Bihar News : बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जीतन राम मांझी ने NDA को दिया टेंशन! गृहमंत्री अमित शाह का नाम लेकर फिर दोहराई सीट बढ़ाने की मांग, कहा-'हमें सम्मान नहीं मिला'
एनडीए घटक दल हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के नेता जीतन राम मांझी ने सीट शेयरिंग को लेकर नाराजगी जताई है. जानिए क्या है "हम सेना" गठन की रणनीति और इसके सियासी मायने.

Jitan ram manjhi News: हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के संरक्षक और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने एक बार फिर से NDA की एकता को सवालों के घेरे में ला दिया है। उनका आरोप है कि गृह मंत्री अमित शाह से हुई बातचीत में दो लोकसभा और एक राज्यसभा सीट की बात तय हुई थी, लेकिन अंततः उन्हें सिर्फ एक ही लोकसभा सीट दी गई।
मांझी ने स्पष्ट करते हुए कहा कि हमने एनडीए का साथ दिया है, लेकिन बदले में हमें सम्मान नहीं मिला। इस नाराजगी के बीच उन्होंने एक बड़ा ऐलान किया हम सेना के गठन का। “हम सेना” का उल्लेख सिर्फ एक संगठनात्मक कदम नहीं, बल्कि राजनीतिक दबाव बनाने की रणनीति है। यह कदम निम्नलिखित उद्देश्यों के तहत उठाया गया प्रतीत होता है,
राजनीतिक उपेक्षा के खिलाफ शक्ति प्रदर्शन
मुसहर और भुइंया समाज को संगठित करना
आने वाले चुनावों में बर्गनाइज्ड वोट बैंक खड़ा करना
इसका असर न केवल NDA के भीतर असंतुलन ला सकता है, बल्कि बिहार की दलित राजनीति में नए समीकरण भी पैदा कर सकता है।
मुसहर-भुईंया सम्मेलन: जनवरी में ही दिखे थे संकेत
जनवरी में जहानाबाद के गांधी मैदान में हुए मुसहर-भुईंया सम्मेलन के दौरान मांझी ने कहा था कि नडीए ने हमें कमजोर समझने की भूल की है। मुसहर और भुइंया समाज को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस सम्मेलन में उन्होंने यह भी संकेत दिया था कि उनकी पार्टी राजनीतिक रूप से नई राह अपना सकती है, यदि उन्हें नजरअंदाज किया गया।
जीतन राम मांझी की रणनीति: सीट से ज्यादा सम्मान की लड़ाई
राजनीति में सिर्फ सीटें नहीं, सम्मान भी मायने रखता है। मांझी जैसे वरिष्ठ नेता, जो बिहार के दलित समुदाय के मजबूत चेहरा हैं, यदि खुद को नजरअंदाज महसूस करें तो इसका असर राजग (NDA) की छवि पर पड़ सकता है।उनका संदेश स्पष्ट है कि हम केवल गठबंधन का हिस्सा नहीं, बल्कि राजनीतिक ताकत हैं।हमें नजरअंदाज करना राजनीतिक भूल होगी।
NDA के लिए क्या है इसका मतलब?
हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) का प्रभाव बिहार के ग्रामीण और दलित बहुल क्षेत्रों में देखा जाता है। यदि मांझी गठबंधन से नाराज होकर अलग राह चुनते हैं, तो यह BJP और JD(U) के लिए सीटों के नुकसान का कारण बन सकता है। 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए, यह मामला NDA के लिए केवल सीट शेयरिंग का नहीं, छवि और दलित वोट बैंक की सुरक्षा का भी है।