर्दे तक सीमित नहीं रहा। भाजपा अब इसी करिश्मे को सियासी ताकत में बदलने की रणनीति पर काम कर रही है।