Caste Census: "नीतीश ने दिखाया, देश ने अपनाया!" जातिगत जनगणना पर पटना की सड़कों पर नीतीश-मोदी को धन्यवाद के पोस्टर! केंद्र के फैसले से बिहार में सियासी हलचल

Caste Census:आजादी के बाद पहली बार भारत में जातिगत जनगणना कराने का ऐतिहासिक फैसला केंद्र सरकार ने लिया है, जिसने पूरे देश में सियासी और सामाजिक हलचल मचा दी है।

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"नीतीश ने दिखाया, देश ने अपनाया!" - फोटो : Reporter

Caste Census: आजादी के बाद पहली बार केंद्र सरकार ने भारत में जातिगत जनगणना कराने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है, जिसने पूरे देश में राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल मचा दी है। बिहार, जिसने 2023 में अपने स्तर पर जाति आधारित सर्वेक्षण कराकर इस मुद्दे को राष्ट्रीय मंच पर प्रमुखता से उठाया था, अब इस निर्णय का केंद्र बिंदु बन गया है। केंद्र सरकार के इस फैसले की घोषणा के बाद, पटना के हर चौराहे पर उत्साह का माहौल है। सड़कों पर लगे पोस्टरों पर लिखा है, "नीतीश ने दिखाया, अब देश ने अपनाया! प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को धन्यवाद, जाति जनगणना: बिहार से भारत तक!" यह नारा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व और केंद्र सरकार के ताजा फैसले को जोड़कर एक नया राजनीतिक समीकरण बना रहा है।

बिहार की पहल, देश का अनुसरण

बिहार ने 7 जनवरी 2023 से शुरू हुए जाति आधारित सर्वेक्षण के साथ एक नया इतिहास रचा था। इस सर्वेक्षण के आंकड़े 2 अक्टूबर 2023 को जारी किए गए, जिसमें बिहार की कुल जनसंख्या 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 बताई गई। सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य में 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC), 27% अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), 19% अनुसूचित जाति (SC), और 1.68% अनुसूचित जनजाति (ST) की आबादी है। सामान्य वर्ग की हिस्सेदारी 15.52% दर्ज की गई।इस सर्वेक्षण को बिहार सरकार ने 'बिजगा' (बिहार जाति आधारित गणना) मोबाइल ऐप के माध्यम से डिजिटल रूप से पूरा किया, जिसमें 214 जातियों का डेटा संग्रहित किया गया। बिहार के इस कदम ने न केवल सामाजिक-आर्थिक नीतियों के लिए महत्वपूर्ण आंकड़े उपलब्ध कराए, बल्कि पूरे देश में जातिगत जनगणना की मांग को भी और मजबूत किया।

नीतीश कुमार और तत्कालीन उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से बार-बार आग्रह किया था। बिहार विधानमंडल ने 18 फरवरी 2019 और 27 फरवरी 2020 को जातिगत जनगणना का प्रस्ताव पारित किया था। हालांकि, केंद्र सरकार ने शुरू में इसे अस्वीकार करते हुए कहा था कि केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की गणना ही संभव है।

 जातिगत जनगणना को मिली हरी झंडी

30 अप्रैल 2025 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए राष्ट्रीय जनगणना के साथ-साथ जातिगत जनगणना कराने की स्वीकृति दे दी। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने घोषणा की कि 1947 के बाद पहली बार जातिगत जनगणना होगी, और यह मूल जनगणना के साथ समन्वित रूप से आयोजित की जाएगी।

पटना में उत्साह: नीतीश-मोदी को धन्यवाद

केंद्र के इस फैसले ने बिहार में उत्साह की लहर पैदा कर दी है। पटना के व्यस्त चौराहों, जैसे गांधी मैदान, डाकबंगला चौराहा और बेली रोड पर पोस्टर और बैनर लगाए गए हैं, जिनमें नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया जा रहा है। इन पोस्टरों पर लिखा है, "नीतीश ने दिखाया, अब देश ने अपनाया!" यह नारा बिहार की पहल को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किए जाने का प्रतीक बन गया है।

जातिगत जनगणना का इतिहास और विवाद

भारत में अंतिम बार 1931 में औपनिवेशिक काल के दौरान जातिगत जनगणना हुई थी। 1941 में जाति आधारित डेटा तो जुटाया गया, लेकिन उसे प्रकाशित नहीं किया गया। आजादी के बाद 1951 से 2011 तक की जनगणनाओं में केवल SC और ST का डेटा शामिल किया गया, जबकि OBC और अन्य जातियों का डेटा नहीं लिया गया। 2011 में यूपीए सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC) कराई, लेकिन इसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए।

जातिगत जनगणना की मांग लंबे समय से रही है, खासकर OBC और अन्य वंचित वर्गों के लिए नीतियां बनाने के लिए। मंडल आयोग (1990) की सिफारिशों के आधार पर OBC को 27% आरक्षण दिया गया, लेकिन इसके लिए कोई ठोस जनगणना डेटा उपलब्ध नहीं था। बिहार सरकार का तर्क रहा है कि OBC और अन्य जातियों की सटीक आबादी का पता लगाए बिना सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना मुश्किल है।

राजनीतिक प्रभाव: 2024 और उसके बाद

केंद्र के इस फैसले को 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद बदले राजनीतिक माहौल से जोड़ा जा रहा है। विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' ने 18 जुलाई 2023 को बेंगलुरु में हुई बैठक में देशव्यापी जातिगत जनगणना की मांग उठाई थी। राहुल गांधी और अखिलेश यादव जैसे नेताओं ने इसे बार-बार प्रमुख मुद्दा बनाया। बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे पर एकजुट होकर केंद्र पर दबाव बनाया।

वहीं, बीजेपी, जो पहले जातिगत जनगणना के खिलाफ थी, अब इस मुद्दे पर नरम रुख अपनाती दिख रही है। 2023 में बिहार में नीतीश सरकार के सर्वेक्षण का समर्थन करने वाली बीजेपी अब राष्ट्रीय स्तर पर इस फैसले के साथ OBC और अन्य वंचित वर्गों के वोट बैंक को साधने की कोशिश में है।पटना में लगे पोस्टर इस राजनीतिक गठजोड़ को और स्पष्ट करते हैं, जहां नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी को एक साथ श्रेय दिया जा रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव और 2029 के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों की रणनीति को प्रभावित करेगा।कानूनी और प्रशासनिक बाधाएं: जनगणना अधिनियम, 1948 में जातिगत जनगणना के लिए स्पष्ट प्रावधान नहीं हैं। इसे लागू करने के लिए कानूनी संशोधन या नई नीति की आवश्यकता हो सकती है।पटना की सड़कों पर लगे पोस्टर न केवल एक राजनीतिक नारा हैं, बल्कि बिहार की उस पहल का प्रतीक हैं, जिसने देश को जातिगत जनगणना की दिशा में सोचने के लिए मजबूर किया। नीतीश कुमार के नेतृत्व में शुरू हुआ यह सफर अब नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले के साथ राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गया है। यह फैसला न केवल सामाजिक न्याय की दिशा में एक कदम है, बल्कि भारत की राजनीति में एक नया अध्याय भी जोड़ सकता है।

बहरहाल सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या जातिगत जनगणना भारत में सामाजिक समानता की राह खोलेगी, या यह राजनीतिक दलों के लिए एक और हथियार बनकर रह जाएगी? इसका जवाब भविष्य के आंकड़ों और नीतियों में छिपा है। फिलहाल, यह फैसला एक ऐतिहासिक मोड़ है।

रिपोर्ट- अभिजीत सिंह


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