Bihar Politics: जदयू का सियासी संकल्प, 112 सीटों पर मिशन तैयार, सीटों की अदला-बदली से नई रणनीति का इशारा
Bihar Politics: बिहार की सियासी फ़िज़ा में जैसे-जैसे चुनावी बयार तेज़ हो रही है, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर गहराई से खामोशी पसरी है ....
Bihar Politics: बिहार की सियासी फ़िज़ा में जैसे-जैसे चुनावी बयार तेज़ हो रही है, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर गहराई से खामोशी पसरी है, लेकिन इस खामोशी के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने अंदरखाने अपनी तैयारी तेज़ कर दी है। पार्टी ने 112 विधानसभा क्षेत्रों में चुनावी मोर्चा खोलने की ठोस रणनीति बना ली है।
विश्वस्त सूत्रों के अनुसार, जदयू नेतृत्व ने जिलों से लेकर विधानसभा स्तर तक अपने राजनीतिक सिपहसालारों को इन सीटों पर तैनात कर दिया है। इन सीटों की एक आंतरिक सूची भी पार्टी द्वारा साझा की गई है, जिससे स्पष्ट है कि जदयू अपने कोटे की इन सीटों को पक्की मानकर तैयारी में जुट गया है।
दिलचस्प यह है कि जदयू ने 7 से 8 परंपरागत सीटों को छोड़ने का निर्णय लिया है, जहां बीते चुनावों में लगातार असफलता मिली। इसके बदले 5 नई सीटों पर दावा ठोंका है, जिनमें से अधिकांश पिछली बार भाजपा ने लड़ी थीं। इनमें सुगौली, पिपरा, कहलगांव, चैनपुर और वजीरगंज जैसे क्षेत्र शामिल हैं—जिनमें अधिकतर EBC-OBC बाहुल्य इलाके हैं, जो नीतीश कुमार की सामाजिक न्याय की राजनीति की रीढ़ माने जाते हैं।
चैनपुर सीट जहां से जमा खान, जो पहले बीएसपी से विधायक रहे और अब जदयू में मंत्री हैं, वहीं वजीरगंज जैसे राजपूत बाहुल्य क्षेत्र में भी पार्टी ने अपनी दावेदारी की है। दूसरी ओर जदयू फुलवारी शरीफ, मसौढ़ी, ठाकुरगंज, कोचाधामन, नौतन और जगदीशपुर जैसी सीटें छोड़ रही है, जहां या तो अल्पसंख्यक प्रत्याशी चुनाव लड़ते रहे हैं या फिर बगावत की आशंका है।
जदयू के इस सियासी खाके में यह भी देखा जा रहा है कि पार्टी का पूरा ध्यान उत्तर बिहार, कोसी और अंग प्रदेश पर केंद्रित है। 112 में से लगभग 56 सीटें उत्तर बिहार की हैं, जहां पार्टी की सांगठनिक पकड़ पहले से ही मज़बूत मानी जाती है। कोसी अंचल की 80 प्रतिशत सीटों पर पार्टी की सक्रियता और नालंदा, सुपौल, मधेपुरा, सहरसा जैसे जिलों में जमीनी कार्यकर्ताओं की फौज उतार दी गई है।
इस सियासी पुनर्रचना से यह स्पष्ट है कि जदयू अब अल्पसंख्यक और दलित बहुल सीटों की तुलना में EBC-OBC और स्वर्ण जातियों की बहुलता वाले क्षेत्रों में अधिक सक्रिय भूमिका चाहता है। गठबंधन के भीतर यह मौन रणनीति आने वाले समय में सीटों के बंटवारे को लेकर संभावित खींचतान का संकेत भी देती है।
बहरहाल सियासी मैदान पर जदयू का यह आक्रमण स्पष्ट करता है कि नीतीश कुमार कोई जोखिम नहीं लेना चाहते। गठबंधन भले शांत हो, पर जदयू का सियासी कवच और रणनीतिक तेवर पूरी तरह से तैयार हैं।