Bihar news: NDA की ऐतिहासिक जीत में महिला रोजगार योजना कैसे बनी सबसे बड़ा हथियार? जानें कौन है इसके पीछे का मास्टरमाइंड
Bihar news: मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 1.5 करोड़ महिलाओं को 10,000 रुपये देने से एनडीए को बड़ी चुनावी बढ़त मिली। असम सीएम हिमंत बिस्वा सरमा का अहम योगदान।
Bihar news: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में एनडीए को मिली भारी जीत के पीछे कई राजनीतिक और सामाजिक कारण रहे, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना की रही। चुनाव से ठीक पहले लगभग डेढ़ करोड़ महिलाओं के बैंक खातों में दस हजार रुपये भेजे जाने के बाद यह योजना पूरे प्रदेश में “दस-हजारी योजना” के नाम से लोकप्रिय हो गई। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महिलाओं के बीच बने इस भरोसे ने चुनावी हवा ही बदल दी।
असम का मॉडल बना आधार
यह बात सामने आई कि इस योजना की मूल सोच असम से आई थी। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने खुद बताया कि बिहार सरकार के कहने पर उनके अधिकारियों ने कुछ महीने पहले पटना जाकर एक विस्तृत प्रस्तुति दी थी।असम में महिलाओं के लिए तैयार किए गए “जीविका 10,000 मॉडल” को ही आगे चलकर बिहार की महिला रोजगार योजना का आधार बना दिया गया। सरमा ने कहा कि यह पूरा विचार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “लखपति दीदी” मिशन से प्रेरित था।
जेडीयू की प्रतिक्रिया
जेडीयू नेताओं का कहना है कि भले ही असम का मॉडल मार्गदर्शक रहा हो, पर योजना एक संयुक्त सोच का नतीजा थी। उनका मानना है कि बिहार में वर्षों से महिलाओें को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए विभिन्न मॉडल तैयार होते रहे हैं और उसी अनुभव के आधार पर इस नई योजना का अंतिम रूप बना। राज्य की पूर्व योजनाएं जैसे सतत आजीविका पहल भी इसके पीछे एक मजबूत नींव थीं।
असम मॉडल में क्या था प्रस्ताव
असम की टीम ने सुझाव दिया था कि हर योग्य महिला को दस हजार रुपये की राशि एक तरह की सीड मनी के रूप में मिले और इसे वापस नहीं करना पड़े। साथ ही जिन महिलाओें ने व्यापार शुरू किया, उन्हें धीरे-धीरे दो लाख रुपये तक की अतिरिक्त राशि मिले।शर्त यह भी थी कि महिला या उसके पति का नाम करदाताओं की सूची में नहीं होना चाहिए। बिहार सरकार ने इन सुझावों को अपनी नीतियों के अनुसार बदला और लागू कर दिया।
तेजस्वी यादव की योजना ने चुनावी मुकाबले को बनाया और तीखा
तेजस्वी यादव की “मां-बहिन मान योजना”, जिसमें हर महिला को 2,500 रुपये प्रति माह देने का वादा किया गया था, ने एनडीए पर दबाव बढ़ा दिया, क्योंकि बिहार की राजनीति में महिलाएँ नीतीश कुमार का सबसे भरोसेमंद वोटबैंक रही हैं, इसलिए महिला-केंद्रित नीति को तेजी से लागू करना एनडीए के लिए जरूरी हो गया था।
पुराने वादों का बोझ— नीतीश कुमार को चाहिए था एक मजबूत जवाब
विपक्ष लगातार कह रहा था कि नीतीश कुमार ने 2023 में गरीब परिवारों को हर साल दो लाख रुपये देने की जो घोषणा की थी, वह लागू ही नहीं हुई।इस वजह से एनडीए को चुनाव से पहले एक ऐसी पहल चाहिए थी, जो लोगों के बीच विश्वास बनाए और पुराने वादों की कमी को संतुलित कर सके। महिला रोजगार योजना इसी रणनीति का केंद्र बन गई।
विपक्ष का आरोप— सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल हुआ
विपक्ष ने दावा किया कि चुनाव से ठीक पहले बड़ी संख्या में महिलाओं को पैसा भेजा गया और कई कर्मचारियों ने लोगों को यह संदेश दिया कि दो लाख रुपये की दूसरी किस्त तभी मिलेगी जब एनडीए दोबारा सत्ता में आएगा।प्रशांत किशोर ने भी कहा कि लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में साठ हजार से ज्यादा महिलाओं को राशि दी गई, जिससे वोटों पर सीधा असर पड़ा।
भाजपा का जवाब— योजना की जड़ें मोदी सरकार की नीतियों में
भाजपा नेताओं का कहना है कि इस पूरी योजना का आधार राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन और जन-धन खातों के जरिए बनी आर्थिक संरचना है। उनका दावा है कि महिलाओं के व्यापक बैंकिंग नेटवर्क और स्वयं सहायता समूहों की मजबूती की वजह से ही यह योजना इतनी सफल हो पाई।उनके अनुसार “दस-हजारी योजना” केंद्र और राज्य दोनों की नीतियों का संयुक्त परिणाम है।